मध्य प्रदेश सरकार ने द कश्मीर फाइल्स को आज टैक्स फ्री करने की घोषणा कर दी है. किसी राज्य के द्वारा जब किसी फिल्म को टैक्स फ्री किया जाता है तो टिकट के दाम में थोड़ी कमी आती है और दर्शकों की जेब पर बोझ कुछ कम होता है. क्या है किसी फिल्म का टैक्स फ्री किया जाना और इसका असर किस तरह से दर्शकों की जेब पर पड़ता है, समझें यहां.
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फिल्म की टिकट के दो हिस्से होते हैं. पहला बेस प्राइस और दूसरा उस पर लगने वाला टैक्स. बेस प्राइस के लिये सीधे तौर पर फिल्म का बजट जिम्मेदार होता है. वहीं टैक्स को राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच स्टेट जीएसटी और सेंट्रल जीएसटी के रूप में बांटा जाता है. दिसंबर 2018 में फिल्मों के टिकट के लिये 2 टैक्स स्लैब तय किए गए थे. इसमें 100 रुपये तक के टिकट पर 12 प्रतिशत और इससे ज्यादा के टिकट पर 18 प्रतिशत का टैक्स है.
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जब कोई स्टेट किसी फिल्म को टैक्स फ्री घोषित करता है तो वो पूरे टिकट में स्टेट जीएसटी का हिस्सा माफ कर देता है. अगर टिकट 100 रुपये से महंगा है तो टिकट में बेस प्राइस के 9 फीसदी की ही कमी आती है. अगर टिकट का बेस प्राइस 400 रुपये का है तो सभी टैक्स लगाकर टिकट 464 रुपये का पड़ेगा. वहीं टैक्स फ्री होने पर टिकट 436 रुपये देने होंगे और दर्शकों के 36 रुपये बचेंगे. सेंट्रल जीएसटी के तौर पर टैक्स दर्शकों को देना ही होता है.
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जीएसटी से पहले जब मनोरंजन कर लगता था. सिनेमा हॉल के मालिकों का कहना है कि मनोरंजन कर के दौर में किसी फिल्म को टैक्स फ्री करने का फायदा दिखता था. राज्यों में तब अलग-अलग दरों पर 60% तक की ऊंची दरों पर टैक्स लगाए जाते थे जिससे टैक्स फ्री का ऐलान होने से कीमतों में बड़ी कमी दिखती थीं. हालांकि अब स्टेट और सेंट्रल जीएसटी सभी जगह के लिए एक समान है तो कीमतों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आता है.
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आम तौर पर राज्य सरकारें उन्हीं फिल्मों को टैक्स फ्री करती हैं जो समाज के नाम कोई संदेश देती हैं या जिनमें किसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामाजिक तथ्यों को दिखाया जाता है. इस कदम के जरिए राज्य सरकारें ये संदेश देती हैं कि उनका किसी खास विषय को समर्थन है. द कश्मीर फाइल्स से पहले दिल्ली सरकार ने 1983 वर्ल्ड कप जीत पर बनी फिल 83 को टैक्स फ्री किया था. कंगना रनौत की मणिकर्णिका को उत्तर प्रदेश में टैक्स फ्री किया गया था.