डीएनए हिंदी: खालिस्तान आंदोलन असल मुद्दा भारत का है लेकिन इसकी आवाज भारत के बजाय कनाडा से ज्यादा सुनाई देती है. कुछ दिन पहले कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सिख अलगाववादी नेता और आतंकवादी हरदीप सिंह गुर्जर की हत्या के मामले में भारत पर आरोप लगाए, जिनकी जून में ब्रिटिश कोलंबिया राज्य में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. जिसको भारत सरकार ने बेतुका बताते हुए खारिज कर दिया. इसके बाद से 'खालिस्तान आंदोलन' का जिक्र होने लगा. ऐसे में आइए जानते हैं कि खालिस्तान मूवमेंट कितना पुराना है और इसमें कनाडा का क्या रोल है. इसके साथ जानेंगे कि खालिस्तान आंदोलन की वजह से भारत को किस तरह की परेशानी हुई.
कनाडा और ब्रिटेन में भारत विरोधी विरोध प्रदर्शन अक्सर ही होते रहते हैं इनका पंजाब पर कोई असर नहीं है. पंजाब के लोग उस दौर में बिल्कुल भी नहीं जाना चाहते हैं क्योंकि पंजाब के बहुत सारे लोगों का घाव अभी तक नहीं भर पाया है, जिन्होंने 'खालिस्तान आंदोलन' के दौरान कई तरह के दर्द झेले हैं. ऐसे में बार-बार यह सवाल उठता है कि जब पंजाबी सिख खालिस्तान की मांग नहीं कर रहे हैं तो वह कौन से लोग हैं, जो दूसरे देश में बैठकर 'खालिस्तान मूवमेंट' को बढ़ावा दे रहे हैं. यह सब जानने के लिए हमें इतिहास जानना जरूरी है तो आइए जानते हैं कि खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत के क्या कारण है...
कैसे हुई 'खालिस्तान मूवमेंट' की शुरुआत?
31 दिसंबर 1929 को उसे समय लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. इसमें मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा. मुस्लिम लिंग की अगुवाई कर रहे मोहम्मद अली जिन्ना, दलितों की अगुवाई कर रहे हैं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और शिरोमणि अकाली दल की अगुवाई कर रहे मास्टर तारा सिंह ने विरोध किया. इस दौरान ही तारा सिंह ने पहली बार सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की. 1947 में भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद यह मांग आंदोलन में बदल गई. 19 साल तक अलग सिख सूबे के लिए आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे. इस दौरान हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी और 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को भाषा के आधार पर तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया. सिखों के लिए पंजाब, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ बना दिया.
किस नेता ने की खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत?
1969 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें टांडा विधानसभा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगदीश सिंह चौहान भी खड़े हुए. इस चुनाव में वह हार गए, विधानसभा चुनाव में मिली हार के 2 साल बाद जगजीत सिंह चौहान ब्रिटेन चले. जहां से उन्होंने खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की. 13 अक्टूबर 1971 को जगजीत सिंह ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक विज्ञापन छपवाया. जिसमें उसने खुद को तथा अतीत खाली स्थान का पहला राष्ट्रपति घोषित कर दिया. इसके साथ उसने खालिस्तान आंदोलन के लिए फंडिंग की मांग का भी एक विज्ञापन छपवाया. 1977 में जगजीत सिंह भारत लौटा और 1979 में ब्रिटेन वापस चला गया. वहां पर उसने 'खालिस्तान नेशनल काउंसलिंग' की स्थापना की.
जगजीत सिंह को मिला पाकिस्तान आने का निमंत्रण
सबके बीच पाकिस्तान और भारत के बीच 1971 का युद्ध हुआ था. पाकिस्तान ने इस युद्ध में खालिस्तान आंदोलन को हवा देने की कोशिश की थी. जगजीत सिंह को पाकिस्तान आने का निमंत्रण मिला. जहां उसने खालिस्तान की बात की और पाकिस्तानी मीडिया ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उछाला. जगजीत सिंह के अनुसार जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें प्रस्ताव दिया था कि ननकाना साहिब खालिस्तान की राजधानी बना दी जाएगी.
क्या है आनंदपुर रेजाल्यूशन?
1972 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस सत्ता में आई. इसके बाद 1973 में अकाली दल ने अपने राज्य के लिए अधिक अधिकारों की मांग की. आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में सिखों ने ज्यादा स्वायत्त पंजाब के लिए अलग संविधान बनाने की मांग रखी. साल 1973 में अकाली दल की कार्यसमिति ने आनंदपुर साहिब में आयोजित एक सम्मेलन में एक नीतिगत प्रस्ताव अपनाया. जिसे आनंदपुर रिजॉल्यूशन कहा जाता है. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि केंद्र सरकार को डिफेंस, मुद्रा और विदेश नीति को छोड़कर बाकी मामले पंजाब सूूबे पर छोड़ देने चाहिए. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इसे देशद्रोही मांग बताते हुए कहा था कि ये कोई ऑटोनोमी की डिमांड नहीं ये तो अलग देश की मांग है और अगले एक दशक तक इस पर कोई चर्चा नहीं हुई.
भिंडरावाले की एंट्री के बाद बिगड़ते गए हालत
खालिस्तान आंदोलन में जनरैल सिंह भिंडरावाले की एंट्री हुई. जिसको लेकर
जाने - माने पत्रकार खुशवंत सिंह ने कहा था कि वह हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या करने के लिए उकसाता था. उसका कहना था कि इससे सिखों की समस्या जल्द ही हल हो सकती है. इस बीच ब्रिटेन में रह रहा जगजीत सिंह भी भारत में जनरैल के संपर्क में था. इसके साथ ही जगजीत ने कनाडा, अमेरिका और जर्मनी में मौजूद खालिस्तान कल गांव वीडियो से संपर्क बनाए रखा था.
खालिस्तान हिंसा की आलोचना करने पर पंजाब केसरी के एडिटर की हुई थी हत्या
इस बीच खालिस्तान आतंकवादियों ने सितंबर 1981 में पंजाब केसरी के संस्थापक और एडिटर लाला जगत नारायण की गोली मारकर भी चौराहे पर हत्या कर दी थी. वह अपने लेकर जारी लगातार खालिस्तान हिंसा की आलोचना कर रहे थे. इस हत्या में बब्बर खालसा के आतंकी तलविंदर सिंह परमार समेत भिंडरावाले का नाम सामने आया. इस मामले में भिंडरावाले ने सरेंडर भी किया लेकिन सबूत के अभाव में उसे छोड़ दिया गया था.
1984 में शुरू हुआ ऑपरेशन ब्लूस्टार
भिंडरांवाला ने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया. वहां से आदेश जारी किए जाने लगे थे. भिंडरांवाला और उसके समर्थक स्वर्ण मंदिर के अंदर भारी हथियार इकट्ठा करने लगे. सरकार हथियारों के इस ज़ख़ीरे को रोक नहीं पाई. जिसके बाद सरकार ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया. एक जून से ही सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू कर दी थी. 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस ऑपरेशन में 83 सैनिक शहीद हुए थे और 249 घायल हुए थे. इस ऑपरेशन के चार महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने कर दी. इसके बाद दिल्ली समय देश के कहीं हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए. कई सिख परिवारों ने कनाडा और अन्य देशों में शरण ले ली.
कैसे बिगड़े कनाडा और भारत के रिश्तें?
खालिस्तान विचारधारा समर्थकों की गिरफ्तारी और उन पर हुए लगातार एक्शन की वजह से खालिस्तान आंदोलन धीरे-धीरे सुस्त पड़ने लगा. बीते कुछ सालों से देश के बाहर इसकी मांग करने वाले कई लोग सामने आए. कनाडा में बैठकर भारत में खालिस्तान आंदोलन को बढ़ाते हैं और भारत में विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं. कहा जाता है कि कनाडा की चुनावी राजनीति, जिसमें सिख अब अहम भूमिका में हैं. ऐसे में वहां के नेता सिखों का वोट साधने के लिए खालिस्तान समर्थकों की खड़ी दिखाई देते हैं. वहीं, जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आतंकवादी हरदीप निज्जर की हत्या को लेकर भारत पर आरोप लगाया तो भारत ने कड़ा रुख अपनाया. भारत ने कनाडाई डिप्लोमैट को निष्कासित कर दिया और 5 दिन के भीतर देश छोड़ने को कहा है. भारत और कनाडा के बीच संबंधों में खटास के पीछे खालिस्तान आंदोलन है, जिसके लीडर्स के लिए कनाडा 'शरणस्थली' बना रहा है.
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कितना पुराना है खालिस्तान मूवमेंट, क्या है कनाडा का रोल, क्यों बढ़ीं भारत की परेशानियां?