डीएनए हिंदी: कांग्रेस (Congress) पार्टी की कई राज्यों में सरकार भले ही है लेकिन जिन राज्यों में उनकी सियासी जमीन कमजोर हुई है, वहां क्षेत्रीय पार्टियां जरा भी भाव नहीं दे रही हैं. बात चाहे पश्चिम बंगाल की हो या उत्तर प्रदेश की, कांग्रेस को मजबूत पार्टी मानने तक के लिए कोई दल नहीं तैयार हैं. यह वही कांग्रेस है, जिसके 10 साल पहले देश में सरकार थी, किसी को यकीन नहीं हो रहा है. क्षेत्रीय दलों के नेता भले ही कांग्रेस पर भड़के हों लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने ऐसी चुप्पी साधी है कि उन्हें उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव 2024 का ऐलान होते-होते गठबंधन पर बात बन जाएगी. इंडिया ब्लॉक की सरकार बन जाएगी.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन के घटक दल जहां बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक, एक सुर में बोलते नजर आते हैं, वहीं इंडिया ब्लॉक के दलों का बिखराव साफ नजर आता है. आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अरविंद केजरीवाल साफ तौर पर पंजाब और दिल्ली में सहयोग देने से इनकार कर देते हैं. कांग्रेस के सिमटते पांव की वजह से क्षेत्री दल अब इस स्थिति में आ गए हैं कि कांग्रेस के सामने संतोष करने के अलावा कोई चारा नहीं बच रहा है.
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सीट शेयरिंग पर नहीं बन पा रही है बात
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दो सीटों से ज्यादा देने के लिए तैयार नहीं है. इंडिया नेशनल डेवलेपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) ब्लॉक ने कांग्रेस को ही साइडलाइन कर दिया है. ममता बनर्जी जमकर कांग्रेस के खिलाफ हमला बोलती हैं, वहीं समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस पर भड़की हुई है. सपा-कांग्रेस के बीच कई दौर की बैठकें हुईं लेकिन कोई बात नहीं बन पाई. सपा 12 सीट दे रही है, टीएमसी 2 सीट दे रही है, कांग्रेस इतनी कम सीटों पर राजी भी नहीं है.
अधीर रंजन चौधरी ने खोला है मोर्चा, बड़े नेताओं ने साधी चुप्पी
ममता बनर्जी के खिलाफ आक्रामक रूप से सिर्फ अधीर रंजन चौधरी बोल रहे हैं. राहुल गांधी से जब सवाल किया जाता है तो वे कहते हैं कि ममता बनर्जी हमारी पुरानी सहोयगी हैं, अधीर के बयान व्यक्तिगत हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे भी कुछ बड़ा कहने से बच रहे हैं. समाजवादी पार्टी के खिलाफ न तो राहुल गांधी बोल रहे हैं, न ही प्रियंका गांधी मुंह खोल रही हैं. क्षेत्रीय पार्टियों के हंगामे पर कांग्रेस की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं.
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किस रणनीति पर आगे बढ़ रही है कांग्रेस?
कांग्रेस के चुप्पी साधने की एक वजह भी है. एनडीए गठबंधन की जड़ें बेहद मजबूत हैं. बिना मजबूत विपक्ष के एनडीए गठबंधन के वोटों में सेंध लागाना अभी मुश्किल है. विपक्षी दल उकसा रहे हैं लेकिन कांग्रेस सधे कदमों से चल रही है. अकेले कांग्रेस बड़ा चमत्कार नहीं कर सकती है, ऐसे में चुप्पी साधना सही विकल्प है. कांग्रेस नहीं चाहती कि समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसी मजबूत जनसमर्थन वाली पार्टियां इंडिया ब्लॉक से किनारा करें. कांग्रेस किसी जल्दबाजी के मूड में नहीं है.
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कांग्रेस पर भड़के हैं सहयोगी दल, फिर भी चुप आलाकमान, वजह क्या है?