डीएनए हिंदी: ओडिशा के बालासोर में 2 जून को भीषण ट्रेन हादसा हुआ. इस हादसे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. इसमें 288 लोगों की जान चली गई, जबकि करीब एक हजार लोग घायल हो गए. इस हादसे की असल वजह की पहचान कर ली गई है. केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को बताया कि दुर्घटना की वजह रेलवे सिग्नल के लिए अहम ‘प्वाइंट मशीन’ और ‘इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग’ प्रणाली से संबंधित है. उन्होंने कहा कि ‘इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग’ की वजह से यह हादसा हुआ. वैष्णव ने कहा कि इस घटना का रेलवे की ‘सुरक्षा कवच’ सिस्टम से कोई संबंध नहीं है.
अश्विनी वैष्णव ने बताया है कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है और घटना के कारणों पता लगाने के साथ-साथ इसके लिए जिम्मेदार लोगों की भी पहचान कर ली है. मैं इस पर विस्तार से बात नहीं करना चाहता. रिपोर्ट आने दीजिए. उन्होंने कहा कि मरम्मत का काम युद्धस्तर पर किया जा रहा है और एक मुख्य लाइन पर पटरियां पहले ही बिछाई जा चुकी हैं. हमने सभी संसाधनों को काम पर लगाया है. मैं यह भी कहना चाहता हूं कि कवच प्रणाली का इस दुर्घटना से कोई संबंध नहीं है. यह हादसा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली में बदलाव की वजह से हुआ. आइये जानते हैं असल में इंटरलॉकिंग सिस्टम है क्या और रेलवे में कैसे ये काम करता है.
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What is Electronic Interlocking System: इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम क्या है?
भारतीय रेलवे में इंटरलॉकिंग सिस्टम सिग्नल देने में उपयोग होने वाली महत्वपूर्ण प्रणाली है. आसान भाषा में समझें तो यह ट्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक सिस्टम है. इसके जरिए रेलवे स्टेशनों, जंक्शनों और सिग्नलिंग बिंदुओं पर ट्रेन की आवाजाही को सुरक्षित और कुशल संचालन के लिए फंक्शंस कंट्रोल किए जाते हैं. यानी इंटरलॉकिंग सिस्टम का उद्देश्य यह है कि किसी भी ट्रेन को तब तक आगे बढ़ने का सिग्नल नहीं मिलता जब तक वह लाइन क्लियर (ग्रीन) न हो.
इंटरलॉकिंग का मतलब है कि स्टेशन से ट्रेन के गुजरते समय अगर लूप लाइन सेट है, तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं दिया जाएगा. इसी तरह अगर मेन लाइन सेट है तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं दिया जाएगा.
रेलवे में 2 प्रकार के होते हैं इंटरलॉकिंग
रेल मंत्रालय के अनुसार, रेलवे में दो प्रकार के इंटरलॉकिंग सिस्टम होता है. एक तो मैकेनिकल इंटरलॉकिंग या इलेक्ट्रिकल इंटरलॉकिं और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटर आधारित होता है. इलेक्ट्रोनिक इंटरलॉकिंग आज के समय में मॉर्डर्न सिग्नलिंग हैं. यह ऐसा सिग्निलंग अरेंजमेंट है. जिसमें मैकेनिकल या कन्वेंशनल पैनल से ज्यादा फायदे होते हैं. Electronic Interlocking लॉजिक सॉफ्टेवेयर बेस्ड होता है. इसमें मॉडिफिकेशन आसान होता है. फेल होने की स्थिति में भी इसमें कम से कम सिस्टम डाउन टाइम होता है.
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Interlocking कैसे करता है काम?
एक रेलवे अधिकारी के अनुसार, रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें होती हैं. इन लाइनों को आपस में जोड़ने के लिए स्टेशन से कुछ दूर पॉइंट होते हैं. इन पॉइंट्स को जोड़ने के लिए मोटर लगी होती है. इन पॉइंट्स और सिग्नल के बीच एक लॉकिंग होती है. यह लॉकिंग इस तरह होती है कि पॉइंट सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट किया हो उसी का ग्रीन सिग्नल आए. इसे सिग्नल को इंटरलॉकिंग कहते हैं. इसका कंट्रोल स्टेशन पर बैठे कर्मचारी के पास होता है. यह कर्मचारी आने वाली ट्रेन के लोको पायलट को सिग्नल देता है कि वह कौनसे रेलवे स्टेशन के यार्ड में प्रवेश करे.
इंटरलॉकिंग ही ट्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करती है कि स्टेशन पर यह लाइन क्लियर है. इंटरलॉकिंग का मतलब है कि अगर लूप लाइन सेट है, तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा. वहीं अगर मेन लाइन सेट है, तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा.
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क्या है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम, पटरी पर दौड़ रही ट्रेनों के लिए कैसे करता है काम?