डीएनए हिंदी: बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दल तो मिले लेकिन दिल मिलने में अभी वक्त लग सकता है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले किसी भी राजनीतिक दल ने यह संकेत नहीं दिया है कि मिलकर चुनाव लड़ेंगे. चुनाव से पहले विपक्ष के देशव्यापी महागठबंधन के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक से यह संकेत तो मिल गए कि अगर विपक्षी दलों की योजना के अनुसार सबकुछ हुआ तो देश की राजनीति के समीकरण बदलेंगे. लेकिन, माना यह भी जा रहा है कि अभी यह दावे के साथ कहना जल्दबाजी है.
ऐसे भी देखा जाए तो नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर शुक्रवार को आयोजित देश की करीब 15 विपक्षी दलों की बैठक से फिलहाल कोई ठोस फलाफल नहीं निकला है. इस, बैठक से इतनी बातें जरूर निकली हैं कि बैठक में उपस्थित दलों के नेता BJP को सत्ता से हटाने के लिए कुछ हद तक समझौता भी करेंगे. वैसे, इस बैठक का सबसे बड़ा लाभ कांग्रेस को हुआ दिख रहा है.
किस दल को मिला बैठक से लाभ?
बिहार की राजनीति को नजदीक से समझने वाले मणिकांत ठाकुर भी कहते हैं कि इस बैठक की उपलब्धि मात्र इतनी भर रही है कि कई दल एक मंच पर साथ दिखे. वे मानते हैं कि इस बैठक से कांग्रेस को सबसे अधिक लाभ हुआ है जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 'एक्सपोज ' हो गए.
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उन्होंने यह भी कहा कि बैठक की मेजबानी कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो केंद्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तय करने की सोची थी वह भी इस बैठक से पूरी होती नहीं दिखी. पिछले वर्ष अगस्त से विपक्षी दलों के एकजुट करने की मुहिम में शुक्रवार को हुई बैठक के बाद सभी दलों ने इतना जरूर कहा कि हम साथ हैं और साथ लड़ेंगे.
क्या मौके को भुना पाएगी कांग्रेस?
वैसे, मणिकांत ठाकुर भी मानते हैं कि विपक्षी दलों को पूरी तरह एकजुट करने में चुनौतियां कई हैं. लेकिन, इस बैठक ने कांग्रेस को खुलकर बैटिंग करने का मौका दे दिया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस यह समझ गई है कि उनके बिना विपक्ष की कल्पना नहीं हो सकती.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के लिए बैठक की तिथि तक बढ़ाई गई. इस बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल की उपस्थिति भी वजनदार रही. उनका मानना है कि शिमला में होने वाली बैठक में इसका फ़ायदा कांग्रेस उठा भी सकती है.
पटना में दल मिले, क्या शिमला में मिलेगा दिल?
वैसे, शिमला में होने वाली बैठक सबसे अहम मानी जा रही है. पटना की बैठक के बाद नेताओं ने कहा कि शिमला की बैठक में सीटों के बंटवारे पर भी चर्चा होंगी. इधर, राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार भी कहते हैं कि अभी यह मात्र शुरुआत है.
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बैठक में जुटने वाले की राजनीतिक विचारधाराएं अलग अलग हैं. कल की पहली मुलाकात में ही दिल्ली में अध्यादेश को लेकर आप और कांग्रेस के हित टकराते दिखे. उन्होंने कहा कि भविष्य में भी दलों के हित आपस में टकराए, तो विपक्षी एकता की हवा निकल सकती है.
जिन दलों ने बैठक से बनाई दूरी, किसके साथ जा सकते हैं?
अजय कुमार कहते हैं कि कई विपक्षी, क्षेत्रीय दल हैं, जिनका कुछ राज्यों में अच्छी स्थिति है, वे इस बैठक में शामिल नहीं हुए है. ऐसे दल एनडीए की तरफ जा सकते हैं या तीसरे मोर्चे की स्थिति उत्पन्न कर सकते है. इससे एक उम्मीदवार के बदले एक उम्मीदवार की योजना की हवा निकल सकती है. इधर, यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी दलों की सक्रियता के बाद अब BJP भी सक्रिय होगी. महागठबंधन में ज्यादा पार्टियां हैं तो वहां गड़बड़ी और विवाद की आशंका भी ज्यादा होगी.
आसान नहीं है एकजुट विपक्ष की राह
बहरहाल, विपक्षी दलों की पहली बैठक के बाद इतना तय है कि अभी एकजुटता को लेकर कई चुनौतियां हैं और कांग्रेस के बिना BJP से मुकाबला नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि विपक्षी दलों की नाराजगी और हितों के टकराने की स्थिति में कांग्रेस कुछ ही दलों के साथ मैदान में उतरकर BJP को सीधी टक्कर भी दे सकती है. (इनपुट: IANS)
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