डीएनए हिंदी: केंद्रीय चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा के चुनावों का ऐलान कर दिया है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, मिजोरम, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में 7 नवंबर से 30 नवंबर के बीच वोट डाले जाएंगे. इन सभी के नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे. चुनावों के ऐलान के साथ इन सभी राज्यों में आचार संहिता लागू हो जाती है. आचार संहिता का सामान्य मतलब यह समझा जाता है कि मौजूदा सरकार अब नए कामों का ऐलान नहीं कर पाती है, योजनाओं के पोस्टरों और सरकारी प्रचार सामग्रियों से नेताओं की तस्वीरें और नाम हटा दिए जाते हैं. इसके अलावा भी कई नियम होते हैं जिनका पालन नेताओं और अन्य विभागों को भी करना होता है.
आचार संहिता ही वह वजह होती है कि चुनाव के ऐलान से ठीक पहले सरकारों की ओर से उद्घाटन, शिलान्यास और नई योजनाओं का ऐलान धड़ल्ले से किया जाता है. चुनाव से ठीक पहले राज्यों में अधिकारियों के ट्रांसफर भी बड़े स्तर पर होते हैं क्योंकि चुनाव के दौरान ट्रांसफर का काम चुनाव आयोग ही करता है. ऐसे में चुनावों को निष्पक्ष बनाने, सत्ता पक्ष को अतिरिक्त लाभ न देने और सबको समान अवसर देने के लिए चुनावी आचार संहिता लागू की जाती है. आइए समझते हैं कि इससे जुड़े नियम क्या-क्या हैं...
आचार संहिता में क्या होता है?
अलग-अलग चुनावों में आचार संहिता का क्षेत्र अलग होता है. लोकसभा के चुनाव में एकसाथ सभी राज्यों में आचार संहिता लागू होती है. राज्यों के चुनाव में सिर्फ उसी राज्य में ये नियम लागू होते हैं जहां चुनाव हो रहे हों. किसी उपचुनाव में सिर्फ उसी निर्वाचन क्षेत्र में आचार संहिता लागू होती है जहां चुनाव कराए जा रहे हैं. इसमें राजनीतक दलों, नेताओं, उम्मीदवारों, सत्ताधारी दल के चुनाव प्रचार, बैठकों, जुलूस और अन्य गतिविधियों से संबंधित नियम बताए जाते हैं.
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आचार संहिता के मुताबिक, कोई भी पार्टी या उम्मीदवार जाति, समुदाय या भाषाई आधार पर भेदभाव और नफरत पैदा करने वाली गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकता. चुनाव प्रचार के लिए मंदिर, मस्जिद, चर्च, और धर्म स्थलों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के मंच के तौर पर नहीं किया जा सकता. चुनाव के दौरान जाति या सांप्रदायिक आधार पर वोट नहीं मांगे जा सकते.
मंत्रियों पर कौन से नियम लागू होते हैं?
आचार संहिता लागू होने के बाद सत्ताधारी दल के नेता और मंत्री अपनी आधिकारिक यात्राओं को इस्तेमाल चुनाव प्रचार में नहीं कर सकते. वह चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते. सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान का भी इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता. मंत्री किसी भी अधिकारी की ट्रांसफर पोस्टिंग भी बिना चुनाव आयोग की अनुमति के नहीं कर सकते हैं. चुनाव के ऐलान के बाद किसी भी तरह की योजनाओं का उद्घाटन नहीं किया जा सकता है.
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चुनावी आचार संहिता का इतिहास
आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले साल 1960 में केरल के विधानसभा चुनाव से हुई. 1962 में लोकसभा चुनावों में भी इसे लागू किया गया. 1967 से सभी चुनावों में इसे लागू कर दिया गया. इनके मुताबिक, प्रत्याशी मतदाताओं को बूथ तक लाने के लिए गाड़ी का इंतजाम नहीं कर सकते, रिश्वत देकर वोट लेने की कोशिश नहीं की जा सकती, सभी रैलियों और कार्यक्रमों की अनुमति चुनाव आयोग से लेनी पड़ती है.
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चुनावों के ऐलान के बाद MP, MLA और सरकार पर कितना पड़ता है असर?