डीएनए हिंदी: बिहार की राजधानी पटना में देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ चुनावी रणनीति तैयार की. बैठक से ठीक पहले आम आदमी पार्टी (AAP) संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हमला बोलना शुरू कर दिया. ऐसा लगा कि विपक्षी एकता खटाई में पड़ गई, जिससे ये मैसेज गया कि साथ आने की बस बातें हैं, विपक्ष आज भी एक नहीं है.
अरविंद केजरीवाल, अब एकला चलो की राह पर आगे बढ़ गए हैं. उनकी बैठक का मुख्य एजेंडा दिल्ली का अध्यादेश था, जिसके लिए वह विपक्षी दलों से समर्थन मांग रहे थे. उन्होंने गुरुवार को अल्टीमेटम दिया था कि अगर कांग्रेस संसद के अंदर अध्यादेश पर समर्थन का वादा नहीं करती है तो आप नेता बैठक से बाहर चले जाएंगे. हुआ भी कुछ ऐसा ही. अरविंद केजरीवाल का साथ कांग्रेस ने नहीं दिया.
आम आदमी पार्टी की किसी भी तरह से कांग्रेस अब मदद करना नहीं चाहती है. कांग्रेस की जमीन, अगर किसी पार्टी की वजह से सबसे ज्यादा खिसकी है तो वह बीजेपी के बाद AAP ही है. अरविंद केजरीवाल की मदद करके अब कांग्रेस और मुश्किल में फंसना नहीं चाहती है.
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राहुल गांधी पर हमले के क्या हैं सियासी मायने?
केंद्र सरकार, एक अध्यादेश लेकर आई थी जिसमें दिल्ली की निर्वाचित सरकार की शक्तियों को कम किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनी गई सरकार के पास, उपराज्यपाल से ज्यादा अधिकार हैं. ट्रांसफर से लेकर नियुक्ति तक के अधिकार सीएम को दिए गए थे. इस अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी दलों के नेताओं से मदद मांगी थी.
कांग्रेस ने नहीं दिया AAP को भाव
अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से भी समय मांगा, लेकिन उन्हें वक्त ही नहीं दिया गया. आम आदमी पार्टी ने पिछले कुछ दिनों में कई मंचों से कांग्रेस पर हमला बोला है. अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अध्यादेश के मुद्दे पर राहुल गांधी और बीजेपी के बीच डील फाइनल हो गई है. पार्टी ने यह भी दावा किया कि अंतिम समझौते के मुताबिक कांग्रेस दिल्ली विधेयक पर मतदान के दौरान राज्यसभा का बहिष्कार कर देगी.
अरविंद केजरीवाल कांग्रेस पर दबाव बनाने की हर कोशिश कर रहे हैं. राज्यसभा में कांग्रेस के अलावा, किसी भी राजनीतिक पार्टी का समर्थन, अरविंद केजरीवाल की राह आसान नहीं कर सकता है. राहुल गांधी पटना रवाना होने से कुछ घंटे पहले शुक्रवार सुबह अपनी अमेरिकी यात्रा से दिल्ली पहुंचे थे.
विपक्षी दलों से दिलासा या धोखा?
अरविंद केजरीवाल अध्यादेश पर ममता बनर्जी से लेकर उद्धव ठाकरे और शरद पवार तक से मिल चुके हैं. उनके साथ होने का भरोसा सबने दिया लेकिन अमल करने की बात से सब मुकरते नजर आ रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि सियासी तौर पर अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से हर नेता वाकिफ है, यही वजह है कि कोई उन्हें साथ नहीं ले रहा है.
AAP और अरविंद केजरीवाल के सामने क्या हैं विकल्प?
अरविंद केजरीवाल की मदद करने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं है. अब उनके सामने पूरे देश में केसीआर की तरह अकेले चलने का विकल्प है. चंद्रशेखर राव (KCR) की भारत राष्ट्र समिति और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, दोनों के साथ मजबूती से कोई दल नहीं खड़ा है. अरविंद केजरीवाल अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर हमला बोलेंगे और अपनी संगठनात्मक ताकत को अलग-अलग राज्यों में मजबूत करेंगे.
क्या विपक्षी दल से अलग होने के लिए मजबूर हो गए अरविंद केजरीवाल?
अरविंद केजरीवाल अब दूसरे राज्यों में विस्तार के लिए जोर-शोर से जुट गए हैं. वह विपक्षी गठबंधन में रहकर अब बंध नहीं पाएंगे. अगर ऐसा करते हैं तो उनके विस्तारवादी मिशन पर रोक लग जाएगी. आम आदमी पार्टी अलग-अलग राज्यों में विस्तार करना चाहती है. दिल्ली से लेकर पंजाब तक सफलता के झंडे भी यह पार्टी गाड़ चुकी है. कई राज्यों में धीरे-धीरे पार्टी का विस्तार हो रहा है. हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी की मजबूत जमीन है.
पार्टी पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह साल के अंत में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव लड़ने जा रही है. लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. ऐसी अटकलें हैं कि 2024 का चुनाव विपक्ष एकजुट होकर लड़ेगा. AAP विपक्ष की राह से अलग चलने के मूड में है.
कांग्रेस नहीं दे रही AAP को भाव, 'आपदा को अवसर' बना रहे केजरीवाल
कांग्रेस, AAP को भाव देने के लिए तैयार नहीं है. पहले ही AAP, दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस के साथ जाने की कोशिशें कर चुकी हैं लेकिन पुरानी पार्टी ने ऐसे गठजोड़ को हर बार खारिज कर दिया है. कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं लेकिन AAP को कोई भाव नहीं दे रहा है.
विपक्षी एकता दूसरे दलों के लिए है लेकिन अरविंद केजरीवाल, इन दलों की जुगलबंदी में अलग-थलग पड़ गए हैं. अब उन्हें बीजेपी और कांग्रेस दोनों से एकसाथ लड़ना है. उनके पास अकेले चलने के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं है. कांग्रेस गठबंधन पर अपना रुख बदलने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल, केसीआर की तरह एकला चलो का राग अलापने के लिए मजबूर नजर आ रहे हैं.
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कांग्रेस नहीं दे रही भाव, विपक्षी दलों से मिला धोखा, 'एकला चलो' गाने के लिए मजबूर हैं केजरीवाल