होली के त्योहार से जुड़ी अलग-अलग क्षेत्रों की अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं. कहीं लट्ठमार होली मशहूर है तो कहीं होली पर प्रकृति की पूजा की जाती है. देखें, देश के अलग-अलग हिस्सों में होली से जुड़ी खास परंपराएं.
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राधा के गांव बरसाने की लट्ठमार होली दुनिया भर में मशहूर है. इस दिन पुरुषों पर महिलाएं लाठियां बरसाती हैं और पुरुष इससे बचते हुए उन्हें रंग लगाते हैं. लठमार होली की झलक कई फिल्मों में दिख चुकी है.
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होली के त्योहार की सबसे ज्यादा रौनक कृष्ण की नगरी मथुरा-वृंदावन में होती है. यहां होली का त्योहार 16 दिनों तक चलता है और देश-विदेश से लोग त्योहार मनाने आते हैं. रंग-गुलाल लगाने के साथ लोकगीतों की महफिल रोज जमती है.
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बंगाल में होली पर मनाया जाने वाला डोल पूर्णिमा त्योहार काफी मशहूर है. डोल पूर्णिमा के दिन वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था. इस दिन रंग-गुलाल के बीच प्रभु की झांकी निकाली जाती है. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांति निकेतन में भी होली की अलग ही छटा रहती है. इस दिन शांति निकेतन में बसंत उत्सव मनाया जाता है. बंगाली गीतों और रवींद्र संगीत की धुनों के बीच लोग रंगों का त्योहार मनाते हैं.
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सिख धर्म में भी होली का त्योहार मनाने की मान्यता है. होली के अगले दिन आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला का आयोजन होता है. सैनिकों की वीरता और शौर्य को याद करने के तौर पर इस दिन को मनाने की परंपार है. ऐसी मान्यता है कि गुरु गोविंदसिंहजी (सिखों के 10वें गुरु) ने इस परंपरा की शुरुआत की थी.
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मणिपुर में भी धूमधाम से होली मनाने का चलन है. वहां इसे प्रकृति उत्सव के तौर पर मनाया जाता है. 6 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में स्त्री-पुरुष पारंपरिक थाबल चोंगबा नृत्य भी करते हैं. साथ ही प्रकृति की पूजा की जाती है और अच्छी बारिश और फसलों के लिए दुआ मांगी जाती है.