डीएनए हिंदी : होली(Holi) का अर्थ है रंग. गुलाल की गुलाबियत और पिचकारी से छूटते फ़ुहारों का चोखापन होली की पहचान है, पर जब तक इस पहचान में मिठास न घुले, बात नहीं बनती. आप सही समझ रहे हैं, बात हो रही है होली की पहचान बन चुकी ख़ास मिठाई ‘गुझिया'(Gujhiya ) की. नरम खोये की बनी इस मिठाई का होली के रंगों से क्या वास्ता है? क्यों यह होली में ही खाई और खिलाई जाती है, जानने की कोशिश करते हैं.
इतिहास को नहीं है पता, मिथक को भी मालूम नहीं
भारत गांवों, रेलगाड़ियों के साथ-साथ मिठाइयों का देश भी है. हर उत्सव, हर उल्लास के लिए दिन तय हैं और उस तय दिन के साथ मिठाइयों का न टूटने वाला नाता भी जुड़ा हुआ है. ठेकुआ छठ का प्रसाद है. दीवाली बिना लड्डू के नहीं मनती तो मोदक के बिना गणेश उत्सव नहीं होता है. यह पढ़कर अगर आप सोच रहे हैं कि गणेश जी के मोदक या लड्डू की तरह गुझिया(Gujhiya ) का कोई ऐतिहासिक, पौराणिक या मिथकीय कनेक्शन है तो आपको यह जानकर निराश होना पड़ेगा कि गुझिया ऐसे किसी सन्दर्भ में नहीं आता. यह मिठाई पिछले कुछ सालों में आम घरों से उठकर होलीHoli) के वक़्त मिठाई दुकानों की ज़ीनत के तौर पर नज़र आने लगी है.
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क्या है इस पर पॉप कल्चर का असर
यह मानद सच्चाई है कि दुनिया भर की सभ्यता संस्कृति पर फिल्मों का असर पड़ता है. भारत इस मामले में अपवाद नहीं है. बस कुछ ही साल पीछे जाते हैं तो हम आपके हैं कौन फिल्म से उठकर जूते चुराई की रस्म पूरे देश की शादियों का अभिन्न हिस्सा बनती नज़र आती है. वहीं दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के बाद करवाचौथ अखिल भारतीय त्योहार बन गया था. ये दोनों ही रस्में मूलतः पंजाबी हैं जिन्हें ख़ास फिल्मों ने प्रसार दिया. गुझिया के संदर्भ में भी यह बात बहुत हद तक वैसी ही है. माना जाता है कि 2000 के दशक में शुरू हुए टीवी धारावाहिकों में गुझिया को होली के मुख्य व्यंजन के तौर पर दिखाया गया. दो दशक बीतते- बीतते किसी भी उत्सव पर बन जाने वाली यह घरेलू मिठाई होली का ख़ास पकवान बन गई. ज्ञात हो कि गुझिया (Gujhiya )मूल रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात की मिठाई है. बिहार में सूखे गुझिये बनते हैं जिन्हें पेड़किया कहा जाता है.
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