डीएनए हिंदी: बिहार में नीतीश कुमार ने NDA को एक बार फिर झटका देते हुए राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ मिलकर सरकार बना ली. नीतीश कुमार ने आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जबकि तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने. नीतीश कुमार के इस दांव ने बिहार में बीजेपी की बैचेनी बढ़ा दी है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो NDA से जेडीयू के अलग हो जाने से बीजेपी के लिए ओबीसी (OBC) वोट बैंक को साधना मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि पिछले 17 साल से बिहार की राजनीति में नीतीश और बीजेपी के वर्चस्व का बड़ा कारण ओबीसी वोट बैंक ही रहा है.
नीतीश कुमार ने दलित श्रेणी से अलग कर नई श्रेणी बनाई. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से EBC यानि अति पिछड़े वर्ग को निकाला और ये लिस्ट लंबी होती चली गई. यह सभी नीतीश कुमार के वोट बैंक माने जाते हैं. बताया जाता है कि ईबीसी का वोट कभी नीतीश से नहीं छिटका. वहीं, बीजेपी के साथ सवर्ण वोटर रहा है. इसी गणित गठजोड़ के कारण बीजेपी-जेडीयू ने लालू की RJD को सत्ता से बाहर रखा है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार की 40 सीटों में से बीजेपी ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी की इस जीत में अति पिछड़ी जातियों (EBC) के मतदाताओं का भारी समर्थन रहा था. बताया जाता है कि इसकी एक बड़ी वजह सिर्फ नीतीश कुमार थे. नीतीश कुमार की JDU जब तक बीजेपी के साथ रही, उसके लिए इन सबसे पिछड़ी जातियों का वोट खींच पाना काफी आसान रहा है. जेडीयू को पिछड़ी जातियों के वोटरों और महिला वोटरों को जुटाने में सफल पार्टी के तौर पर जाना जाता है.
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बिहार में निर्णायक भूमिका में OBC
1990 से पहले बिहार की राजनीति में सर्वण वोटर निर्णायक भूमिका में माने जाते थे. लेकिन जैसे-जैसे समय बदला ओबीसी वर्ग राजनीति के केंद्र में आ गया. अब OBC यानि पिछड़ा और अति पिछड़ वर्ग ही बिहार सरकार तय करता है. यही कारण है कि अब हर राजनीति दल ओबीसी वोट बैंक को अपने पाले में जुटाने की कोशिश करता है. बिहार में लगभग 130 अत्यंत पिछड़ी जातियां (EBCs) हैं. OBC और EBC मिलाकर कुल 51% आबादी है. इनमें यादव 14%, कुर्मी 4% और कुशवाहा (कोइरी) 8% सबसे बड़ा वर्ग है. इसके बाद महादलित की कुल आबादी 16 प्रतिशत है. वहीं, मुस्लिम की आबादी लगभग 17% है. सर्वणों की बाद करें तो राज्य में इनकी कुल आबादी 15% है, इनमें भूमिहार 6%, ब्राह्माण 5%, राजपूत 3% और कायस्थ की जनसंख्या 1% है. इसके इलावा बिहार में 1.3% आबादी आदिवासी की भी है.
JDU के साथ गठबंधन में BJP ने जीती थी 17 सीटें
2019 के लोकसभा चुनाव में JDU-BJP साथ चुनाव लड़ी थी. लोकसभा की 40 सीटों में से बीजेपी और जेडीयू ने 50-50 के फॉर्मूले के हिसाब से 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बाकी अन्य सीटें एनडीए के सहयोगी LJP को दी गई थी. उन्हें 6 सीटें मिली थी. बीजेपी और एलजेपी ने अपनी सभी सीटें जीती थीं. वहीं, जेडीयू 17 में से 16 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी. एक सीट हार गई थी.
2019 के बाद बीजेपी ने 2020 विधानसभा चुनाव में भी काफी अच्छा प्रदर्शन किया था और 77 सीटें जीती थी. जबकि जेडीयू 43 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी. बीजेपी को इस जीत में ओबीसी वोटरों का काफी समर्थन मिला था. यही वजह है कि पार्टी ने ओबीसी नेताओं को आगने बढ़ाने का काम किया. 2024 मिशन के तहत बीजेपी ने ताराकिशोर प्रसाद, रेणु देवी, संजय जायसवाल को अहम पद दिए. विधानसभा चुनावों के बाद जिस तरह बीजेपी आगे बढ़ रही थी उससे यह साफ था कि वो OBC वोटर्स के बीच अपने बेस को मजबूत करना चाहती है. लेकिन अब जब नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं तो ऐसे में सवाल यह है कि क्या अब BJP ओबीसी वोटर्स को अपनी साथ जोड़े रख पाएगी?
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BJP पर भारी पड़ सकते हैं चाचा-भतीजे
राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहारी की तस्वीर पूरी तरह अलग होगी. नीतीश कुमारी की जेडीयू लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर आम चुनाव लड़ेगी. ऐसे में अगर 2014 और 2019 के दोनों पार्टियों के वोट शेयर मिला कर देंखे तो बीजेपी से ज्यादा हैं, जो मोदी के लिए भारी चुनौती होगी. हालांकि, वोट शेयर को सीटों में कन्वर्ट करना भी चाचा-भतीजे के लिए बड़ी चुनौती होगी.
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बिहार में JDU-RJD के साथ आने से क्या बदलेंगे जातीय समीकरण?