डीएनए हिंदी:  'ऐ दिलें नादां, ऐ दिल-ए-नादां, आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है.' फिल्म 'रजिया सुल्तान' आपने देखी हो या न देखी हो, ये गाना आपने कहीं ना कहीं, कभी ना कभी जरूर सुना होगा. अगर सुना होगा तो बेहद पसंद भी रहा होगा. मगर शायद ही आपको पता हो कि यह गाना लिखा था हिंदुस्तान के मशहूर शायर जां निसाऱ अख्तर ने.

आज की पीढ़ी के लिए इनका एक और सरल परिचय यह हो सकता है कि वह आज के जमाने के मशहूर गीतकार जावेद अख्तर के पिता हैं. खास बात यह है कि हमारी सीरीज लव लेटर में हम इस शायर के नहीं, बल्कि इस शायर की बेगम के लिखे ख़त आपके साथ साझा करने वाले हैं.  यह ख़त बेगम सफ़िया ने जां निसाऱ अख्तर को उस दौरान लिखा था, जब दोनों साथ नहीं रहते थे. काम के चलते जां निसार अख्तर को मुंबई रहना पड़ता था और सफ़िया घर और बच्चों दोनों की जिम्मेदारी उठाते हुए भोपाल में रहा करती थीं. लिखती हैं-

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अख्तर मेरे, 
कब तुम्हारी मुस्कुराहट की दमक मेरे चेहरे पर आ सकेगी, बताओ तो? बाज़ लम्हों में तो अपनी बांहें तुम्हारे गिर्द समेट कर तुमसे इस तरह चिपट जाने की ख्वाहिश होती है कि तुम चाहो भी तो मुझे छुड़ा न सको. तुम्हारी एक निगाह मेरी जिंदगी में उजाला कर देती है. सोचो तो, कितनी बदहाल थी मेरी जिंदगी जब तुमने उसे संभाला. कितनी बंजर और कैसी बेमानी और तल्ख थी मेरी ज़िंदगी, जब तुम उसमें दाखिल हुए. मुझे उन गुज़रे हुए दिनों के बारे में सोचकर गम होता है जो हम दोनों ने अलीगढ़ में एक-दूसरे की शिरकत से महरूम रहकर गुज़ार दिए. 
अख्तर! मुझे आईंदा की बातें मालूम हो सकतीं तो सच जानो मैं तुम्हें उसी ज़माने में बहुत चाहती. कोई कशिश तो शुरू से ही तुम्हारी जानिब खींचती थी और कोई घुलावट खुद-ब-खुद मेरे दिल में पैदा थी, मगर बताने वाला कौन था, कि यह सब क्यों? 
आओ!  मैं तुम्हारे सीने पर सिर रखकर दुनिया को मगरूर नजरों से देख सकूंगी. 
तुम्हारी अपनी 

सफ़िया

सफ़िया के लिखे ये ख़त बनावट से एकदम दूर थे. शायद पत्नी सफ़िया के इसी खत से मुखातिब होकर जां निसार अख्तर ने यह शेर कहा होगा- 'तुझे बांहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूं उभरती है कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूं.' 

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शादी का किस्सा
सफ़िया अख्तर और जां निसार अख़्तर का निकाह 1943 में हुआ था. सफ़िया मशहूर शायर मजाज़ की बहन थी. जां निसार जब भोपाल की नौकरी छोड़कर मुंबई चले आये थे, तब सफ़िया बच्चों को भी संभालतीं और नौकरी भी करतीं.

बताया जाता है कि उस दौरान जां निसार का मुंबई का ख़र्च भी वही उठाती थीं. दोनों का रिश्ता तकरीबन नौ साल चला. सफ़िया की कैंसर के चलते मौत हो गई. नौ सालों के अपने रिश्ते में उन्हें ज्यादातर समय दूरियां ही मिलीं.  ये दूरियां सफ़िया  ने हमेशा अपने ख़तों के जरिए इस कदर दूर कीं कि वह आज उर्दू साहित्य की अहम धरोहर बन चुके हैं. बताया जाता है कि सफ़िया के निधन के बाद जां निसार अख्तर ने उन्हें किताब की शक्ल दी थी. 

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love letter of famous personalities saafiya akhtar to shayar jaa nisar akhtar father of javed akhtar
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मशहूर शायर जां निसार अख्तर के नाम पत्नी सफ़िया का खत
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Love Letter: सफ़िया ने शायर पति जां निसार अख़्तर को लिखा,'आओ, मैं तुम्हारे सीने पर सिर रखकर दुनिया को मगरूर नज़रों से देखूं'