डीएनए हिंदी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इतनी बुरी नहीं है. आरएसएस में कई लोग अच्छे और सच्चे हैं, जो बीजेपी का समर्थन नहीं करते हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के इस बयान के बाद सियासी बवाल मचा हुआ है. उनके इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल किया जा रहा है. असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस और वामपंथी उनके इस बयान पर चुटकी ले रहे हैं. हालांकि, RSS की तारीफ ममता ने पहली नहीं की है. इससे पहले 2003 में ममता ने आरएसएस को देशभक्त बताया था.
लेकिन इस बात को करीब 20 साल बीत चुके हैं. तब बंगाल में ममता की लड़ाई वामपंथियों से थी. लेकिन अब ममता की लड़ाई सीधी बीजेपी से है. वर्तमान में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी अब कहीं नही टिकते. विधानसभा और लोकसभा दोनों में ही टीएमसी का टकराव बीजेपी से है. जानकारों की माने तो फिर से आरएसएस की याद ममता बनर्जी को यूं ही नहीं आई है.
ममता बनर्जी राजनीति की वो मंझी राजनेता हैं, जिनके मुंह से कोई भी वाक्य अनायास नहीं निकलता. उसके पीछे कोई न कोई वजह जरूर छिपी होती है. RSS का जिक्र फिर से छेड़ना उनकी राजनीति का हिस्सा है. उन्हें पता है कि उनके विरोधी इस बयान को एंटी मुस्लिम करने कोशिश करेंगे. लेकिन उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन विरोधी क्या कहता है.
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ममता के बयान का क्या है मतलब?
राजनीतिक समझ रखने वाले एक्सपर्ट की मानें तो ममता बनर्जी आरएसएस की तारीफ करके संघ और बीजेपी के बीच एक दरार पैदा करना चाहती हैं. उन्हें पता है इससे बीजेपी थोड़ी असहज होगी और बंगाल में बीजेपी की असली ताकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. साल 2011 में बंगाल में आरएसएस की कुल मात्र 530 शाखाएं लगती थीं लेकिन 2015-16 में आंकड़ा बढ़कर 1,500 के पार जा चुका है.
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BJP को कमजोर करना चाहती हैं ममता
ममता बनर्जी को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले 2023 के पंचायत चुनाव में उतरना है. ऐसे में उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से होगा. ममता को पता है कि 2024 से पहले बीजेपी को कमजोर नहीं किया गया तो उसकी सत्ता को खतरा पैदा हो सकता है. ममता की रणनीति है कि जो जगह बंगाल में विपक्ष में बीजेपी ने हथिया ली है. वो वापस लेफ्ट के पास जानी चाहिए. उन्हें मालूम है कि राज्य में बीजेपी की असली ताकत आरएसएस का ग्राउंड वर्क है.
कांग्रेस ने लगाया ये आरोप
वहीं, आरएसएस के सराहना वाले बयान पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब ममता ने संघ की तारीफ की है. उन्होंने 2003 में आरएसएस के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में भाग लिया था और तत्कालीन लेफ्ट गवर्मेंट को हटाने से लिए समर्थन मांगा था. चौधरी ने कहा कि ममता चुनावी फायदे के लिए कभी मुसलमानों तो कभी कट्टर हिन्दुओं को लुभाती रहती हैं. वह एक बार फिर बेनकाब हो गई हैं.
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ममता बनर्जी को 20 साल बाद RSS की फिर क्यों आई याद? क्या हैं इसके राजनीतिक मायने