डीएनए हिंदी: तीन साल पहले की बात है. उत्तर प्रदेश में जेवर के एक गांव का रहने वाला लड़का मंदिर गया. उन दिनों वह पॉलीटेक्निक कॉलेज में पढ़ रहा था. उसका मंदिर जाना अक्सर होता था, मगर यूं ही मंदिर आते-जाते एक चीज पर बार-बार उसकी नजर पड़ती. वो चीज थी मंदिर का तालाब. उसने उस तालाब को पानी भरे तालाब से सूखे और गंदे तालाब में तब्दील होते देखा. वजह तलाशी तो मालूम चला कि इस तालाब में मंदिर का सारा वेस्ट प्रवाहित किया जाता है. इस वजह से तालाब की ये हालात हो गई है.

क्या होता है टेम्पल वेस्ट
मंदिर का वेस्ट. इससे पहले उसे मालूम नहीं था कि मंदिर का वेस्ट यानी टेम्पल वेस्ट क्या होता है. उसने पता किया तो मालूम चला कि मंदिर में चढ़ाई जाने वाली सामग्री, फूल-पत्तियां, धूप-अगरबत्ती की राख ये सब टेम्पल वेस्ट होता है. मान्यता के मुताबिक इसे नदी या तालाब में बहा दिया जाता है.उसने इस बारे में और जानकारी जुटाई, तब सामने आया कि इस वेस्ट के पानी में बहाए जाने से वॉटर बॉडी यानी नदी या तालाब का पूरा सिस्टम काफी खराब हो जाता है. यह पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक और इंसान के लिए बेहद खतरनाक है.

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क्या हो सकता है समाधान
अब उसने सोचना शुरू किया कि इस समस्या का समाधान क्या हो? सामने आया कि मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूलों को लेकर कई संस्थाएं काम कर रही हैं, मगर धूप-अगरबत्ती से इक्ट्ठा होने वाली राख को लेकर कोई काम नहीं किया गया है. तब उसने इस राख को क्रिएटिव तरीके से इस्तेमाल करने के बारे में सोचा और सामने आया एक स्टार्टअप एनर्जीन इनोवेशन.

यहां देखें आकाश सिंह का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

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18 साल की छोटी सी उम्र में ये स्टार्टअप शुरू करने वाले इस यंग चेंजमेकर का नाम है आकाश सिंह. टेम्पल वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट बनाने वाला उनका स्टार्टअप आज करोड़ों की कंपनी बन चुका है. उन्होंने कई इंटरनेशनल कंपनीज से भी फंडिंग मिलती है. खास बात ये है कि उनका यह स्टार्टअप गौतमबुद्ध नगर की जेल के कैदियों को भी रोजगार दे रहा है. 

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कैसा काम करता है ये स्टार्टअप
इस स्टार्टअप के काम के लिए कच्चा माल आता है मंदिरों से. मंदिरों में इक्टठी होने वाली धूप-अगरबत्ती की राख को आकाश सिंह की कंपनी हर महीने या साप्ताहिक रूप से इक्टठा करती है. इस राख को रिफाइन किया जाता है और फिर से इससे भगवान की मूर्तियां या अन्य तरह के खूबसूरत हैंडीक्राफ्ट बनाए जाते हैं. इसके जरिए रोजगार मिलता है जेल के कैदियों को और पर्यावरण संरक्षण का मकसद भी पूरा हो जाता है. 

कैसे मिली मदद
स्टार्टअप का आइडिया आना और उसका शुरू होकर सफल भी हो जाना एक संघर्ष भरा रास्ता होता है. आकाश सिंह के लिए इसमें मददगार बना  नीति आयोग का अटल इन्क्यूबेशन सेंटर.यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां पर कोई भी अपने इनोवेटिव आइडिया पिच कर सकता है और यदि आपका आइडिया वाकई आगे बढ़ सकता है तो यह सेंटर आपको सभी साधन उपलब्ध करवाता है. आकाश का आइडिया भी यहां पर पास हो गया और उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की.

अब आकाश दिल्ली-एनसीआर के 164 मंदिरों से टेम्पल वेस्ट इक्ट्ठा कर रहे हैं. उनकी टीम में 18 लोग हैं और वह जेल के 46 कैदियों को इसके जरिए रोजगार दे रहे हैं. 

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Inspiration: 18 साल की उम्र में शुरू कर दिया Startup, टेम्पल वेस्ट से बनाए हैंडी
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Akash singh with handicrafts
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Akash singh with handicrafts

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18 साल की उम्र में शुरू किया Startup, मंदिर के कचरे से बनाए हैंडीक्राफ्ट, जेल के कैदियों को भी दिया रोजगार