डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार (Mahavikas Aghadi) इस समय अल्पमत में जाती दिख रही है क्योंकि गठबंधन का नेतृत्व कर रही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Udhav Thakery) की पार्टी शिवसेना के लगभग आधे से ज्यादा विधायक बगावती नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के पाले में चले गए हैं. वहीं एकनाथ शिंदे ने भी पार्टी पर अपना दावा ठोक दिया है. उनकी उद्धव ठाकरे के सामने शर्त है कि महाविकास अघाड़ी सरकार से गठबंधन तोड़ा जाए और फिर शिवसेना फिर से भाजपा के साथ सरकार बनाए.
गौरतलब है एकनाथ शिंदे ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि यदि उनकी पार्टी ने बात नहीं मानी तो न केवल महाराष्ट्र में सरकार गिरेगी बल्कि पार्टी में भी दो फाड़ की स्थिति हो जाएगी. ऐसे में एक अहम बात यह है कि इस मामले में यदि एकनाथ शिंदे पार्टी के 37 विधायकों को अपनी तरफ लाने में सफलता हासिल कर लेते हैं तो उन्हें दलबदल कानून का कोई खतरा नहीं होगा और वो पार्टी पर अपना दावा भी कर सकते हैं.
कांग्रेस में पड़ी थी फूट
देश की राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं है कि राजनीतिक दलों के दो खेमों के बीच पार्टी पर दावा ठोका गया हो. इससे पहले भी इस तरह के पार्टी पर दावे किए जाते रहे हैं. जिसमें सबसे पहला दावा कांग्रेस पार्टी को लेकर ही हुआ था. 1969 में कांग्रेस के सिंडिकेट नेताओं ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया था जिसके बाद इंदिरा ने अपना एक अलग गुट कांग्रेस आई यानी इंदिरा कांग्रेस बना लिया था. वहीं दूसरे गुट का अस्तित्व 1971 तक पूरी तरह खत्म हो गया था और इस तरह कांग्रेस की इस फूट में इंदिरा गांधी अधिक मजबूत नेता बनकर उभरी थीं.
AIADMK में हुआ था टकराव
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री जयाललिता के निधन के बाद उनका पार्टी एआईएडीएमके में एक बड़ी फूट पड़ गई थी. तत्तकालीन सीएम पिलानीस्वामी और पूर्व सीएम पनीरसेल्वन के बीच पार्टी के अधिपत्य को लेकर टकराव हो गया था जिसमें एक गुट शशिकला का भी था. हालांकि शशिकला पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें चार साल जेल में बिताने पड़े थे और इसके चलते पार्टी पर अधिपत्य के इस गेम से वो बाहर हो गईं थी. वहीं बाद में दोनों ही गुटों में सहमति बन गई थी लेकिन इस टकाराव के चलते पार्टी का जनाधार तेजी से घटा था.
समाजवादी पार्टी का बड़ा टकराव
साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा से पहला सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी के दो गुटों बीच एक बड़ा संग्राम हुआ था. यह राजनीतिक स्थिति इतनी विकट हो गई थी कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यानी पिता पुत्र सामने आ गए थे. ऐसे में अपनी सत्ता का उपयोग करते हुए अखिलेश यादव ने पिता के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी और विधायकों का समर्थन जुटाकर पार्टी पर चुनाव आयोग के जरिए अपना दावा मजबूत कर लिया था. इसका एक नतीजा यह भी हुआ था कि पार्टी के अखिलेश यादव विरोधी नेताओं का धड़ा शिवपाल सिंह यादव के प्रगतिशील समाजवादी पार्टी वाले गुट में शामिल हो गया था. पार्टी की इस फूट का बुरा नतीजा हुआ और चुनावों में पार्टी की बुरी हार हुई.
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एलजेपी से बाहर चिराग
पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान और भाई पशुपतिपारस के बीच लोकजनशक्ति पार्टी बंट गई थी. मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार के दौरान चिराग को बड़ा नुकसान हुआ क्योंकि पार्टी के सभी नेताओं ने चिराग का विरोध और पशुपति पारस का समर्थन कर दिया. ऐसे में पार्टी पर पशुपति पारस का दावा हो गया. आज की स्थिति में पशुपति पारस ही लोजपा के मुखिया बन बैठे हैं और राम विलास पासवान की ही पार्टी से उनके बेटे चिराग पासवान का पत्ता कट गया.
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हाल फिलहाल के बड़े सियासी घटनाक्रमों के बीच शिवसेना की स्थिति भी दोफाड़ वाली हो गई हैं क्योंकि एकनाथ शिंदे पार्टी पर अपना दावा कर रहे हैं. ऐसे में शिवसेना का भविष्य क्या होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन पार्टी का राजनीतिक भविष्य अभी डांवाडोल दिख रहा है.
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