डीएनए हिंदी: देश में वाइल्डलाइफ को बढ़ावा देने पर खूब जोर दिया जा रहा है. हाल ही में टाइगर सेंसस भी जारी किया गया, जिसमें बाघों की संख्या अब 3,160 बताई गई जो कि 2018 में 2,967 थी. वहीं दूसरी ओर बाघों के साथ-साथ चीते को भी बसाने की पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कूनो के 'प्रोजेक्ट चीता' को लेकर काफी गंभीर हैं. लेकिन अब इस मुहिम पर खतरा मंडरा रहा है. ये खतरा सरकार या लोगों की ओर से नहीं, बल्कि टाइगर और चीते को खुद से है. जब से कूनो में चीतों को छोड़ा गया है कोई न कोई नई मुसीबत सामने आ रही है. जो प्रोजेक्ट चीता के भविष्य को खतरे में डाल सकती है. क्या है ये नई समस्या और कैसे फ्लॉप हो सकता है इतना बड़ा प्रोजेक्ट आइए समझते हैं.
कहां से आई प्रॉब्लम के बीच में एक और प्रॉब्लम
कूनो में जब से चीते छोड़े गए हैं, तभी से उन्हें लेकर कुछ न कुछ समस्याएं सामने आ रही हैं. पहले लैपर्ड के डर से चीतों को बाड़ों में रखा गया. काफी हद तक कूनो के आसपास से लैपर्ड को रिलोकेट किया गया, ताकि चीतों का परिवार बढ़ सके. इसके बाद जब चीतों को बाड़े के बाहर खुले जंगल में निकाला गया तो कोई चीता जंगल छोड़ गांव के पास नजर आया तो किसी की बीमारी के कारण मौत हो गई. ये सब चल ही रहा था कि ओबान नाम का एक चीता अब कूनो की रेंज से 70 किलोमीटर दूर निकल गया. जहां से प्रोजेक्ट चीता की ये ताजा समस्या खड़ी होती दिख रही है.
ओबान को नहीं रास आ रहा कूनो?
ये ओबान वही चीता है जो कुछ समय पहले कूनो से निकल लिया था और बाद में शिवपुरी जिले के बैराड़ इलाके से इसका रेस्क्यू कर वापस इसे कूनो लाया गया था. वहीं अब ओबान करीब 70 से 100 किलोमीटर का सफर तय कर शिवपुरी जिले से दूर माधव नेशनल पार्क पहुंच गया है, जहां राज चलता है दुनिया की सबसे बड़ी बिल्ली टाइगर का. माधव नेशनल पार्क में दो टाइगर हैं, जिन्हें बाघों की आबादी बढ़ाने और उन्हें नया इलाका बनाने के लिए मार्च में छोड़ा गया था. लेकिन ओबान, टाइगर के गढ़ में जा पहुंचा है. अगर वो इस बीच किसी बाघ के हत्थे चढ़ गया तो उसका काम तमाम होना तय है और अगर ओबान मारा गया तो इससे प्रोजेक्ट चीता को बड़ा झटका लगेगा.
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कूनो नेशनल पार्क के डीएफओ प्रकाश कुमार वर्मा ने इस बात की जानकारी दी है कि मंगलवार को माधव नेशनल पार्क में ओबान का मूवमेंट दर्ज किया गया. जब उनसे ये पूछा गया कि बाघ और चीते का माधव नेशनल पार्क में साथ होना क्या व्यक्त करता है, तो इस पर उन्होंने कहा, 'माधव नेशनल पार्क में टाइगर हैं, लेकिन इससे कोई समस्या नहीं होगी. क्योंकि जानवर खुद की रक्षा करना जानते हैं और खतरे को भी भलीभांति समझते हैं.'
डीएफओ की बात एक हद तक सही है, लेकिन पूरी तरह ये बात सही नहीं है. क्योंकि जहां टाइगर होता है उसके आसपास के इलाके से लैपर्ड भी अपनी जान बचाने के लिए गायब हो लेता है. ऐसे में चीता कितना टिक पाएगा ये देखने वाली बात होगी.
बाघ, चीता या लैपर्ड कोई किसी को पसंद नहीं करता
एक आसान सी बात समझ लीजिए. बाघ, चीता या लैपर्ड ये तीनों ही जानवर अपने इलाके को लेकर जान पर खेल जाते हैं. तीनों ही बिग कैट्स को अपने इलाके में किसी भी दूसरे शिकारी की मौजूदगी पसंद नहीं. आमना-सामना अगर होता भी है तो बाघ के समाने खड़े रहने की हिम्मत न ही तेंदुए में है न ही चीते में. इस बात को ऐसे समझिए कि एक मेल टाइगर का वजन औसतन 220 से 250 किलोग्राम के बीच होता है और बाघ सिर से लेकर पूंछ तक करीब 9 से 10 फीट का होता है. जब कि चीते का वजन 40-45 किलो है और तेंदुए का 60 से 80 किलो. ये साइज डिफरेंस साफ बताता है कि टाइगर के आगे तेंदुआ और चीता दोनों कहीं से भी मैच नहीं है.
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चीता, टाइगर या लैपर्ड इलाके के लिए करते हैं लंबा सफर तय
आप सोच रहे होंगे कि इतना बड़ा कूनो छोड़कर आखिर ओबान 70 किलोमीटर दूर कैसे पहुंच गया तो इसमें ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं है. जितनी भी बिग कैट हैं, जब वो बड़ी होते हैं उन्हें अपना इलाका बनाना होता है फिर चाहे मेल हो या फीमेल. अगर आपको ओबान के 70 किलोमीटर तय करने पर अचंभा हो रहा है तो आपको रणथंभौर टाइगर रिजर्व के 'ब्रोकन टेल' नाम के टाइगर की कहानी भी जरूर जान लेनी चाहिए. इस टाइगर ने रणथंभौर से दर्राह नेशनल पार्क तक का सफर तय किया था. जो कि करीब 200 किलोमीटर का था. ब्रोकन टेल की एंडिंग अच्छी नहीं रही थी और दर्राह पहुंचने पर उसकी ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी. लेकिन इलाके के लिए उसने इतना लंबा सफर तय किया था. ठीक ऐसे ही कुछ समय पहले उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क का टाइगर मीलों का सफर तय कर हिमाचल पहुंचा है. जिससे हिमाचल को अपना पहला टाइगर नसीब हुआ. एक अच्छे इलाके के लिए टेरिटोरियल होने के बाद भी बाघ, लैपर्ड और चीते तीनों ही लंबा सफर तय करते हैं.
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