डीएनए हिंदी: राजस्थान की राजनीति में नई सियासी पार्टी की एंट्री नहीं होने वाली है. सचिन पायलट न तो कांग्रेस छोड़ रहे हैं, न ही उनकी योजना, अलग राजनीतिक पार्टी बनाने की है. सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा है कि सचिन पायलट, बिना कांग्रेस आलाकमान से बातचीत किए हुए, कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे, जिससे पार्टी तोड़ने का आरोप, उन पर आए.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी सियासी अनबन, कभी न खत्म होने वाली लड़ाई बन गई है. राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने मंगलवार को कहा कि सचिन पायलट का पार्टी छोड़ने या तोड़ने का कोई इरादा नहीं है.
सुखजिंदर सिंह रंधावा ने उन अटकलों को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया जा रहा था कि सचिन पायलट, राजस्थान में अलग सियासी पार्टी बनाने की चाह रखते हैं. सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा, 'यह बातें सिर्फ मीडिया में हो रही हैं. सचिन पायलट, पहले अलग पार्टी नहीं बनाना चाहते थे, अब भी नहीं चाहते हैं.'
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कांग्रेस को भरोसा, सुलझ गया है विवाद
सुखजिंदर सिंह रंधावा ने यह भी कहा, 'अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मुद्दे पर चार घंटे तक चर्चा हुई. दोनों के बीच विवाद को निपटाने के लिए एक फॉर्मूला बनाया गया है. दोनों के बीच के 90 फीसदी विवाद सुलझा लिए गए हैं. अगर दोनों के बीच समझौता नहीं होता तो वे उस दिन दिल्ली में मीडिया के सामने एक साथ नहीं आते.'
2018 की लड़ाई, कहीं मिटा न दे कांग्रेस की 'कमाई'
साल 2018 में राजस्थान में कांग्रेस जबसे सत्ता में आई, अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे में सियासी जंग शुरू हो गई. सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच टकराव कभी खत्म ही नहीं हो पाया. दोनों के बीच तनाव 2020 में चरम पर था, जब महामारी के बावजूद, सचिन पायलट अपने वफादार विधायकों के साथ गुरुग्राम के पास एक रिसॉर्ट में चले गए. ऐसा लगा कि अशोक गहलोत सरकार गिर जाएगी और सचिन पायलट, अपनी मांगें कांग्रेस से मनवा लेंगे.
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अटकलें ये भी लगाई गईं कि सचिन पायलट बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनेंगे. ऐसा कुछ हुआ नहीं. कांग्रेस की सरकार गिरते-गिरते बच गई थी. कई दिन तक सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी इस समीकरण को सुलझाने में जुटे रहे. किसी तरह बीच की राह निकली. तब तक सचिन पायलट का डिप्टी सीएम पद छीना जा चुका था और उनकी बहाली अब तक नहीं सकी. अशोक गहलोत इस जंग में सबसे बड़े हीरो बनकर उभरे. अब डर बस इतना ही है कि एकता की वजह से हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मिली जीत की कमाई, राजस्थान में कांग्रेस गंवा न दे क्योंकि कलह तो सुलझता नजर नहीं आ रहा है.
क्या वजह है कि नई पार्टी बनाने से डर रहे सचिन पायलट?
कांग्रेस से अलग जाने का अंजाम, सचिन पायलट जानते हैं. साल 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों के नतीजों से कांग्रेस के हर बागी को डर लगता है. वजह यह है कि सिद्धू से अनबन और सोनिया गांधी के दबाव के बाद कैप्टन अमरिंदर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जा मिले और नई राजनीतिक पार्टी बना ली.
कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में नई पार्टी के साथ उतरे. उन्हें चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का साथ भी मिला था. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सीधी लड़ाई में वह अपनी सीट तक गंवा बैठे थे. उनकी नई पार्टी एक सीट भी हासिल करने में कामयाब नही हो सकी थी.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सचिन पायलट को भी यही डर लगा रहा है. अगर उन्होंने जल्दबाजी में नई सियासी पार्टी बना ली तो उनके हाथों से 2023 के अंत में होने वाला विधानसभा चुनाव भी जा सकता है और 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव भी. ऐसे में सचिन पायलट, किसी भी तरह की राजनीतिक गलती करने से डर रहे हैं.
कांग्रेस में अपना भविष्य कहां देखते हैं सचिन पायलट?
राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट लोकप्रिय नेता रहे हैं. अभी उनकी ओर से दावा किया जाता है कि 20 से ज्यादा विधायक उनके समर्थक हैं. कांग्रेस में अशोक गहलोत के बाद सबसे बड़े दूसरे नेता का जिक्र जब भी होता है, तब सचिन पायलट का ही जिक्र होता है. अशोक गहलोत रिटायरमेंट की तरफ हैं, वहीं सचिन पायलट युवा हैं. उन्हें राजस्थान की राजनीति में दूर तक सियासी उड़ान भरनी है. वह कांग्रेस में अपने भविष्य को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.
अगर वह अपने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह बीजेपी से हाथ नहीं मिलाते हैं तो ऐसा हो सकता है कि ाने वाले कुछ साल में उन्हें कांग्रेस अहम जिम्मेदारी भी सौंपे. अशोक गहलोत के रहते, ऐसा अभी मुमकिन नजर नहीं आ रहा है.
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कैप्टन जैसे अंजाम का डर या कांग्रेस में दिख रहा भविष्य, किस वजह से नई पार्टी नहीं बनाएंगे सचिन पायलट?