डीएनए हिन्दी: देश में ज्यादातर नेता ऐसे होते हैं जिनके भीतर जन कल्याण की भावना कम होती लेकिन उनकी इच्छाएं प्रबल होती हैं. संवैधानिक सीमा से इतर शक्तियां प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं. हालांकि, सभी राजनेता ऐसा नहीं करते, कुछ अच्छे भी होते हैं. इस तरह के अतिमहात्वाकांक्षी नेता राजनीतिक दलों के प्रति अपनी वफादारी बदलने को भी तैयार रहते हैं. आपको आश्चर्य होगा इस तरह के नेता जो छोटी-छोटी बातों को लेकर जिन पार्टियों की आलोचना करते रहते हैं, जरूरत पड़ने पर उनकी गोद में बैठ जाते हैं.
नेताओं के भीतर पैदा होने वाले अवसरवाद और असंतोष की वजह से भी उनकी निष्ठा बदल जाती है. यहां तक कि वह अपनी पार्टी के अलाकमान की भी अवहेलना कर बैठते हैं. इसके कई कारण होते हैं. उसमें से एक बड़ा कारण पार्टी के भीतर और जनता के बीच बड़े-बड़े वादे करना और झूठ बोलना भी शामिल है. इस तरह की परिस्थितियों के लिए उनकी अधूरी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी एक बड़ा कारण हैं.
पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. कांग्रेस ने पहले ही उनके खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की आलोचना करने की वजह से कारण बताओ नोटिस जारी किया था. साथ ही पार्टी की डिसिप्लनरी पैनल ने उनको दल से सस्पेंड करने की अनुशंसा भी की थी.
ध्यान रहे कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा उन्हें पंजाब में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाए जाने की वजह से भी सुनील जाखड़ नाराज चल रहे थे. गौरतलब है कि राहुल गांधी के इस फैसले के बाद सुनील जाखड़ ने सक्रिय राजनीति से संन्यास का भी फैसला लिया था.
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माना जा रहा था कि कांग्रेस देर-सबेर जाखड़ को पार्टी से निकालती ही. ऐसे में जाखड़ ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का निर्णय लिया. वैसे पहले से ही बीजेपी पंजाब में परेशान थी. उसे पंजाब में जमे-जमाए हिन्दू और सिख चेहरों की तलाश भी थी. ऐसे में जाखड़ भी बीजेपी के लिए एक अच्छे विकल्प थे. गौरतलब है कि पंजाब में लंबे समय तक बीजेपी के सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल (ब) ने अब अलग रास्ता अपना लिया है. पिछले दिनों चले किसान आंदोलन की वजह से दोनों दलों ने अलग-अलग रास्ता अपना लिया था.
गौरतलब है कि चुनाव के पहले सुनील जाखड़ पंजाब के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से दावा भी किया था कि उनके समर्थन में पार्टी के 42 विधायक हैं. इसके बावजूद चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस आलाकमान की पहली पसंद बने. इसके साथ ही सुनील जाखड़ की कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ अनबन शुरू हो गई थी. दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं.
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सुनील जाखड़ जाट समाज के एक कद्दावर नेता हैं. अभी बीजेपी की तरफ से यह स्पष्ट नहीं है कि वह प्रदेश की राजनीति में क्या भूमिका निभाएंगे. लेकिन, सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी जाखड़ के राजनीतिक अनुभव का पूरा फायदा उठाएगी. ऐसा माना जा रहा है कि पंजाब के पड़ोसी राज्य राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जाखड़ की लोकप्रियता का बीजेपी फायदा उठा सकती है.
कांग्रेस को अलविदा कहने वाले सुनील जाखड़ बीजेपी के लिए पंजाब में भी एक बड़ चेहरा हो सकते हैं. वह प्रदेश में पार्टी के लिए एक बड़ा हिन्दू चेहरा बन सकते हैं. ध्यान रहे कि सुनील जाखड़ के पिता बलराम जाखड़ एक बड़े नेता थे. साथ ही उनकी देश के टॉप किसान नेताओं में गिनती होती थी. पंजाब के साथ-साथ उनकी लोकप्रियता देशभर में थी. वह लोकसभा अध्यक्ष और देश के कृषि मंत्री भी रह चुके थे.
(लेखक रवींद्र सिंह रॉबिन वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह जी मीडिया से जुड़े हैं. राजनीतिक विषयों पर यह विचार रखते हैं.)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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बीजेपी के सुनील जाखड़ कांग्रेस के लिए बनेंगे नई चुनौती!