डीएनए हिंदी: संसद में आपराधिक कानूनों से जुड़े तीन विधेयक पारित हो गए हैं. एक तरफ जब विपक्ष के 143 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है, दूसरी तरफ केंद्र ने यह अहम विधेयक ध्वनिमत से पारित करा लिया है. इन कानूनों के जरिए अहम बदलाव करने की कोशिश की गई है. अब पुलिस हिरासत में मौजूदा 15 दिनों की सीमा बढ़ाकर 90 दिन तक कर दी गई है. आतंक, भ्रष्टाचार और संगठित अपराध को पहली बार सामान्य कानून के तहत लाने से लेकर समलैंगिकता और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने तक कई अहम कानूनों में बदलाव हुआ है.
लोकसभा से बुधवार को तीन प्रमुख विधेयक पारित हुए हैं. इन विधेयकों में भारतीय न्याय (II) संहिता, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा (II) संहिता, 2023; और भारतीय साक्ष्य (II) विधेयक, 2023 पारित हुआ है. ये बिल देश के आपराधिक कानूनों को पूरी तरह से बदलने देंगे.
क्यों बदले गए हैं पुराने कानून
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और संवैधानिक कानूनों के जानकार अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्र कहते हैं कि अगर ये कानून एक बार लागू हो गए तो ये भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 और भारतीय साध्य अधिनियम 1872 की जगह ले लेंगे. गृहमंत्री अमित शाह ने इन कानूनों को बदलने के पीछे तर्क दिया है कि इनका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों के बनाए गए कानूनों को स्वदेशी बनाना है. एक अरसे से इन कानूनों पर बहस होती रही है क्योंकि ये कानून ब्रिटिश इंडिया के समय से चले आ रहे हैं.
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राजद्रोह अब होगा देशद्रोह
एडवोकेट आनंद कुमार मिश्र बताते हैं कि केंद्र सरकार ने तीन ऐसे कानूनों में बदलाव किया है, मान्यता है कि जिनमें ब्रिटिश औपनिवेशिक छाप साफ नजर आती है. सरकार ने राजद्रोह, समलैंगिकता के अपराधिकरण और व्यभिचार से जुड़े कानूनों को निरस्त कर दिया है. उनका कहना है कि राजद्रोह के अपराध का नाम बदलकर देशद्रोह किया गया है.
'ये अंग्रेजों के बनाए कानून नहीं'
गृहमंत्री अमित शाह ने देशद्रोह के प्रावधानों में बदलाव और आतंकवाद को परिभाषित करने सहित विधेयक के प्रावधानों का दृढ़ता से बचाव किया. गृहमंत्री ने लोकसभा में कहा कि राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कार्य दंडनीय होगा. यह अंग्रेजों का नियम नहीं है. ये कांग्रेस का नियम नहीं है. यह भाजपा और नरेंद्र मोदी का शासन है. आतंकवाद को बचाने का कोई तर्क यहां काम नहीं करेगा. केंद्र सरकार का साफ इशारा है कि अपराध कानून बदल जाएंगे. उन्होंने कहा कि पहली बार, मोदी जी के नेतृत्व में हमारे संविधान की भावना के अनुसार कानून बनाए जा रहे हैं. मुझे 150 साल बाद इन तीन कानूनों को बदलने पर गर्व है.
अपराध से जुड़े कानूनों में क्या हुए हैं अहम बदलाव?
- एडवोकेट अनुराग कहते हैं कि पहले दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में कुल 484 धाराएं थीं. अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (II) 2023 में कुल 531 धाराएं होंगी. 177 धाराएं बदल दी गई हैं. 9 नए सेक्शन और 39 सब सेक्शन शामिल किए गए हैं. 44 नए स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं. 35 सेक्शन ऐसे हैं जिनमें समय सीमाएं जोड़ दी गई हैं. कुल 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है.
- गृहमंत्री अमित शाह ने विधेयक पर हुई बहस के दौरान कहा कि IPC में कुल 511 धाराएं हैं और भारतीय न्याय (II) संहिता में 358 धाराएं होंगी; नए कानून के दायरे में 31 नये अपराध शामिल किये गए हैं; 41 अपराधों के लिए कारावास की अवधि बढ़ा दी गई है; 82 अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है; 25 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सज़ा का प्रावधान किया गया है; 6 अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में जोड़ा गया है; और 19 धाराएं निरस्त कर दी गई हैं.
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- गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है है कि भारतीय साक्ष्य (II) विधेयक, 2023 में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की 167 धाराओं की तुलना में 170 धाराएं हैं; 24 धाराएं बदली गईं; दो नए सेक्शन जोड़े गए हैं; और छह धाराओं को निरस्त कर दिया गया है. भारतीय न्याय संहिता 2023, आईपीसी की जगह लेने वाला विधेयक है, जो पहली बार मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम को एक अलग अपराध बनाता है. ऐसे मामलों में आजीवन कारावास से लेकर मौत तक की सजा के प्रावधान हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है. अमित शाह ने अपने 70 साल के शासन के दौरान मॉब लिंचिंग पर मजबूत प्रावधान नहीं बनाने के लिए कांग्रेस की भी आलोचना की.
- गृहमंत्री अमित शाह ने गैर इरादतन हत्या के मामलों में डॉक्टरों की सजा कम करने के लिए एक आधिकारिक संशोधन पेश किया है. विधेयक के पुराने संस्करण में, भारतीय न्याय संहिता में जल्दबाजी या लापरवाही से की गई मौत के लिए पांच साल की जेल की सजा निर्धारित की थी. हालांकि, नया संस्करण रजिस्टर्ड चिकित्सा चिकित्सकों के लिए एक अपवाद का प्रावधान लेकर आया है. इस प्रावधान के तहत, जेल की अवधि 2 साल तक बढ़ाई जा सकती है.
- अब पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर जीरो-FIR दर्ज करा सकता है और इसे 24 घंटे के भीतर संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित करना अनिवार्य होगा.
- पहले केवल 19 अपराधों में ही किसी को भगोड़ा घोषित किया जा सकता था, अब 120 अपराधों में भगोड़ा घोषित करने का प्रावधान किया गया है.
अब हत्या, रेप, और फ्रॉड पर लगेंगी भारतीय न्याय संहिता की ये धाराएं
सुप्रीम कोर्ट के AOR विशाल अरुण मिश्र के मुताबिक अब पुलिस और अधिवक्ताओं के माथे पर बल पड़ने वाले हैं क्योंकि उन्हें नई प्रक्रियाओं को अपनाना पड़ेगा. दशकों से वे जिन धाराओं के तहत केस तैयार करते थे, उनकी पैरवी करते थे, अब उनमें व्यापक संशोधन हो गए हैं. एक नए सिरे से पूरे आपराधिक कानूनों और उनके स्पष्टीकरण को समझने के लिए संशोधन को पढ़ना पड़ेगा. कानून के विद्यार्थियों के लिए ये मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. उन्हें पूरी तैयारी नए सिरे से करनी पड़ेगी. आइए जानते हैं क्या अहम बदलाव हुए हैं-
- हत्या के लिए धारा 101
- धोखाधड़ी के लिए धारा 316
- अपहरण के लिए धारा 135
- रेप 63, गैंगरेप 70
- छिनैती धारा 302
- राजद्रोह के लिए धारा 150
- देश विरोधी गतिविधि के लिए धारा 146
- पब्लिक प्लेस पर हंगामा के लिए धारा 187
- देश के खिलाफ षड्यंत्र के लिए धारा 145
- शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने पर धारा 69
कब पहली बार पेश हुए थे विधेयक
तीनों विधेयक पहली बार अगस्त में संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन पेश किए गए थे और उन्हें संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया था. बीजेपी सांसद बृज लाल की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति ने सितंबर और अक्टूबर के बीच छह दिनों में नौ बैठकों में अलग-अलग पक्षों से मुलाकात की थी.
हटाए गए ब्रिटिश इंडिया के चिह्न
- 9 जगहों पर पागल और बेवकूफ जैसे टर्म हटाए गए हैं.
- 'ब्रिटिश कैलेंडर', 'क्वीन', 'ब्रिटिश इंडिया, 'जस्टिस ऑफ द पीस' जैसे औपनिवेशिक विशेषण हटाए गए हैं.
- 44 जगहों पर कोर्ट ऑफ जस्टिस को कोर्ट से रिप्लेस कर दिया है.
- भारतीय न्याय संहिता में चाइल्ड शब्द के इस्तेमाल में एकरूपता लाई गई है.
- ड्राफ्ट तैयार करने के लिए समकालीन शैली का इस्तेमाल किया गया है.
- 12 स्थानों पर 'डिनोट्स' को 'कोर्ट' से बदल दिया गया है.
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