डीएनए हिंदी: बुधवार 26 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन में आईईडी ब्लास्ट (IED Blast) के चलते दस जवानों की शहादत हो गई. ये सभी जिला रिजर्व ग्रुप के जवान थे. इसे नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान में एक बड़ा झटका माना जा रहा है और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं लेकिन आपको बता दें कि डीआरजी के जवानों का नक्सलियों के खिलाफ अभियान में अहम योगदान रहा है जिनकी कुछ विशेषताएं भी हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक नक्सलियों द्वारा यह हमला उस समय किया गया जब DRG के ये जवान घने जंगलों से अपना नक्सल विरोधी ऑपरेशन पूरा कर वापस लौट रहे थे. नक्सलियो ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में जवानों के ट्रक को आईईडी ब्लास्ट से उड़ा दिया. धमाके की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि ट्रक के परखच्चे उड़ गए.
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ट्रक के उड़ गए परखच्चे
बता दें कि नक्सल विरोधी ऑपरेशन कर लौट रहे डीआरजी जवानों के आखिरी जत्थे के ट्रक को IED विस्फोटक ने टक्कर मार दी थी. इस दौरान इलाके में छिपे नक्सलियों ने उनके अस्थायी वाहन पर भारी गोलीबारी की. यह हमला इतना खतरनाक था कि जवानों को संभलने तक का भी वक्त नहीं मिला और ट्रक में बैठे सभी जवानों की शहादत हो गई.
बेहद खास होते हैं DRG जवान
DRG जवानों को नक्सल विरोधी अभियान के लिए अहम माना जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक बस्तर के 7 जिलों में नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए ही साल 2008 में डीआरजी का गठन किया गया था. ये सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर जिलों में नक्सल विरोधी अभियानों में शामिल हुए. इसके बाद बीजापुर, बस्तर, सुकमा और कोंडागांव में इन्हें तैनात किया गया था. दंतेवाड़ा में ये डीआरजी जवान साल 2015 में अस्तित्व में आए थे.
डीआरजी जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं, इसलिए डीआरजी जवान नक्सलियों के निशाने पर रहते हैं. पहले भी नक्सलियों द्वारा जितने हमले किए गए उनमें सबसे ज्यादा डीआरजी के जवानों को ही निशाना बनाया गया. बता दें कि DRG में स्थानीय युवकों को शामिल किया जाता है, जिन्हें इलाके की पूरी जानकारी होती है. खास बात यह है कि कई बार आत्मसमर्पण कर चुके नक्सली भी इसका हिस्सा बनते हैं.
गोरिल्ला वॉर में हैं एक्सपर्ट
DRG जवानों के स्थानीय होने के चलते वे यहां की संस्कृति और भाषा से परिचित होते हैं. आदिवासियों से जुड़ाव होने के कारण नक्सलियों से मुकाबले के लिए DRG के जवान अहम होते हैं. DRG जवानों की सफलता की एक बड़ी वजह यह भी है कि वे नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का जवाब उसी भाषा में देते हैं. जंगल के रास्तों से भलीभांति परिचित होने के चलते उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, आदतें और काम करने के तरीकों की भी जानकारी होती है. इन जवानों को इलाके में नक्सलियों की मदद करने वालों के बारे में भी पता होता है जिससे वे नक्सलियों को ट्रैक करते हैं और नक्सल विरोधी आंदोलनों की सफलता की अहम कड़ी बनते हैं.
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कौन हैं छत्तीसगढ़ के बहादुर DRG जवान, जिन्हें नक्सलियों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध में हासिल है महारत