डीएनए हिंदी: उत्तराखंड के पौड़ी जिले के लोग इन दिनों दहशत में हैं. वजह है कि एक सप्ताह के भीतर दूसरे शख्स की जान ले चुका है. बाघ नागरिक इलाकों में शान से घूम रहे हैं. गायों का शिकार कर रहे हैं. उनके शिकार का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. सरकार की ऐसी नींद उड़ी कि 25 गांवों में नाइट कर्फ्यू तक लगाना पड़ा. बच्चों को स्कूल तक नहीं भेजा जा रहा है. स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि वन विभाग इस बाघ को नरभक्षी करार दे दे.
रिखणीखाल ब्लॉक में 3 दिन के अंदर दूसरे शख्स को मार डाला. बाघ ने दरिंदगी से 75 साल के शख्स का शव नोच लिया था. उसकी अधखाई लाश को देखकर लोग हैरान हैं. 13 अप्रैल को भी एक शख्स की जान बाघ ले चुका था. दल्ला गांव में बाघ मवेशियों पर भी अटैक कर रहा है. ऐसा नहीं है कि वन विभाग चुप बैठा है. वन विभाग की कई टीमें इस बाघ को ढूंढने की कोशिश कर रही हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के एक अधिकारी ने कहा है कि ट्रेंकुलाइज करने की एक टीम मौके पर पहुंची है.
क्यों नागरिक इलाकों में दस्तक दे रहे हैं बाघ?
बाघों की आबादी अब देश में 3,167 तक पहुंच गई है. टाइगर कंजर्वेशन रिजर्व फाउंडेशन के सदस्य अब्दुल गफ्फार अंसारी कहते हैं कि जिन इलाकों में बाघों की संख्या ज्यादा है, उन्हें 'लिविंग विद टाइगर' के सिद्धांत पर जीना सिखाया जा रहा है. लोगों को बाघ के साथ रहना सिखाया जा रहा है. नागरिक इलाकों में बाघ देखे जाने की खबरें बिलकुल नई नहीं है. शिकार की तलाश में बाघ नागरिक इलाकों में भी पहुंच रहे हैं. बाघ किसी एक इलाके में सिमट नहीं सकता.
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टाइगर नए इलाकों में अपना साम्राज्य तलाशता है. बाघों का कोई एक इलाका नहीं होता है. आमतौर पर बाघ अकेले रहते हैं. कई बार शिकार की तलाश में वे रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं. भूख लगने पर अगर इंसान सामने पड़ता है तो उन्हें वे निवाला बना लेते हैं. आमतौर पर ऐसी घटनाएं कम होती हैं लेकिन इसकी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.
एजी अंसारी कहते हैं कि उत्तराखंड में बाघों की संख्या बढ़ रही है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या करीब 800 क्रॉस कर चुकी है. सबसे ज्यादा बाघ इसी इलाके में हैं. वन विभाग के मुताबिक 2000 से 2022 तक बाघ के हमले में 59 लोग मारे जा चुके हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कुल 1288.31 वर्ग किलोमीटर इलाके में बाघों की आबादी सबसे ज्यादा है. ऐसे में बाघों का संघर्ष भी इसी इलाके में ज्यादा है.
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एजी अंसारी के मुताबिक पौड़ी, टिहरी और अल्मोड़ा में बाघों के देखे जाने की बात नई नहीं है. इन इलाकों में गुलदार सबसे ज्यादा पाए जाते हैं लेकिन बाघ भी यहां देखे जाते हैं. पौड़ी में बाघ के वायरल हो रहे वीडियो में कुछ भी नया नहीं है.
'लिविंग विद टाइगर' मुहिम पर बढ़ रहा उत्तराखंड
कालाढूंगी और रामनगर के लोग 'लिविंग विद टाइगर' मुहिम के साथ जीना सीख रहे हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और कालागढ़ टाइगर रिजर्व के इलाकों में धीरे-धीरे गांव के लोग यह जान गए हैं कि कैसे बाघों के साथ रहना है. रामनगर इलाके में तो ग्रामीण इतने सतर्क हैं कि उन्हें पता है कि कब बाघ का खतरा सामने आ सकता है. रामनगर का वन विभाग भी ग्रामीणों के साथ हमेशा संपर्क में रहता है.
India now has 75% of world’s wild tigers, numbering around 3200.
— Susanta Nanda (@susantananda3) April 22, 2023
It will reach it’s carrying capacity soon, until we are obsessed with numbers & make them pests in human dominated habitats. pic.twitter.com/otdEBjA3AP
बाघों को देखने लोग बड़ी संख्या में इस इलाके में आते हैं. यहां के बाघ स्थानीय रोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं. यहां की अर्थव्यवस्था इसी पर आधारित हो रही है. ऐसे में लोग खुद बाघों को बचाने की मुहिम भी चलाते हैं, जबकि सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं को है. अगर इलाके में शिकारी नजर आते हैं या कोई भी संदिग्ध शख्स दिखता है तो सबसे पहले वन अधिकारियों को ग्रामीण खबर करते हैं और खुद भी उन्हें पकड़वाने में लग जाते हैं. यहां बाघों की बढ़ी हुई आबादी की एक वजह यह भी है.
बाघ से बचने के लिए क्या करें?
एजी अंसारी कहते हैं कि आमतौर पर अगर किसी इलाके में बाघ दस्तक देता है तो वन विभाग नागरिकों को अलर्ट करता है. कर्फ्यू से पैनिक क्रिएट होता है लेकिन सामान्य प्रक्रिया के तहत अधिकारी इसे ऐसे इलाके में लागू करता देते हैं. लोगों से रात में जंगल में न जाने की सलाह दी जाती है. दिन में भी जंगल में जाने से बचें. अगर बाघ का पग मार्क नजर आए तो उस इलाके में बिलकुल न जाएं. रात में ऐसे इलाकों में आवाजाही पूरी तरह से बंद करें. ऐसा दुर्लभ है कि आप शारीरिक ताकत से बाघ का मुकाबला कर ले जाएं, ऐसे में उससे जितनी दूरी बनी रहे, उतना ही बेहतर है.
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पौड़ी के जंगलों में 'नरभक्षी' का आतंक, 3 दिन में दो शिकार, 25 गांवों में कर्फ्यू, पढ़ें क्यों हैं ऐसे हालात