डीएनए हिंदी: चीन (China) तिब्बत (Tibet) में मानवाधिकारों के दमन के लिए कुख्यात है. तिब्बती पहचान को खत्म करने के लिए चीन लगातार कोशिशें कर रहा है. अब ड्रैगन ने तिब्बतियों के नए साल लोसर (Losar) को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. तिब्बती लोग अगर चीन के प्रतिबंधों को मानने से इनकार करते हैं तो उन्हें कड़े प्रावधानों का सामना करना पड़ सकता है.
तिब्बती भाषा में लोसर का मतलब होता है नया साल. तिब्बतियों के नए साल की शुरुआत लोसर से ही होती है. इस साल लोसर महोत्सव 3 मार्च से शुरू हो रहा है. लोसर को तिब्बती बौद्ध समुदाय के लोग दिवाली की तरह मनाते हैं. यह तिब्बत का सबसे खास धार्मिक उत्सव है.
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तिब्बत की दिवाली है लोसर महोत्सव
तिब्बती मूल के लोग लोसर पर्व पर रंग-बिरंगे परिधान पहनते हैं और तरह-तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. लोग अलग-अलग समूहों में डांस भी करते हैं. लोसर पर्व को तिब्बत की दिवाली भी कहा जाता है. तिब्बती समुदाय अपनी खास परंपराओं के जरिए नए साल का स्वागत करता है. तिब्बत का यह आयोजन करीब 15 दिनों तक चलता है. यह तिब्बती कैलेंडर का पहला दिन होता है. लोसर पर तिब्बत की देवी वाल्डेन ल्हामो की आराधना करते हैं. तिब्बती बौद्ध इस दौरान अपने घरों को अलग-अलग रंगों से सजाते हैं.
कैसे होती है महोत्सव की शुरुआत?
लोसर पर्व पर बौद्ध अनुयायी अपने घरों को दिये से सजाते हैं. जैसे हिंदू धर्मावलंबी अपने-अपने घरों को दिवाली पर सजाते हैं. लोग अपने परिवार के सदस्यों की समाधि पर जाते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. त्योहार के शुरुआती तीन दिनों तक सारे सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते हैं.
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तिब्बती संस्कृति की झलक दिखाता है लोसर महोत्सव
अगर तिब्बत की संस्कृति को समझना है तो लोसर महोत्सव से समझा जा सकता है. बच्चे, बूढ़े, पुरुष और महिलाएं अपने पारंपरिक परिधानों में नजर आते हैं. तिब्बती इस दौरान अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों को भी दिखाते हैं. घरों, मठों और पहाड़ियों के ऊपर रंगीन झंडे फहराए जाते हैं. दुर्भाग्य से, तिब्बती अपनी ही जमीन में इसे नहीं मना सकते. तिब्बत की संस्कृतियों पर ग्रहण बनकर चीन बैठ गया है. हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के कुछ हिस्सों में रहने वाला तिब्बती समुदाय इस पर्व को मनाता है.
क्यों मनाते हैं लोसर?
जनश्रुतियों के मुताबिक तिब्बती परंपरा में हर साल एक आध्यात्मिक पर्व आयोजित किया जाता था. तिब्बती समुदाय इस पर्व के दौरान अपने-अपने आराध्य देवताओं की प्रार्थना करता था और पूर्वजों को याद करते थे. धीरे-धीरे इसे महोत्सव के तौर पर मनाया जाने लगा.
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