Oxygen in Space Station: जब अंतरिक्ष में कोई यात्री जाता है तो वह अपने साथ पृथ्वी से ऑक्सीजन भरकर ले जाता है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के मुताबिक, एक अंतरिक्ष यात्री एक सिलेंडर ऑक्सीजन और 2 सिलेंडर नाइट्रोजन लेकर जाता है, जिनका कुल वजन 90 किलोग्राम होता है. अंतरिक्ष यात्री ऑक्सीजन और नाइट्रोजन को मिलाकर अंतरिक्ष में सांस लेने के लिए इस्तेमाल करते हैं. यह बात तो हुई अंतरिक्ष यान में सफर करने वाले यात्रियों की, लेकिन अमेरिका की भारतवंशी एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) और उनके साथी वूच विल्मोर करीब 9 महीने तक अंतरिक्ष में रहीं. क्या आपके दिमाग में कभी सवाल आया कि 9 महीने तक वे कैसे सांस लेती रहीं? अंतरिक्ष में ऑक्सीजन नहीं होती है तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station) पर उन्हें किस तरह से ऑक्सीजन हासिल हो रही थी? चलिए हम आपको इस बात की जानकारी देते हैं.
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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर जो एस्ट्रोनॉट्स रहते हैं, उनके लिए धरती से रॉकेट के जरिये नियमित रूप से 'सप्लाई' भेजी जाती है. इस सप्लाई में उनके लिए खाने के अलावा ऑक्सीजन और पानी भी भेजा जाता है. इससे वहां रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स को ऑक्सीजन और खाने की कमी नहीं होती है.
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आपने रिसाइकिल शब्द सुना होगा. यह शब्द इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर बेहद अहम है. दरअसल किसी कारण से यदि सप्लाई रॉकेट ISS ना पहुंच सके तो वहां मौजूद एस्ट्रोनॉट्स 'रिसाइकिलिंग' के जरिये अपनी जरूरत पूरी करते हैं. रिसाइकिलिंग के जरिये एस्ट्रोनॉट्स पहले से यूज हो चुके पानी की मदद से अपने लिए फिर से पीने का साफ पानी और ऑक्सीजन तैयार करते हैं.
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स्पेस स्टेशन में पानी और हवा की रिसाइकिलिंग के लिए उपकरण मौजूद होते हैं. पानी रिसाइकिल करने के लिए ECLSS सिस्टम होता है, जिसमें एस्ट्रोनॉट्स का पसीना, मूत्र का पानी रिसाइकिल किया जाता है. यूज्ड पानी को प्रोसेसर असेंबली चेंबर में भेजा जाता है, जहां उसे केमिकल के जरिये साफ करके पीने लायक बनाया जाता है. एस्ट्रोनॉट्स का पसीना और सांस लेने पर निकलने वाली भाप को डी-ह्यूमिडिफायर के जरिये एब्जॉर्ब किया जाता है और फिर उसे पीने लायक पानी में बदला जाता है.
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ऑक्सीजन बनाने के लिए भी एस्ट्रोनॉट्स रिसाइकिल किए पानी का इस्तेमाल करते हैं. रिसाइकिल हुए पानी को प्रेशराइज्ड टैंक में जमा करके वहां उसमें बिजली प्रवाहित कर इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के जरिये पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग-अलग किया जाता है. फिर ऑक्सीजन को जमा कर लिया जाता है. अंतरिक्ष स्टेशन पर लगे विशाल सौर पैनलों के कारण वहां बिजली की कोई कमी नहीं होती है.
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आपके दिमाग में सवाल होगा कि जब पानी से अंतरिक्ष स्टेशन पर ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को अलग कर लेते हैं तो हाइड्रोजन का क्या होता है? इस प्रक्रिया में निकली हाइड्रोजन को उस कार्बन डाइ ऑक्साइड से रिएक्ट कराया जाता है, जो एस्ट्रोनॉट्स अपनी सांस के साथ छोड़ते हैं. इस रिएक्शन से कार्बन डाइ ऑक्साइड में मौजूद ऑक्सीजन फिर से हाइड्रोजन के साथ जुड़ जाती है और पानी में बदल जाती है. इस प्रक्रिया में बेहद जहरीली मीथेन गैस भी निकलती है, जिसे विशेष छिद्रों के जरिये अंतरिक्ष में छोड़ दिया जाता है. इस तरह एस्ट्रोनॉट्स के पास अतिरिक्त पानी हो जाता है.
Short Title
अंतरिक्ष में नहीं होती ऑक्सीजन, 9 महीने कैसे जिंदा रहीं सुनीता विलियम्स
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