डीएनए हिंदी: जिन्होंने प्यार को पढ़ा है, वो लोग अमृता-इमरोज से अनजान नहीं हो सकते. जो लोग उन्हें जानते हैं उनके इस बात से अनजान होने की संभावना शून्य है कि इमरोज और अमृता के ख़त हिंदी साहित्य की एक अहम धरोहर हैं. अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में अमृता ने खुद इमरोज़ को लिखे ख़तों का जिक्र किया है.
लिखती हैं, '26 जनवरी के गणतंत्र दिवस पर भारत सरकार की ओर से मैं नेपाल गई थी, पर मन की बड़ी उखड़ी हुई दशा थी और वहां से इमरोज़ को कई पत्र लिखे.'
अमृता के इमरोज़ को लिखे उन्हीं ख़तों में से एक-
'राही तुम मुझे संध्या वेला में क्यों मिले?
ज़िंदगी का सफर खत्म होने वाला है. तुम्हें मिलना था तो जिंदगी की दोपहर के समय मिलते, उस दोपहर का सेंक तो देख लेते'
काठमांडू में किसी ने यह हिंदी कविता पढ़ी थी. हर व्यक्ति की पीड़ा उसकी अपनी होती है, पर कई बार इन पीड़ाओं की आकृतियां मिल जाती हैं.
यह मेरी प्रतीक्षा तुम्हारे शहर की ज़ालिम दीवारों से टकराकर सदा घायल होती रही है. पहले भी चौदह वर्ष ( राम-वनवास की अवधि ) इसी तरह बीत गए और लगता है कि मेरी जिंदगी के बाकी वर्ष भी अपनी उसी पंक्ति में जा मिलेंगे...
एक ख़त इमरोज़ ने अमृता को लिखा-
जीती,
तुम जिन्दगी से रूठी हुई हो. मेरी भूल की इतनी सजा नहीं, आशी. यह बहुत ज्यादा है. यह दस साल का वनवास. नहीं-नहीं मेरे साथ ऐसे न करो. मुझे आबाद करके वीरान मत करो. वह मेज, वह दराज, वे रंगों की शीशियां, उसी तरह रोज उस स्पर्श का इंतजार करते हैं, जो उन्हें प्यार करती थी और इनकी चमक बनती थी. वह ब्रश, वे रंग अभी भी उस चेहरे को, उस माथे को तलाश करते हैं, उसका इंतजार करते हैं जिसके माथे का यह सिंगार बनकर ताजा रहते थे, नहीं तो अब तक सूख गए होते.
तुम्हारे इंतजार का पानी डालकर मैं जिन्हें सूखने नहीं दे रहा हूं पर इनकी ताजगी तुम्हारे साथ से ही है, तुम जानती हो. मैं भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, रंगों में भी जिंदगी में भी.
तुम्हारा इमरोज
अमृता अक्सर करती थीं ये शिकायत
इमरोज़ अमृता के जीवन में काफी देर से आए. अमृता इस बात की शिकायत करती थीं. वह इमरोज़ से पूछतीं, 'अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते'. जब इमरोज ने कहा कि वह अमृता के साथ रहना चाहते हैं तो उन्होंने कहा, पूरी दुनिया घूम आओ फिर भी तुम्हें लगे कि साथ रहना है तो मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करती मिलूंगी. कहते हैं कि तब कमरे में सात चक्कर लगाने के बाद इमरोज़ ने कहा कि घूम ली दुनिया. मुझे अब भी तुम्हारे ही साथ रहना है.
अमृता इमरोज का रिश्ता
अमृता-इमरोज का रिश्ता कुछ ऐसा था कि उसके बारे में पढ़कर प्यार की संभावनाओं पर शोध करने को जी चाहता है. ऐसा महसूस होता है जैसे हर खिड़की-दरवाजे से प्यार दस्तक दे रहा है और हम ही कहीं परिभाषाओं में बंधे, परदों में छिपे बैठे हैं. उनके एक-दूसरे को लिखे ख़त इतिहास की इस अलमारी में सबसे सुरक्षित जगह पर रखने की बेताबी दिलो-दिमाग को गिरफ्त में ले लेती है.
अमृता की जिंदगी
अमृता 31 अगस्त 1929 में गुंजरावाला में पैदा हुईं. अब ये जगह पाकिस्तान में है. सोलह साल की उम्र में प्रीतम सिंह से उनकी शादी हुई और वो हो गईं अमृता प्रीतम. रिश्ता निभा नहीं और तलाक हो गया.
सन् 1944 में हुई अमृता एक मुशायरे में शिरकत करने गई थीं, साहिर लुधियानवी से उनकी मुलाकात यहीं हुई. यहीं उन्हें साहिर से और उनके हर शब्द से प्यार हो गया. ये प्यार एकतरफा था या साहिर भी अमृता को चाहते थे, इसे लेकर कई बातें कही और लिखी जा चुकी हैं. हकीकत सिर्फ ये रही कि दोनों कभी साथ नहीं हो पाए.
सन् 1958 में अमृता की जिंदगी में इमरोज़ आए. इमरोज़ अमृता से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. दोनों सालों तक एक घर में साथ रहे और पीढ़ियों तक को प्यार करने की एक नई परिभाषा सिखा गए.
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Love letter: जब इमरोज़ ने अमृता प्रीतम को लिखा- मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, रंगों में भी जिंदगी में भी.