डीएनए हिंदी: त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में इस बार एक नई नवेली पार्टी खूब चर्चा में है. 'ग्रेटर तिपरालैंड' की मांग करने वाली तिपरा मोथा के मुखिया हैं प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा उर्फ 'त्रिपुरा के महाराज'. राजघराने से ताल्लुक रखने वाले प्रद्योत की पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी है. अब प्रद्योत ने ऐलान कर दिया है कि इस चुनाव के बाद वह राजा बनकर कभी वोट नहीं मांगेंगे. दूसरी तरफ, उनकी पार्टी के नेताओं का दावा है कि तिपरा मोथा इस चुनाव में किंगमेकर बनकर उभरेगा. कई और पार्टियां भी तिपरा मोथा पर नजर बनाए हुए हैं. राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि अगर त्रिपुरा में त्रिशंकु विधानसभा हुई तो सरकार 'महाराज' की मर्जी से ही बनेगी.

सिर्फ 45 साल के प्रद्योत माणिक्य त्रिपुरा में खूब चर्चित हैं. जनजातीय क्षेत्रों के निकाय चुनावों में बंपर जीत के बाद उनकी पार्टी को भी गंभीर प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है. चुनाव से पहले गठबंधन की भी कई कोशिशें हुईं लेकिन आखिर में तिपरा मोथा ने अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया. प्रद्योत माणिक्य डंके की चोट पर कहते हैं कि जनजातीय क्षेत्र के लिए तिपरालैंड की मांग का समर्थन करने वाली पार्टी से ही वह गठबंधन कर सकते हैं, किसी और से नहीं.

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कौन हैं प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा?
'त्रिपुरा के महाराज' कहे जाने वाले प्रद्योत राजशाही परिवार से आते हैं. 1978 में दिल्ली में जन्मे प्रद्योत त्रिपुरा के 185वें राजा किरीट बिक्रम देबबर्मा और महारानी बीहूबी कुमारी के बेटे हैं. उनके पिता तीन बार लोकसभा के सांसद और मां विधायक रह चुकी हैं. हालांकि, अब प्रद्योत का कहना है कि उनके परिवार का कोई शख्स तिपरा मोथा से चुनाव नहीं लड़ेगा. विधानसभा चुनाव में भी वह खुद उम्मीदवार नहीं हैं.

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चुनाव प्रचार के आखिरी दिन प्रद्योत माणिक्य के ऐलान ने सबको हैरान कर दिया है. मंगलवार को चारिलम में एक रैली के दौरान प्रद्योत ने कहा, 'आज राजनीतिक मंच पर मेरा आखिरी भाषण है और मैं विधानसभा चुनाव के बाद कभी बुबागरा (राजा) बनकर वोट नहीं मांगूंगा. इससे मुझे पीड़ा हुई लेकिन मैंने आपके लिए एक कठिन लड़ाई लड़ी है.' आपको बता दें कि त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों के लिए 16 फरवरी को वोटिंग होगी और 2 मार्च को चुनाव के नतीजे आएंगे.

कांग्रेस छोड़कर बनाई थी अपनी पार्टी
राजनीति शुरू करते समय प्रद्योत कांग्रेस पार्टी में थे. साल 2019 में वह कांग्रेस से अलग हो गए. ग्रेटर तिपरालैंड की मांग को लेकर उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. उनकी पार्टी की मांग है कि ग्रेटर तिपरालैंड सिर्फ उन लोगों के लिए बने जो विभाजन के दौरान पूर्वी बंगाल से आए बंगालियों की वजह से अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक हो गए हैं. त्रिपुरा में आदिवासियों की संख्या लगभग 32 प्रतिशत है इस वजह से तिपरा मोथा के हौसले बुलंद हैं.

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इससे पहले त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद के चुनाव में तिपरा मोथा ने अकेले अपने दम पर ही बीजेपी और IPFT गठबंधन को करारी शिकस्त दी थी और 28 में से 18 सीटें जीत ली थी. त्रिपुरा की 60 में से 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. यही वजह कि सभी पार्टियों के लिए तिपरा मोथा बड़ी चुनौती बना हुआ है.

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पहले ही चुनाव में राजनीति छोड़ देंगे 'त्रिपुरा के महाराज'? बीजेपी-कांग्रेस के लि
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पहले ही चुनाव में राजनीति छोड़ देंगे 'त्रिपुरा के महाराज'? बीजेपी-कांग्रेस के लिए बने खतरा