डीएनए हिंदी: Monsoon Update- इस बार सर्दी का मौसम कब आया और चला गया, पता ही नहीं चला. महसूस हुई बस सर्दी के लिए पहचान रखने वाले दिनों में भयानक गर्मी. इसके बाद आया मार्च का महीना. फसल कटने का समय और सामान्य से कहीं ज्यादा बारिश और ओलावृष्टि का कहर. इन सबसे आपको प्रकृति के बदलते रंग और जलवायु के बिगड़ते प्रकोप का अंदाजा लग गया होगा, लेकिन असली खबर इससे भी ज्यादा डराने वाली है. मौसम विभाग का अनुमान है कि प्रशांत महासागर में अल-नीनो (El-Nino Effect) प्रभावी हो रहा है. इसके चलते जहां गर्मी बेहद ज्यादा सताएगी, वहीं इसके बाद मानसून की बूंदों से कम राहत मिलेगी यानी बारिश कम होगी.
15 फीसदी कम हो सकती है मानसूनी बारिश
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) ने इस साल के अल-नीनो (El-Nino) या एन्सो न्यूट्रल ईयर (ENSO-neutral year) साबित होने का अनुमान लगाया है. ऐसा हुआ तो मानसून में सामान्य से कम बारिश होगी. एक अनुमान है कि मानसून में 15 फीसदी तक बारिश में कमी देखने को मिल सकती है. पिछले साल जून से सितंबर तक देश में 868 मिलीमीटर की सामान्य बारिश के मुकाबले 925 मिलीमीटर मानसूनी पानी बरसा था. तब भी 17% इलाकों में सूखे जैसे हालात दिखे थे. ऐसे में इस बार बारिश में कमी होने पर और ज्यादा इलाकों में सूखा देखने को मिल सकता है.
राहत की लहर सिर्फ पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से आ सकती है. जैसा साल 2021-22 में हुआ था.
मिल रहा है अल-नीनो का इशारा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक साइंस के वैज्ञानिकों ने CSE को गर्मियों में प्रशांत महासागर के अल-नीनो प्रभाव की चपेट में आने का इशारा किया है. इसके चलते मानसूनी बारिश प्रभावित होने के आसार हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्दियों में ला-नीना प्रभाव का असर दिख रहा था, लेकिन गर्मियों में ये एन्सो-न्यूट्रल इफेक्ट में बदल रहा है. पश्चिमी प्रशांत महासागर की सतह अंदर से तेजी के साथ गर्म हो रही है. यह गर्मी मध्य प्रशांत की तरफ बढ़ेगी. इसके चलते मार्च से मई के बीच 78 फीसदी न्यूट्रल इफेक्ट रहेगा यानी ना ला-नीना प्रभावी होगा और ना अल-नीनो. इस एन्सो-न्यूट्रल इफेक्ट का सीधा असर मानसूनी हवाओं की नमी पर होगा, जिसके चलते सामान्य से 15 फीसदी तक कम मानसूनी बारिश होने के आसार हैं.
उत्तरी ध्रुव दे सकता है राहत
वैज्ञानिकों का कहना है कि मानसूनी बारिश में कमी से राहत एक ही स्थिति में मिल सकती है, यदि आर्कटिक यानी उत्तरी ध्रुव से आने वाली ठंडी हवाओं का रुख भारत की तरफ हो. इसके चलते देर से ही सही, लेकिन भरपूर बारिश देखने को मिल सकती है. ऐसा इससे पहले साल 2021-22 में हो चुका है. साल 2021 में मानसून का शुरुआती दौर फीका रहा था, लेकिन उसके बाद ऐसी झमाझम बारिश हुई थी कि रिकॉर्ड टूट गए थे. बारिश का यह दौर सितंबर के बाद अक्टूबर के महीने तक भी चला था. तब सामान्य से 1 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई थी. इस बार भी आर्कटिक से आने वाली हवाओं की मेहरबानी रही तो मानसून में राहत की सांस मिल सकती है. नहीं तो पहले गर्मी की तपिश और उसके बाद सूखे की मार के लिए अभी से तैयार रहना होगा.
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सर्दी के बाद अब गर्मी तड़पाएगी, प्रशांत महासागर ने दिए संकेत, जानिए कैसी रहेगी मानसूनी बारिश