डीएनए हिंदीः कांग्रेस (Congress) में अध्यक्ष पद के चुनाव से ठीक पहले राजस्थान में राजनीतिक उठापटक (Rajasthan Political Crisis) तेज होती जा रही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच की तकरार लगातार बढ़ती जा रही है. दोनों ही गुट जोर आजमाइश में लगे हैं. राजस्थान में विधानसभा चुनाव में भी अब ज्यादा समय नहीं बचा है ऐसे में पार्टी के संकट को लेकर आलाकमान भी नजर बनाए हुए हैं. गहलोत के समर्थन में पार्टी के 90 विधायकों के इस्तीफे के बाद आलाकमान के पास भी विकल्प कम बचे हैं लेकिन विधायकों को स्पष्ट संकेत दे दिए गए हैं कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है. राजस्थान में इस समय हालात कुछ वैसे ही हैं जैसे पंजाब कांग्रेस के सामने सियासी संकट खड़ा हुआ था.
क्या पंजाब जैसा होगा हाल?
राजस्थान में पूरा मामला अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तकरार को लेकर है. कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के लिए नामांकन के बाद सचिन पायलट ने बयान दिया कि अगर वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना होगा. पहले तो अशोक गहलोत इससे इनकार करते रहे लेकिन बाद में राहुल गांधी के 'एक व्यक्ति एक पद' के बयान के बाद गहलोत झुकने को तैयार हो गए. वह सीएम पद से इस्तीफा देने को तो तैयार हो गए लेकिन गहलोत समर्थक गुट सचिन पायलट को सीएम की कुर्सी ना देने पर अड़ गया. यहां तक कि वह पार्टी आलाकमान का आदेश मानने तक को तैयार नहीं है. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान चाहता था कि सचिन पायलट को गहलोत के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किया जाए. ऐसे में दोनों खेमों के बीच तकरार लगातार बढ़ती जा रही है.
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नए सीएम के सामने क्या होगी चुनौती?
ताजा हालात को देखते हुए इतना तय माना जा रहा है कि अगर गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो सीएम की कुर्सी किसी और को दी जाएगी. राजस्थान में गहलोत सरकार के ऊपर किसानों से लेकर बेरोजगारी तक को लेकर किए गए कई चुनावी वादों को पूरा ना करने का आरोप लग रहा है. बीजेपी कई बार इस मुद्दे को उठा चुकी है. वहीं सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं. कन्हैया लाल की हत्या के बाद गहलोत सरकार पर कई आरोप भी लगे थे. ऐसे में एक साल से भी कम समय में इन मुद्दों को पूरा करना नए सीएम के सामने चुनौती भरा साबित होगा. कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस पंजाब में देख चुकी है. चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने के बाद भी कांग्रेस का पंजाब चुनाव में प्रदर्शन निराशाजनक रहा. यहां तब कि खुद चन्नी भी अपनी सीट बनाने में नाकामयाब रहे.
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पंजाब में कैसे बढ़ी तकरार?
पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तकरार चरम पर थी. दोनों खेमों में तकरार की शुरुआत अगस्त 2019 में ही शुरू हो गई थी जब सीएलपी की बैठक में बेअदबी और कई अन्य मुद्दों पर कार्रवाई ना होने पर सवाल उठाए गए. तत्कालीन पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पूरे मामले का हल निकालने के लिए पार्टी आलाकमान के निर्देश पर बैठकों का दौर शुरू किया. जनवरी 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पंजाब कांग्रेस प्रदेश कमिटी और जिला कमिटी को भंग कर दिया. हालांकि सुनील जाखड़ अपने पद पर बने रहे. मार्च 2020 में जब कैप्टन अमरिंदर ने अपने घर पार्टी का आयोजन किया तो उसमें कांग्रेस से आधे विधायक शामिल ही नहीं हुए. तब साफ हो चुका था कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसके बाद सोनिया गांधी ने उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत को पंजाब का प्रभारी नियुक्त कर दिया.
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हरीश रावत ने सिद्धू से उनके अमृतसर स्थित आवास में मुलाकात की और दोनों पक्षों (सिद्धू-कैप्टन) के बीच सुलह कराने की कोशिश की गई. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अमरिंदर खेमे के जोरदार विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया. इसके बाद अगस्त 2021 में हरीश रावत ने ऐलान किया कि पार्टी 2022 का चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लड़ेगी. पार्टी में लगातार उठापटक के बाद 18 सितंबर 2021 को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का अगला सीएम बनाया गया.
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क्या पंजाब की राह पर चल रही है राजस्थान कांग्रेस? चन्नी जैसा ना हो हाल