डीएनए हिंदी: मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच भड़की जातीय हिंसा, अपने भयावह दौर में पहुंच चुकी है. अलग-अलग विद्रोही गुटों के उभार ने राज्य को अराजक स्थिति में पहुंचा दिया है. गुरुवार को महिलाओं को नंगा करके परेड कराने की खबर पर भी देशभर में उबाल है. राज्यव्यापी हिंसा को रोकने के लिए सुरक्षाबलों से लेकर मणिपुर पुलिस तक तैनात है फिर शांति बहाल नहीं हो सकी है. लोग हिंसा के लिए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उन पर आरोप लग रहे हैं कि वह समुदाय विशेष का साथ दे रहे हैं, उन्हें तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.
मणिपुर 3 मई से ही सुलग रहा है. राज्य में जातीय हिंसा चरम पर है. ऐसा लग नहीं रहा है कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच अब रिश्ते सामान्य होंगे. दोनों समुदाय, एक-दूसरे के जान के प्यासे हो गए हैं. विपक्ष का कहना है कि मणिपुर के सबसे विफल मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बीरेन सिंह हैं,जिनसे हिंसा नहीं संभल रही है.
सफल फुटबॉलर जो राजनीति में साबित हो रहे कमजोर
एन बीरेन सिंह की उम्र 62 साल है. वह राज्य के जाने-माने फुटबॉल खिलाड़ी थे. बीएसएफ जालंधर फुटबॉल टीम को एक बार उनका प्रदर्शन बेहद पसंद आया. उन्होंने 1979 से लेकर 1984 तक कई जगह मैच खेला. 1991 में, उन्होंने डूरंड कप के फाइनल मैच भी खेला. वह बेहद शानदार खिलाड़ी रहे हैं. उन्होंने अपने तीन बच्चों में से सबसे छोटे का नाम ब्राज़ीलियाई फुटबॉलर ज़िको के नाम पर रखा, घर पर उन्हें पेले कहकर बुलाया जाता था.
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पत्रकारिता से राजनीति में ऐसे ली एंट्री
खेल से रिटायर होकर बीरेन सिंह जब मणिपुर लौटे, तो उन्होंने पत्रकारिता की ओर रुख किया. उन्होंने अपने पिता से विरासत में मिली दो एकड़ जमीन बेच दी और थौडन नामक अखबार शुरू किया, जो जल्द ही लोकप्रिय हो गया.
मणिपुर 90 के दशक के अंत तक हिंसा ग्रस्त रहा है. साल 2000 की शुरुआत में असम राइफल्स पर संगीन आरोप लगे. आरोप लगे कि बस स्टॉप पर इंतजार कर रहे 10 नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इरोम शर्मिला दशकों वर्षों तक भूख हड़ताल पर बैठी रहीं. साल 2004 में, मणिपुर में मनोरमा बलात्कार और हत्या केस में विरोध प्रदर्शन हुआ. महिलाओं ने अपने कपड़े उतारकर सेना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.
एक घटना ने खिलाड़ी को बना दिया राजनेता
एन बीरेन सिंह, इन घटनाओं से हिल गए थे. भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ बढ़ते गुस्से ने उन्हें पत्रकारिता से राजनीति में उतरने के लिए उकसाया. उन्होंने सोचा कि इन स्थितियों को तभी बदला जा सकता है, जब राजनीति में शामिल हों.
साल 2001 में उन्होंने अपना अखबार 2 लाख रुपये में बेच दिया. उन्होंने राजनीतिक चंदा मांगा और निर्दलीय चुनाव लड़ा. उनकी मांग थी कि राज्य में कठोर सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को रद्द कर दिया जाए.
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में हो गए थे शुमार
एन बीरेन सिंह का राजनीतिक करियर चल पड़ा. उन्हें जनता का साथ मिला. अपना पहला चुनाव जीतते ही कांग्रेस नेता और तत्कालीन सीएम ओकराम इबोबी सिंह ने उन्हें नोटिस कर लिया. इबोबी ने उनसे समर्थन हासिल किया. वह कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन देते रहे.
बाद में बीरेन सिंह औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हो गए और 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. जीतने के बाद, उन्हें सिंचाई और बाढ़ और खेल मंत्री बनाया गया.
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इबोबी के संरक्षण में, सीएम के दाहिने हाथ और संकटमोचक के तौर पर एन बीरेन सिंह की लोकप्रियता बढ़ती रही. कांग्रेस सरकार के कई फैसलों के पीछे इन्हीं का हाथ बताया जाता था.
ऐसे कांग्रेस से बिखराव की पड़ी नींव
हालांकि, 2012 में अगले चुनाव के बाद, उनके संबंधों में खटास शुरू हो गई. प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापस आने के बाद, सीएम इबोबी ने अपने मंत्रिमंडल में अन्य कांग्रेसियों को शामिल किया. एन बीरेन सिंह पदमुक्त हो गए. उस वक्त तक बीरेन की मुख्यमंत्री बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी, लेकिन सीएम के लिए किए गए सभी रचनात्मक कामों के बावजूद मंत्रिमंडल से हटाए जाने से वह असंतुष्ट थे.
साल 2016 में, एन बीरेन सिंह ने अपने 20 विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस छोड़ने की धमकी दी. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, इबोबी ने कुशलतापूर्वक अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया और नाराज बीरेन सिंह को मना लिया. उन्हें राज्य कांग्रेस का उपाध्यक्ष और प्रवक्ता बना दिया.
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वह कुछ दिनों तक शांत रहे लेकिन साल 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले, उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. ओकराम इबोबी पर उन्होंने आरोप लगाया कि वह वंशवादी राजनीति कर रहे हैं और उनके बेटे और पत्नी दोनों को चुनाव के लिए कांग्रेस का टिकट दे रहे हैं.
जिसके चलते कांग्रेस से निकले, उसी में बुरी तरह घिरे बीरेन सिंह
एन बीरेन सिंह ने ओकराम इबोबी पर ध्रुवीकरण करने और विभाजनकारी राजनीति करने, नागाओं और मैतेई के बीच दरार पैदा करने का भी आरोप लगाया था. साल 2017 के चुनावों से पहले, उन्होंने कहा था कि अगर हमने इसका तुरंत समाधान नहीं किया, तो हम अपने आदिवासी भाइयों और बहनों को खो देंगे. बीजेपी भाजपा मणिपुर के लोगों को एकजुट करने वाली ताकत बनेगी. हम आदिवासियों और मैतेई समुदाय को फिर से एक साथ लाएंगे. फिर, विडंबना यह है कि एन बीरेन सिंह पर अब मेइतेई और कुकी के बीच विभाजन को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है. यही वजह है कि राज्य में हिंसा भड़की है और वह अपनी आंखों के सामने राज्य को टूटते-बिखरते देख रहे हैं.
उन्हीं की आंखों के सामने जलाया जा रहा मणिपुर
विपक्षी दलों का कहना है कि ओकराम इबोबी सिंह गलत नहीं थे. वे जानते थे कि प्रशासनिक तौर पर एन बीरेन सिंह इतने मजबूत नहीं हैं कि राज्य की कमान उन्हें सौंप दी जाए. मणिपुर की हालिया स्थिति को देखें तो यह सच नजर आ रहा है. उन्हीं के सामने, उनके शासनकाल में राज्य जलाया जा रहा है और वह मूकदर्शक बने नजर आ रहे हैं. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच भड़की हिंसा, शांति में तब्दील होती नजर नहीं आ रही है.
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