डीएनए हिंदी: शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने शिवसेना में नई बगावत कर महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल खड़ा कर दिया है. शिवसेना के लगभग आधे से ज्यादा विधायक आज की स्थिति में उनके साथ गुवाहाटी के होटल में हैं. ऐसे में यह माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार (MVA) गिर सकती है जिसमें सबसे बड़ा झटका मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लगने वाला है.
एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके पास इस समय करीब 50 विधायकों का समर्थन है और खबरें यह भी हैं कि वो बीजेपी (BJP) के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना सकते हैं. हालांकि उन्होंने अपनी पार्टी के मुखिया को स्पष्ट संकेत दिया है कि यदि शिवसेना एमवीए से हटकर बीजेपी के साथ सरकार बनाती है तो उन्हें उद्धव के साथ खड़े रहने में कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन यह एक बेहद ही मुश्किल स्थिति मानी जा रही है.
नेताओं की बढ़ी मुसीबतें?
शिंदे और शिवसेना के इस विवाद के बीच महाराष्ट्र की सियासत फंसी हुई है. यदि इस बार यहां एमवीए सरकार गिरती है तो यह एक बड़ा झटका न केवल एमवीए के घटक दलों कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी के लिए होगा बल्कि राज्य की राजनीति के चार बड़े नेताओं का राजनीतिक कद बौना साबित हो सकता है. अब ये नेता कौन से हैं चलिए इसे समझते हैं.
शरद पवार: 2019 के विधानसभा चुनावो के बाद जब शिवसेना की बीजेपी से बात नहीं बनी और कांग्रेस-एनसीपी (NCP-INC) से पार्टी की सरकार बनाने को लेकर बात जारी थी उस दौरान शरद पवार (Sharad Pawar) के भतीजे अजित पवार ने उस दौरान एक बड़ा खेल करते हुए रातोरात सरकार बना ली थी. ऐसे में अजित पवार को मनाकर उन्हें वापस लाने में एक अहम भूमिका निभाई थी. वहीं उनकी महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार के गठन में भी विशेष भूमिका थी. ऐसे में इसे बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा था.
उन्हीं कथित चाणक्य शरद पवार की नाक के नीचे से शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे एक साथ 40 विधायकों को ले उड़े और इसके चलते आज एमवीए सरकार अल्पमत में हैं. ऐसे में उनकी चाणक्य की छवि को बड़ा झटका लगा है. शरद पवार की हताशा का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटिल को उनकी खराब इंटेलीजेंस के लिए फटकार लगाई थी. ऐसे में कल तक जो राष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन के लिए एक अहम कड़ी माने जा रहे थे वो आज महाराष्ट्र की सत्ता से पूरी तरह बाहर हो चुके हैं.
उद्धव ठाकरे- शिवसेना ने भाजपा से प्री-पोल गठबंधन किया था लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों के बीच टकराव इतना ज्यादा बढ़ा कि गठबंधन टूट गया. इतना ही नहीं उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने सीएम की कुर्सी के लिए विपरीत विचारधारा वाले दलों एनसीपी-कांग्रेस से गठबंधन कर लिया. हालांकि इस दौरान उन पर समय समय पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने आम कार्यकर्ता को भाव नहीं दिया.
शिवसेना के लिए यह मुश्किल वक्त था कि जिन नेताओं से उन्होंने विधानसभा की अलग-अलग सीटों के लिए लड़ाई की उन सभी को विरोधी नेताओं का समर्थन करना पड़ा. शिवसेना अपनी मूल विचारधारा से बिल्कुल ही विपरीत चली गई. ऐसे में जमीनी कार्यकर्ताओं और नेताओं के सब्र का बांध टूटने लगा. ऐसे में एकनाथ शिंदे की बगावत उसी सब्र के बांध के टूटने का परिणाम माना जा रहा है.
राज ठाकरे- महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे एक बड़ा नाम थे लेकिन जब बालासाहेब ठाकरे ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर उद्धव ठाकरे को चुना तो राज ने बगावत कर दी. ऐसे में राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने अलग महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक पार्टी बनाकर राज्य में मराठी अस्मिता से लेकर यूपी बिहार के लोगों का भगाने का कार्ड खेला. हालांकि उन्हें इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
ऐसे में उन्होंने हाल ही में हिंदुत्व का कार्ड भी अजान और हनुमान चालीसा के जरिए खेला और उन्हें इसमें राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन भी मिला. वहीं बीजेपी ने इस मुद्दे पर उनसे अपने हाथ खींच लिए क्योंकि बीजेपी किसी भी कीमत पर महाराष्ट्र में अपनी विचारधारा की समानांतर एक नई पार्टी की खड़ी होते नहीं देखना चाहती है. नतीजा ये कि इस शिंदे विवाद में राज ठाकरे की राजनीतिक नैय्या पर्दे के पीछे ही डूबती दिख रही है.
नितिन गडकरी- महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) का फ्रंडफुट पर तो कोई दखल नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि वो पर्दे के पीछे से यहां की राजनीति को काफी प्रभावित करते हैं. इसकी वजह यह है कि उनकी सीएम बनने की हमेशा ही महत्वाकांक्षाएं रही हैं लेकिन बीजेपी ने देवेंद्र फडण्वीस को मौका दिया. वहीं भाजपा और शिवसेना के गठबंधन और डीलिंग का काम भी हमेशा नितिन ग़डकरी की मध्यस्थता से ही हुआ है.
साल 2019 में जब बीजेपी की शिवसेना से बात नहीं बनी तो ये खबरें भी चलीं थी कि गडकरी भी नहीं चाहते थे कि राज्य में एनडीए की सरकार बने. हालांकि अब बीजेपी की सरकार भी एकनाथ शिंदे के जरिए बनती दिख रही है तो दूसरी ओर देवेंद्र फडण्वीस को महाराष्ट्र के अलावा गोवा में भी अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं जो कि सीधे तौर पर गडकरी से ही छिनी थीं. ऐसे में शिंदे के एक कांड ने महाराष्ट्र की राजनीति में गडकरी के दखल को भी लगभग खात्में पर लाकर खड़ा कर दिया है.
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