डीएनए हिंदी: कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच आपने जरूर सुना होगा कि बार-बार कहा जाता है कि इसका स्तर वैश्विक महंगाई पर पड़ सकता है. रूस-यूक्रेन जंग का असर यूरोप में बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहा है. गेहूं और खाने-पीने की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है. महामारी हो या आपदा किसी भी देश में महंगाई बढ़ने की प्रमुख वजह है. आइए समझते हैं कि क्यों महंगाई युद्धों की वजह से बढ़ जाती है और उसे नियंत्रित करने के लिए अर्थशास्त्र में कुछ तरीके होते हैं. आइए विस्तार से समझते हैं इसके बारे में.
युद्ध की वजह से देश की अर्थव्यवस्था का संतुलन बिगड़ता है
जब भी कोई देश युद्ध छेड़ता है या फिर हमले का सामना करता है तो जाहिर तौर अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों और युद्ध कौशल के विस्तार पर खर्च करना पड़ता है. ऐसी परिस्थिति में एक नियमित अर्थव्यवस्था का पूरा चक्र बाधित हो जाता है.
इस वक्त यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध चल रहा है. दोनों ही देशों को अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा युद्ध में झोंकना पड़ रहा है. जब कोई देश युद्ध जैसे संकट का सामना कर रहा होता है तो उस दौरान में बड़े पैमाने पर चलने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं जैसे बेरोजगारी भत्ता वगैह को खत्म करना पड़ता है. यह सामान्य समीकरण है कि जब नागरिकों की जेब में कम पैसा आएगा तो उनकी खरीद क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होगी.
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मांग और आपूर्ति में कमी बढ़ाती है महंगाई
लंबे समय तक चलने वाले युद्ध का असर मांग और आपूर्ति पर पड़ता है. युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर कामकाज और नियमित उपक्रम ठप हो जाते हैं. इस वक्त यूक्रेन में ज्यादातर शहरों के मॉल, दुकानें और छोटे कारखाने बंद हैं.
देश के उत्पादन पर बड़ा असर पड़ा है. लोगों को नौकरी और रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं और पैसे की कमी हो रही है. ऐसी स्थिति में अपने-आप खरीद क्षमता घट जाती है मांग और आपूर्ति दोनों पर ही असर पड़ता है जिसकी वजह से महंगाई बढ़ जाती है.
युद्ध उत्पादन और निर्यात को करते हैं प्रभावित
युद्ध जैसी संकटकालीन परिस्थितियों में उत्पादन प्रभावित होता है. यूक्रेन से पूरे यूरोप में गेहूं की सप्लाई होती है लेकिन युद्ध के कारण गेहूं उत्पादन पर बहुत बुरा असर पड़ा है. साथ ही, रूस ने गेहूं निर्यात के रास्तों को भी बंद कर दिया है और यूरोप तक रसद पहुंच नहीं पा रही है. इसका असर सिर्फ यूक्रेन तक सीमित नहीं बल्कि यूरोप में भी गेहूं की कीमतों में उछाल दिख रहा है.
कई बार देश कुछ जरूरी चीजों का आयात करते हैं. जैसे कि अनाज या पेट्रोल या ऐसी और कई चीजें. युद्ध जैसी परिस्थितियों में संकटग्रस्त देशों को आयात करने में मुश्किल होती है. कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि युद्ध की वजह से देश की अर्थव्यवस्था जर्जर हो जाती है और उनके पास आयात के लिए जरूरी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं बचता है. ऐसी परिस्थितियां भी महंगाई को आसानी से बढ़ा देती हैं.
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युद्ध में महंगाई पर नियंत्रण के लिए किए जाते हैं ये उपाय
युद्ध के दौरान या युद्ध समाप्ति के बाद किसी भी देश की पहली कोशिश होती है कि महंगाई दर पर काबू पाई जा सके. महंगाई दर पर काबू पाने के लिए संकटग्रस्त देश आम तौर पर 3 तरीके अपनाते हैं:
1) जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करना. इसके तहत लोगों को सीधे पैसे दिए जाते हैं ताकि मांग और सप्लाई दोनों की चेन को दुरुस्त किया जा सके. सीधे कैश मदद के लिए बेरोजगारी भत्ता, पेंशन या ऐसी ही योजनाओं का सहारा लिया जाता है.
2) उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर. कुछ देशों की प्राथमिकता रहती है कि जितनी जल्दी हो सके ठप पड़े उत्पादन संयंत्रों को शुरू किया जाए और जल्द से जल्द देश में उत्पादन की दर बढ़ाई जाए. उत्पादन बढ़ाने का असर होता है कि देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और यह रोजगार के अवसर भी बढ़ाता है.
3) कई देश युद्ध के बाद बुरी तरह से जर्जर और बर्बाद हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में इन देशों की मानवीय आधार पर दूसरे संपन्न और शक्तिशाली देश मदद करते हैं. मदद कई तरीकों से होती है जैसे कुछ देश उत्पादन संयंत्र और इनफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में आर्थिक सहायता या कर्ज के तौर पर सहायता देते हैं. बड़े व्यापारिक और रणनीतिक समझौतों के तहत निवेश किया जाता है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान को खड़ा करने में अमेरिका ने काफी मदद की थी.
इनपुट: फोर्ब्स, इकनॉमिक जरनल से लिए गए तथ्यों के साथ
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