• पंकज चौधरी
     

डीएनए हिंदी: अपने जीते-जी बाल मजदूरी को समाप्‍त करने का स्‍वप्‍न देखने वाले नोबेल शांति विजेता  कैलाश सत्‍यार्थी के जन्‍मदिन (11 जनवरी) को उनके चाहने वाले 'सुरक्षित बचपन दिवस' के रूप में मनाते हैं. सत्‍यार्थी के काम का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उन्‍होंने जिन बाल मजदूरों को मुक्‍त कराकर बदलाव की जिस इमारत का निर्माण किया, आज उनमें से अधिकांश बच्चे उस इमारत को और बुलंद करने में जुट चुके हैं. वे अब दूसरों के बचपन को सुरक्षित कर रहे हैं. बदलाव के ऐसे वारिसों के बारे में जानकर हम सुरक्षित बचपन दिवस के मायने को महसूस कर सकते हैं.

तारा बंजारा
अपनी छोटी बहन का बाल विवाह रुकवाने वाली बहादुर लड़की का नाम है तारा बंजारा. राजस्थान के जयपुर जिले की विराटनगर तहसील की तारा घुमंतू जनजाति बंजारा समुदाय की पहली ऐसी लड़की है जिसने इसी साल 12वीं कक्षा अव्‍वल नम्‍बरों से पास की है. छुटपन में मां के साथ सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली तारा पुलिस ऑफिसर बनना चाहती है ताकि वह अपने समुदाय और राज्‍य के लिए काम कर सके. तारा पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक कार्यों-बाल विवाह, बाल मजदूरी, ट्रैफिकिंग, नशाखोरी आदि सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अग्रणी भूमिका निभा रही है. अपनी पहल से वह बंजारा समुदाय के कई बच्चों का स्‍कूलों में दाखिला करा चुकी है. यह तारा की नेतृत्‍व क्षमता का ही परिणाम है कि अब उसके गांव में एक भी बाल मजदूर नहीं है. बाल विवाह का कोई नाम भी नहीं लेता.
तारा को उसके महत्‍वपूर्ण सामाजिक कार्यों के लिए फिल्‍म स्‍टार शाहिद कपूर के हाथों रिबॉक फिट टू फाइट अवॉर्ड से भी सम्‍मानित किया जा चुका है. फिलहाल वह कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रन्‍स फाउंडेशन की फ्रीडम फेलोशिप की लाभार्थी है, जिसके तहत उसे पढ़ने-लिखने की सुविधाएं दी जा रही हैं. श्री कैलाश सत्‍यार्थी और श्रीमती सुमेधा कैलाश को प्रेरणास्रोत मानने वाली तारा की इच्‍छा है-उसके समुदाय की सभी लड़कियां स्कूल जाएं और अपने पैरों पर खड़ी होकर देश तथा अपने समाज का नाम रोशन करें.

tara banjara

मोहम्‍मद छोटू
कटिहार की सि‍कटिया पंचायत के एक छोटे से गांव इमामबाड़ा का रहने वाला मोहम्‍मद छोटू 22 साल का है. आज से बारह-तेरह साल पहले जब उसे ट्रैफिकिंग करके दिल्‍ली लाया गया था, तब उसे एक चूड़ी कारखाने में 16-16 घंटे तक काम करना पड़ता था. यदि उससे कोई गलती हो जाती, तो मालिक उसे बेल्‍ट से पीटता. लेकिन एक दिन बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने उसे बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाई. उसे राजस्‍थान के विराटनगर स्थित बाल आश्रम भेजा. वहीं रहकर उसने पढ़ाई-लिखाई पूरी की. बिजली का काम भी वहीं सीखा. गौरतलब है कि बाल आश्रम मुक्‍त बाल मजदूरों का एक दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है.
मोहम्‍मद छोटू का मानना है कि गांव में अभी भी शिक्षा का अभाव है. लोग जागरूक नहीं हैं. अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा सकते. कोरोना महामारी के कारण बार-बार लगने वाले लॉकडाउन स्थिति को बद से बदतर करते जा रहे हैं. स्‍कूल खुलते हैं फिर बंद हो जाते हैं. इसलिए कटिहार में पांच गांवों के 100 से ज्‍यादा बच्चों को वह मुफ्त में पढ़ाने का काम करता है. संगठन की ओर से चलाए जा रहे बाल मजदूरी के खिलाफ मुक्ति कारवां जागरुकता अभियान में बतौर एक सर्वाइवर लीडर काम करते हुए जब वह शाम को घर लौटता है तब उन बच्‍चों को पढ़ाता है. छोटू का मानना है कि शिक्षा हमें आत्‍मविश्‍वास से परिपूर्ण करती है. अगर देश के शत-प्रतिशत लोग शिक्षित हो जाएं तो बहुत हद तक सामाजिक बुराइयां दूर हो जाएंगी.

chhotu

नीरज मुर्मू
झारखंड के गिरिडीह जिले के दुलियाकरम बाल मित्र ग्राम के पूर्व बाल मजदूर नीरज मुर्मू की कहानी लंबी है. नीरज जब 10 साल का था, तभी से परिवार का गुजारा चलाने के लिए अभ्रक खदानों में बाल मजदूरी करने लगा, लेकिन बचपन बचाओ आंदोलन ने उसे बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाई. बाल दासता से मुक्त होकर नीरज कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रन्‍स फाउंडेशन के साथ मिलकर काम करने लगा. अपनी पढ़ाई के दौरान नीरज ने शिक्षा के महत्व को बखूबी समझा और अपने समाज के लोगों को कन्विंस कर उनके बच्चों को बाल मजदूरी से छुड़ाकर स्‍कूलों में दाखिला सुनिश्‍चित कराने लगा.  
ग्रेजुएशन पार्ट-2 की पढ़ाई कर रहे नीरज ने गरीब, आदिवासी बच्चों के लिए अपने गांव में एक स्कूल की स्थापना की है. जिसके माध्यम से वह लगभग 100 से ज्‍यादा बच्चों को समुदाय के साथ मिलकर शिक्षित करने में जुटा है। नीरज का मानना है कि शिक्षा की ज्‍योति से ही हम सामाजिक बुराइयों की होली जला सकते हैं. नीरज मुर्मू को गरीब और हाशिए के बच्चों को शिक्षित करने के लिए पिछले ही साल ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है.

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सुरजीत लोधी
मध्‍य प्रदेश में विदिशा के गंजबासौदा प्रखंड के शहवा बाल मित्र ग्राम के मुक्‍त बाल मजदूर और वर्तमान में राष्‍ट्रीय बाल पंचायत के उपाध्‍यक्ष सुरजीत लोधी का सामाजिक सफर बाल पंचायत के सदस्‍यों के साथ मिलकर गांवों में शराब की अवैध रूप से चल रही 5 दुकानों को बंद करवाने से शुरू होता है. सुरजीत के प्रयासों से गांवों में शराब की बिक्री पर रोक लगी और महिलाओं और बच्चों को शारीरिक और मानसिक हिंसा से मुक्ति मिली. सुरजीत के संघर्ष से 100 से ज्‍यादा बच्चों का स्‍कूलों में दाखिला भी सुनिश्चित हुआ और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में सफलता मिली.
कोरोना महामारी के दौरान सुरजीत ने अपने इलाके के 100 से ज्‍यादा लोगों का टीकाकरण कराया. उसने 2020 में लॉकडाउन अवधि के दौरान गांव के युवाओं को एकजुट किया ताकि गरीबों और वंचितों को भोजन, मास्‍क और सेनिटाइजेशन की सुविधाएं मिले और टीकाकरण अभियान को बढ़ावा दिया जा सके. अपने गांव को नशामुक्‍त करने और दलित-बहुजन बच्‍चों को शिक्षित करने के लिए सुरजीत को ब्रिटेन के डायना अवॉर्ड से सम्‍मानित किया जा चुका है. इसके अलावा सुरजीत को अशोक यूथ वेंचर फेलोशिप भी मिल चुकी है.

surjeet

बदलाव के ये ऐसे वारिस हैं जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बच्‍चों के माध्‍यम से समाज में परिवर्तन ला रहे हैं. उन बच्‍चों को आगे बढ़ा रहे हैं जिनके लिए कम ही लोग सामने आ पाते.

(पंकज चौधरी युवा कवि और समीक्षक हैं)

(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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surakshit bachpan diwas special story of children who are bringing the light to other needful child
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कैलाश सत्यार्थी के सपने को पूरा करने में जुटे हैं ये चार बच्चे
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bachpan bachao
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Surakshit Bachpan Diwas- ये हैं बदलाव के वारिस, बचपन की इमारत को मजबूत कर इन्होंने कायम की मिसाल