डीएनए हिंदी : संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एन्टोनियो गुटारेस ने पिछले दिनों कहा कि, पिछले 25 सालों का लेखा-जोखा लिया जाए तो दुनिया भर की सबसे अमीर 10% जनता पूरी दुनिया के कुल कार्बन इमीशन के आधे से अधिक के लिए ज़िम्मेदार है. इस स्तर पर नाइंसाफी और असमानता कैंसर की तरह है. अगर हमने अभी क़दम नहीं उठाए तो शायद यह शताब्दी हमारी आख़िरी शताब्दी हो सकती है.
दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज की कई समस्याएं सामने आ रही हैं. कोई लम्बे समय तक चलने वाला उपाय नहीं दिख रहा है. हालांकि इन दिनों एक नया शब्द इको-शेमिंग (Eco-Shaming) आया है. इस शब्द को स्वीडन में खोजा गया था. इसके साथ flygskam या flight shame शब्द को भी खोजा गया था. ये दोनों ही शब्द 2018 में खोजे गए थे. इनके ज़रिये हवाई यात्राओं के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करने की कोशिश की गई थी. यह कंपनियों और ब्रांडों पर पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ दवाब था जिसकी वजह से उपभोक्ता पर भी दवाब पड़ने लगा.
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पर्यावरण संरक्षण के दवाब का फ़ायदा उठा रही हैं कंपनियां
पर्यावरण अनुकूलन या इको-फ्रेंडली(Eco-Friendly) लाइफ स्टाइल अब एक आम जागरूकता से आगे बढ़कर सामाजिक दायित्व जैसा हो गया है. इसका फ़ायदा कम्पनियां भी ख़ूब उठा रही हैं. उन्होंने अपने सर्विस या उत्पाद के ज़रिये लोगों पर दवाब बनाने का और उन्हें गिल्ट में भेजने का ख़ूब काम किया है.
इन दिनों कई नई चीज़ें देखी जा रही हैं. इलेक्ट्रिक कार के बाद अब प्लास्टिक वेस्ट से बने जूते भी नज़र आने लगे हैं. एनवायरनमेंट फ्रेंडली होना अब केवल स्टेटस सिंबल नहीं, आम जीवन का ढंग बनता जा रहा है. टेस्ला अगर इलेक्ट्रिक कार बना रहा है तो कई स्टार बक्स, कोस्टा कॉफ़ी, टेस्को जैसी कंपनियां अपनी कार्यशैली में वे चीज़ें जोड़ रही हैं जो पर्यावरण के लिए बेहतर होती हैं. माना जा रहा है कि इको-शेमिंग (Eco-Shaming) ने इसमें बहुत मदद की है पर पर्यावरण संरक्षण का उद्देश्य केवल इसी से पूरा नहीं होगा.
इसके साथ ही विकसित देशों की उन कंपनियों पर भी ध्यान देना होगा जो पर्यावरण संरक्षण के मूल्यों को धता बताते हुए अपना काम काज चला रही हैं. ये कम्पनियां लगातार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही हैं. इन कंपनियों में पेट्रोलियम उत्पाद कंपनियां भी शामिल हैं. बड़ी ज़रूरत इसके ख़िलाफ़ खड़े होने की है.
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