डीएनए हिंदी : 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के साथ भारत बड़ा देश है. उत्तर में जम्मू और कश्मीर से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर को छूने वाले देश का विस्तार पूरब में बंगाल की खाड़ी तक है और पश्चिम में अरब महासागर तक है. 32 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल वाले देश की वर्तमान जनसंख्या 2020 में 138 करोड़ से अधिक आंकी गई थी. इतने विस्तृत देश में कई हज़ार तरह की बोलियां हैं. एक प्रचलित कहावत के अनुसार "कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी." यानी हर कोस पर पानी बदलता है चार कोस पर बोली बदलती है. " कोस दूरी का मापक है. एक कोस में लग्भग तीन किलोमीटर होते हैं. इतने बड़े देश में लोग अक्सर ही एक राज्य से दूसरे राज्य जाते हैं. कई बार मसला जीवन-यापन का होता है, कई बार व्यापार तो कई दफ़े यह पढ़ाई-लिखाई से जुड़ा हुआ होता है. लोगों के एक राज्य से दूसरे राज्य में रहने के दौरान कई बार हिंसा की ख़बरें भी उभर कर सामने आई हैं. आइये जानते हैं उन मौक़ों के बारे में जब जब देश में एक राज्य के लोगों को दूसरे राज्य में हिंसा का सामना करना पड़ा -
2020 में नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति हिंसा - 2020 में कोविड के आने के बाद फरवरी और मार्च के दरमियान क्षेत्र आधारित हिंसा के 22 मामले दर्जन किए गए थे. दिल्ली में कुछ वारदात में नॉर्थ ईस्ट के लोगों को कोरोना का ज़िम्मेदार मानते हुए उनके साथ हिंसा की गई थी. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के एक शोध के मुताबिक़ दिल्ली में रहने वाले नॉर्थ ईस्टर्न लोगों में तीन चौथाई से अधिक ने क्षेत्रीय हिंसा और भेदभाव का सामना किया है. यह रपट नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के हवाले से द हिन्दू में छपी थी. इकोनॉमिक टाइम्स में 2017 में छपी एक अन्य रपट के मुताबिक़ सात सालों में दिल्ली में नॉर्थ ईस्ट लोगों के प्रति हिंसा के 704 मामले सामने आए थे. 2014 में सरकार द्वारा गठित बेज़बरुआ कमिटी के अनुसार प्रकाशित रपट में दिल्ली(Delhi) को सबसे अधिक रेसिस्ट शहर घोषित किया गया था.
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2018 में गुजरात में बिहार और यूपी के कामगारों के ख़िलाफ़ हिंसा - 2018 में चौदह महीने की बच्ची के बलात्कार के बाद हिंदी भाषी लोगों के प्रति हिंसा की एक लहर दौड़ गई थी. गौरतलब है कि हर साल कई बिहार और उत्तर-प्रदेश (Bihar and UP) के कामगार गुजरात में जीवन यापन के सिलसिले में पहुंचते हैं. गुजरात में हुई हिंसा ने हिंदी भाषियों में हड़कंप की स्थिति ला दी थी.
2008 में महाराष्ट्र में हुई हिंसा - 2008 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने समाजवादी पार्टी के स्थानीय विंग से हुई झड़प के बाद मनसे के नेता राज ठाकरे ने बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. इस टिप्पणी के बाद पुणे, नासिक, बीड सरीखी जगहों पर इन प्रदेश के प्रवासियों को भगाने और उन्हें व्यावसयिक सह शारीरिक नुकसान पहुंचाने की मुहीम शुरू हो गई. उस दरमियान पुणे (Pune) से 25000 से अधिक प्रवासी उत्तर भारतीय और नासिक से लगभग 15000 प्रवासी भारतीय हिंसा के डर से भाग गए थे. अनुमान के मुताबिक इसकी वजह से राज्य को 500 से 700 करोड़ का नुकसान हुआ था. इसकी पुनरावृत्ति 2012 में भी हुई थी.
जनवरी 2007 में उल्फ़ा के द्वारा बिहारियों पर हमला - जनवरी में मणिपुर (Manipur) में उग्रवादी संगठन उल्फ़ा के द्वारा दो बिहारी प्रवासियों को मार दिया गया था. इसके बाद बिहारियों और हिंदी भाषियों के प्रति हिंसा का एक दौड़ शुरू हो गया था.
नॉर्थईस्ट के लोगों के ख़िलाफ़ बेंगलुरु 2012 में हिंसा और हिंसक माहौल - अगस्त 2012 में किसी शरारती तत्व के द्वारा फ़ोन पर नॉर्थ ईस्ट के लोगों के ख़िलाफ़ बातें शुरू की गई. जिसके पास कुछेक जगह वहां के लोगों के साथ हिंसा की घटना सामने आई. इसके बाद हज़ारों की संख्या में उत्तर पूर्वी भारतीय शहर छोड़ने लगे.
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