डीएनए हिंदी: साल था 1528. भारत में मुगल आ गए थे. एक-एक करके वे अपना साम्राज्य विस्तार करते जा रहे थे. कहीं हार हो रही थी, कहीं भीषण जंग छिड़ रही थी, जिसमें मनुष्यता कराह रही थी. मुगलों का नेतृत्व बाबर कर रहा था. वही बाबर जिसके नाम से भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाई गई. पुरात्तव विभाग की खुदाई में यह तथ्य सामने आया कि बाबरी मस्जिद दरअसल मंदिर पर बना है. 1528 के आक्रमण से अयोध्या थर्रा गई थी. बाबर के क्रूर सिपहसालार मीरबाकी ने अयोध्या में कत्ल-ए-आम मचा दी थी. जिस पवित्र स्थल को हिंदू रामलला की जन्मभूमि मानते थे, वह मस्जिद में तब्दील हो गई थी.
300 साल, संघर्ष में बीते. मुगलों की हनक गूंज रही थी. हिंदुओं का संघर्ष जाया जा रहा था. विरोध था लेकिन हिम्मत नहीं थी कि कोई श्रीराम जन्मभूमि पर बनी मस्जिद का बाल बांका कर सके. साल 1853 में जब मुगल कमजोर हुए, ब्रितानी राज कायम हुआ, तब हिंदुओं ने मुखरित होकर कहा कि यह मस्जिद नहीं, हमारा मंदिर है, जिसे तोड़ा गया है. यह कहना इतना आसान नहीं था. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भीषण हिंसा हुई, जिसकी कहानी इतिहास के पन्नों में दब गई.
दो दशक बीते तो यह मामला अदालत में पहुंचा. महंत रघुवरदास ने साल 1885 में फैजाबाद कोर्ट में अर्जी दी कि बाबरी मस्जिद से लगे राममंदिर निर्माण की इजाजत दी जाए. राम मंदिर में न तो अंग्रेजों की दिलचस्पी थी, न ही उन्होंने मुकदमे की सही तरीके से सुनवाई की. दशकों तक इस केस की सुनवाई तक नहीं हुई. रामलला प्रतीक्षारत रहे, भूमिहीन बने रहे. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया लेकिन राम मुद्दा ही नहीं थे.
इसे भी पढ़ें- प्राण प्रतिष्ठा का किया था विरोध, अब समर्थन, कैसे बदल गए स्वामी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वारनंद के सुर?
कैसे मस्जिद में विराजे रामलला
साल था 1949. तारीख 23 दिसंबर. रामलला मस्जिद के भीतर विराजमान हो गए. राम जन्मभूमि चौकी पर तैनात चौकीदार अब्दुल बरकत ने सुना कि मस्जिद से 'भये प्रकट कृपाला, दीनदयाला' की आवाज आने लगी. उन्हें कोई प्रकाश नजर आया जो अलौकिक था. उन्हें चार या पांच साल के एक अलौकिक बच्चे की तस्वीर दिखी. मूर्ति की पूजा करते हिंदू भी नजर आए. रामलला की यह लीला सैकड़ों वर्षों के इतिहास में पहली ऐसी घटना थी, जिस पर लोग चर्चा करने लगे.
नतीजा यह निकला कि हिंदू इस स्थल पर रामलला की पूजा करने लगे. मुस्लिमों ने विरोध जताया. एक बार फिर मामला कोर्ट पहुंचा. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि रामलला विराजमान की कहानी झूठी है. उन्होंने आरोप लगाया कि हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत अभिराम दास ने मस्जिद के भीतर जाकर रामलला की मूर्ति रखी.
जब नेहरू ने दिया था विवादित स्थल से रामलला को हटाने का आदेश
23 दिसंबर 1949 को अयोध्या पुलिस स्टेशन के स्टेशन इंचार्ज पंडित रामदेव दूबे को 50 से 60 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज करनी पड़ी. 26 दिसंबर 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत आदेश दिया कि पंत अयोध्या जाएं. दोनों का आदेश था कि मूर्ति को हटा दिया जाए. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी जिला मजिस्ट्रेट केके नायर और सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह ने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि ऐसा करने से यहां हिंदुओं की भावना भड़क जाएगी.
राज्य सरकार ने मस्जिद तो बंद कर दिया लेकिन रामलला विराजमान की पूजा श्रद्धालु बाहर से करने लगे. हिंदू पक्षकार दिगंबर अखाड़ा ने 1950 में, निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में कोर्ट में तहरीर दी कि मस्जिद नहीं, ये मंदिर है. साल 1961 में, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि यह मस्जिद है और आसपास का इलाका कब्रिस्तान है. दिसंबर 1961 को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट का रुख किया और कहा कि बाबरी का मालिकाना हक उनके पास है, इसलिए उन्हें स्वामित्व उन्हें मिले.
विहिप की एंट्री और तेज हो गया मंदिर आंदोलन
साल 1984 में राम मंदिर आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली. विश्व हिंदू परिषद ने दावा किया कि मंदिर का ताला खोला जाए. विवादित स्थल पर भव्य मंदिर बने. 1 फरवरी 1986 में यह केस एक कदम आगे बढ़ा. फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने मंजूरी दे दी. यह फैसला हिंदू पक्ष के लिए किसी वरदान की तरह साबित हुआ. विवादित ढांचा का ताला खोल दिया गया. ताला खुला तो हिंदू तीर्थयात्री बड़ी संख्या में उमड़ पड़े. राज्य के गृहमंत्री अरुण नेहरू ने कहा कि यह फैसला राजीव गांधी का का है.यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. मुस्लिम पक्ष ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बना ली.
रामलला विराजमान ने दर्ज किया पांचवा केस
1 जुलाई 1989 को रामलला विराजमान ने फिर कोर्ट का रुख किया. रामलला के नाम से पांचवा केस दर्ज किया गया. मामला आगे बढ़ा.9 नवंबर 1989 को तत्कालीन प्रधानंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने विवादित स्थल के पास ही राममंदिर के शिलान्यास की मंजूरी दे दी. राम मंदिर आंदोलन तेज हो गया.
इसे भी पढ़ें- Ram Mandir Live: 'जगमगाई अयोध्या, घर-घर जले दीप, राम की नगरी में उमड़ा देश'
कारसेवकों का बलिदान
तारीख थी 30 अक्टूबर 1990.लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचे. रामलला की सेवा के लिए पहुंचे कार सेवकों पर 2 नवंबर 1990 को पुलिस ने गोलियां चला दी. कई कारसेवक शहीद हो गए. मंदिर आंदोलन के लिए उन्होंने बलिदान दे दिया. तारीख आगे बढ़ी. दिन आया 6 दिसंबर 1992. न तो प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव को अंदाजा था कि कारसेवक बाबरी विध्वंस करने वाले हैं, न ही तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को. लाल कृष्ण आडवानी, विनय कटियार, अशोक सिंघल जैसे नेता कहते रह गए मस्जिद न तोड़ी जाए लेकिन कारसेवकों ने एक न सुनी. गुंबदों को लाखों ने मटियामेट कर दिया.
और फिर भड़के देशभर में सांप्रदायिक दंगे
बाबरी विध्वंस हुआ और देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे. न बाबरी रही, न उसके अवशेष. पूरा खंडहर समतल हो चुका था. बाबरी का ढांचा गिरा और रामलला को घर मिला. वह घर भले ही टेंट का था लेकिन उनका था. रामलला अपनी जन्मभूमि पर विराजमान हो गए. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कहा कि वे मस्जिद भी बनवाएंगे. करीब एक दशक बीता. मुकदमा चलता रहा.
और फिर हुई जन्मभूमि को दहलाने की आतंकी साजिश
साल आया 2002. रामजन्मभूमि स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की एक बेंच ने सुनवाई शुरू की. केस की सुनवाई चलती रही. अयोध्या में 5 जुलाई 2005 को हथियारों से लैस पांच आतंकवादियों ने जन्मभूमि में घुसने की कोशिश की. वे जीप से आए थे, विस्फोटकों से उनकी गाड़ी लदी थी. CRPF के जवान सक्रिय थे. उन्होंने धड़ाधड़ 5 सुरक्षाकर्मियों को मार डाला.
और ऐसे बहुरने लगे रामलला के दिन
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आया. फैसला आने से पहले देशभर में कर्फ्यू जैसा माहौल था. फैजाबाद के निकटवर्ती इलाकों में भारी सुरक्षाबल तैनात था कि कहीं दंगे न भड़क जाएं. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मध्यम मार्ग अपनाया. कोर्ट ने जमीन को तीन बराबर हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बांट दिया.
मध्यस्थता की भी आई नौबत
21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मध्यस्थता की पेशकश की. चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि अगर पक्षकार राजी हों तो वे कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करा सकते हैं. बात नहीं बनी इसलिए 8 फरवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के लिए एक याचिका दायर हुई,जिस पर सुनवाई हुई.
क्रमवार जानिए सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ?
20 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेजने से इनकार करते हुए तीन जजों की एक नई संविधान बेंच बना दी. 29 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस की सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते से शुरू होगी.
24 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि अब 4 जनवरी 2019 से केस की सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मालिकाना हक की इस लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट 10 जनवरी को आदेश जारी करेगा.
तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 8 जनवरी 2019 को एक संविधान पीठ बनाई. जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इस बेंच में थे. इसमें से जस्टिस यूयू लतिन ने 10 जनवरी 2019 को अपना नाम वापस ले लिया. 29 जनवरी तक यह केस एक बार फिर टल गया.
इसे भी पढ़ें- रामलला के प्राण प्रतिष्ठा में उमड़े देश भर के कलाकार, जानिए अयोध्या में कितने बजे होगा कार्यक्रम
तारीख 18 जुलाई 2019. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया जारी रहे और 1 अगस्त को रिपोर्ट पेश कर दी जाए. 1 अगस्त को ही मध्यस्थता कमेटी ने सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश की. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की कोशिशें फेल होने के बाद इस मामले में 6 अगस्त से दैनिक आधार पर सुनवाई शुरू करने का निर्णय लिया.
6 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि विवाद मामले में रोजाना सुनवाई की. 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. जिस फैसले का 500 साल से इंतजार था, सुप्रीम कोर्ट ने वह आदेश सुना दिया.
और रामलला विराजमान को मिल गई उनकी जन्मभूमि
भारत के इतिहास में 9 नवंबर 2019 की तारीख याद रहेगी. 1528 में हुए कांड का अध्याय समाप्त हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि की पूरी 2.77 एकड़ जमीन रामलला को दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका मालिकाना हक केंद्र सरकार के पास रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के साथ अन्याय नहीं किया बल्कि कहा कि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन दी जाए.
और फिर पड़ी राम जन्मभूमि की नींव
5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतिहास रच दिया. यह पहली बार था जब किसी प्रधानमंत्री ने किसी मंदिर का सार्वजनिक स्तर पर भूमि पूजन किया हो. पीएम मोदी ही उस वक्त भी मुख्य यजमान बने. 4 सालों के अथक प्रयास का नतीजा है कि राम मंदिर का भव्य निर्माण हो रहा है.
भूमिहीन रामलला को ऐसे मिली अपनी जन्मभूमि
रामलला अपने गर्भगृह में विराजमान हैं. उनकी प्राण प्रतिष्ठा के सभी अनुष्ठान पूरे हो चुके हैं. वह शय्याधिवास पर हैं और आज गर्भगृह में उनकी प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी. नेपाल से आई शालिग्राम शिला से उनका विग्रह बना है. वह 5 साल के बालक के रूप में गर्भगृह में विराजमान हैं. अरुण योगीराज मूर्ति के शिल्पकार हैं. सैकड़ों वर्षों की प्रतीक्षा पूरी हो गई है, भूमिहीन रामलला को महल मिल गया है. अयोध्या में दीपावली जैसा माहौल है. त्रेता युग में रामलला ने 14 साल का वनवास काटा था, कलियुग में यह वनवास 500 साल से ज्यादा चला. अनगिनत बलिदान, त्याग, आंदोलन और तप पूरा हुआ, रामलला को उनका आवास मिल गया है.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
भूमिहीन से भव्य महल तक, कैसा रहा जन्मभूमि के लिए रामलला का संघर्ष?