Heavy Rain in Delhi-Ncr: पिछले कुछ सालों के दौरान हम अलग-अलग राज्यों की राजधानियों के डूबने के हम गवाह बनते रहे हैं. कुछ दिनों पहले कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु डूब (Bengaluru Floods) रही थी. अब हम इस समय दिल्ली और एनसीआर को डूबते हुए देख रहे हैं. देश की कई हिस्सों में रेल की पटरियों पर पानी भर गया है. इससे ट्रेनों के परिचालन (Trains Delayed due to Heavy Rain) पर भी बुरा असर पड़ रहा है. राजधानी और दुरंतो ट्रेनों के परिचालन में दिक्कत आ रही है. बृहस्पतिवार की दोपहर में थम-थमकर बारिश हुई नहीं कि शाम को नोएडा, गुड़गांव और दिल्ली के स्कूलों को बंद करने का आदेश देना पड़ा. अब हम इसे आफत की बारिश बताने में जुट जाएंगे. यह भी बताया जा रहा है कि दिल्ली में सितंबर महीने में इतनी बारिश और जलजमाव (Water Logging in Delhi) के हालात 19 वर्षों के बाद बने हैं. जब भी इस तरह की प्राकृतिक आपदा की परिस्थितियां तैयार होती हैं तो हम हर बार उसे झटपट ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) इत्यादि कुछ भारी-भरकम शब्दों से जोड़ने लग जाते हैं.
जलजमाव से बचने के नहीं किए कोई इंतजाम
आज भी जब हम दिल्ली में 19 साल बाद ऐसे जलजमाव के हालात पैदा होने की बात कर रहे हैं तो यह हम मान रहे हैं कि ऐसी घटना पहले भी घटी. इसका मतलब यह संकट नया नहीं है या यह संकट पहली बार हमारे सामने नहीं आया है. आफत वाली बारिश महीने जून, जुलाई, अगस्त के बीत जाने के बाद सितंबर के दूसरे पखवाड़े में ऐसी बारिश और जलजमाव की हालत बनी है तो इसका मतलब यह है कि हमने जून से लेकर अबतक इन विपरीत परिस्थितियों से बचने का कोई मैप नहीं तैयार किया था. 19 सालों में भी हमने आकाश से गिरने वाले प्रसाद को पाने के लिए अंजुरी नहीं तैयार की. दिल्ली-एनसीआर में तीन राज्यों की अलग-अलग सरकारों ने बारिश में जलजमाव से बचने के लिए लगभग एक ही जैसी तैयारी की यानी कोई तैयारी नहीं की.. हरियाणा का गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश का नोएडा पहले की तरह इस साल भी डूबा. ट्रैफिक का संचालन पूरी तरह से ठप करना पड़ा. स्कूल बंद करना पड़ा और कॉरपोरेट सेक्टर को वर्क फ्रॉम होम की व्यवस्था को लागू करने को कहा गया.
कहीं कम तो कहीं ज्यादा हुई बारिश
हर साल की तरह इस साल भी देश के कुछ हिस्सों में औसत से अधिक और कुछ हिस्सों में औसत से कम बारिश हुई है. अगर पूरे देश की बात करें तो इस साल अनुमान से 7 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है. इस बार उन राज्यों में जहां कई राज्यों की तुलना में ज्यादा बारिश होती है, वहां कम बारिश हुई है. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब में क्रमशः 30, 20 और 33 फीसदी अनुमान से कम बारिश दर्ज की गई है. देश की राजधानी में भी करीब 36 फीसदी कम बारिश हुई है. देश के पूर्वाेत्तर इलाकों में भी बारिश में 17 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.
बाढ़ को उतरने में अब लग रहा है लंबा वक्तः दिनेश मिश्र
अब थोड़ी सी बातचीत हम अपने देश में बाढ़ को लेकर कर लें. प्रसिद्ध पर्यावरणविद् दिनेश मिश्र ने कहा, ग्रामीण लोग ऐसा कहते हैं कि हमारी बाढ़ ढाई दिन की हुआ करती थी. पहले पानी आता था और चला जाता था. बिहार, उत्तर प्रदेश में बाढ़ का पानी दो-तीन में उतर जाता था. इसकी एक वजह यह थी पानी के रास्ते में कोई रुकावट नहीं थी. वह बड़े इलाके पर फैलता था तो उसकी गहराई भी कम होती थी, लेकिन पिछले कुछ दशकों से ऐसा नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि आधुनिक विकास ने इस समीकरण को पलट दिया. अब जो बाढ़ का पानी आता है उसको वापस नदी में जाने में समय लगता है. बाढ़ का पानी उतरने में अब लंबा समय ले रहा है.
मिश्र के मुताबिक, दरअसल हमारी दृष्टि से एक पक्षीय है. हम पानी को कहीं भी फैलने से रोकते हैं, यह मान कर कि पानी हमारा कहना मानेगा, लेकिन वह कहीं न कहीं तो जाएगा, यह सत्य है. इससे उसकी धार तेज होती है और क्षति ऐसी जगहों पर होना शुरू होती है, जहां पहले नहीं होती थी. जल-निकासी की व्यवस्था किये बगैर बाढ़ नियंत्रण का उद्देश्य हमेशा अपूर्ण रहता है. दुर्भाग्यवश यह केवल कहा भर जाता है, इस पर काम नहीं होता है.
इसी देश में सतहा लगने जैसे शब्द प्रयोग में है
इस देश में बिहार और झारखंड में लगातार कई दिनों तक बारिश होती है और वहां इतनी जल्दी कुछ भी नहीं डूबता है. सतहा लगना जैसे शब्द वहां प्रयोग में लाए जाते हैं. सतहा यानी सात दिनों तक होने वाली बारिश. वहां यह मान्यता है कि शनिवार को बारिश शुरू हुई तो इसका यह मतलब लगाया जाता है कि अगले सात दिनों तक झमाझम बारिश होती रहेगी. बारिश रूकती है और अगले कुछ मिनटों में पानी अपने रास्ते या ढलानों से उतरकर ताल-तलैयों तक पहुंच जाती है. हां, यह भी सच है कि यह तस्वीर अब बदल रही है क्योंकि पानी के निकलने या धरती के पेट में जाने के रास्तों को बंद किया जा रहा है. हर जगह पक्कीकरण करने की होड़ में है.
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हम प्रकृति से तालमेल बिठाने की बजाय उसके तौर-तरीकों में रोड़ा अटकाने का काम करते जा रहे हैं. प्राकृतिक आपदा को कम किया जाए, के बारे में सोचने-समझने की बजाय हम यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि विकास के लिए बड़े बांध, रहने को मल्टीपल स्टोरीज वाले बिल्डिंग, तालाब को ढंककर मेगा मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, नदियों के बेसिन में मिट्टी डालकर मल्टीलेन हाईवे तैयार करने की प्लानिंग करते हुए किसी भी रंग के झंडे की सरकारें किसी की बात नहीं सुनना चाहती है. विरोध जताने वालों को विकास का विरोधी करार दिया जाता है. आवाजों को अनसुनी करके कभी भी सार्थक विकास कैसे हो सकता है? इस बाढ़ या जलजमाव की हालात पैदा ना हो उसकी तैयारी हमें दो स्तरों पर करनी होगी.
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थोड़ी सी बारिश में ही हिचकोले खाने लगी राजधानी दिल्ली और सहमे से हम