ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर रोक लगाने की तैयारी मैं है. एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने गुरुवार को बच्चों पर सोशल मीडिया के हानिकारक प्रभाव की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा, 'मैंने हजारों माता-पिता, दादा-दादी, अंकल और आंटी से बात की है. वे, मेरी तरह, हमारे बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं.'

ऑस्ट्रलिया की सरकार ने यह तय किया है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों का सोशल मीडिया पर कोई अकाउंट नहीं होगा. ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने इस संबंध में जल्द से जल्द कानून लागू करने को कहा है और साथ ही नियम तोड़ने वाले के खिलाफ सख्त सजा का ऐलान भी किया है. आपको बता दें ऑस्ट्रेलिया की सरकार के इस फैसले की चौतरफा तारीफ हो रही है. वर्तमान समय में जहां सोशल मीडिया बच्चों के लिए हवा, पानी से भी ज्यादा जरूरी हो गया है ऐसे में बच्चों को इसका एडिक्ट बनने से रोकने में सरकार ये कदम सराहनीय है. 

सोशल मीडिया का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर 
सोशल मीडिया बच्चों के लिए वरदान और अभिशाप दोनों हो सकता है. भोपला के बंसल अस्पताल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि आज के दौर में, सोशल मीडिया बच्चों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके कारण आने वाली मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों के साथ-साथ समय की बर्बादी को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता.

सोचिए, जब हम खुद सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं, तो एक अजीब सी तुलना और असुरक्षा की भावना हमारे भीतर भी आ जाती है. अब कल्पना कीजिए कि वही प्रभाव बच्चों पर कितना गहरा असर डालता होगा, जब उनके पास इसे समझने और इससे निपटने का अनुभव नहीं होता. बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य उनके पूरे जीवन की नींव है. ऐसे में सोशल मीडिया के कारण उनमें असुरक्षा, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याओं का आना सामान्य होता जा रहा है. इस प्रतिबंध से उन्हें इन चुनौतियों से दूर रखने का एक मौका मिलेगा.

असली दुनिया से दूर हो रहे बच्चे
सोशल मीडिया पर घंटों बिताने से बच्चों का असली दुनिया से जुड़ाव कमजोर होता जा रहा है. वह समय जो वह खेल-कूद, दोस्तों के साथ या परिवार के साथ बिता सकते हैं, वह स्क्रीन के सामने खत्म हो जाता है. असली रिश्तों से जुड़ाव और बातचीत का अनुभव उन्हें आत्मविश्वास और बेहतर सामाजिक कौशल देता है. अगर उन्हें सोशल मीडिया से थोड़ा दूर रखा जाए, तो शायद वह ज्यादा स्वस्थ तरीके से असली दुनिया से जुड़ पाएंगे.

साइबर बुलिंग का सामना
बच्चों को अक्सर सोशल मीडिया पर साइबर बुलिंग का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका आत्म-सम्मान और मानसिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित होती है. साइबर बुलिंग के कारण बच्चे अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं और उनमें डर, चिंता और अवसाद बढ़ सकता है. यह प्रतिबंध बच्चों को इन खतरों से बचाने में सहायक हो सकता है, जिससे वे सुरक्षित और आत्मविश्वास से भरपूर महसूस कर सकेंगे. 

बिगड़ रहा बच्चों का फोकस
सोशल मीडिया बच्चों के समय को अनजाने में ही निगल जाता है. वे अक्सर बिना किसी खास मकसद के वीडियो देखते रहते हैं, पोस्ट्स स्क्रॉल करते हैं और चैट में घंटों बिता देते हैं. यह समय जो उनके पढ़ाई, खेल, और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में खर्च हो सकता था, वह बर्बाद हो जाता है. समय की इस बर्बादी के कारण उनका ध्यान बंट जाता है, और वे महत्वपूर्ण कार्यों में एकाग्रता नहीं रख पाते. सोशल मीडिया से दूरी उन्हें समय का सदुपयोग करने की आदत सिखा सकती है और उनकी प्रगति में मददगार हो सकती है.

क्या करें माता-पिता?
डॉ. सत्यकांत बताते हैं कि भारत में दुनिया की सबसे अधिक आबादी है. अगर यहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया के इस्तेमाल में लग गया तो प्रोडक्टिविटी पर गहरा असर पड़ेगा. वे कहते हैं कि बच्चों पर सोशल मीडिया प्रतिबंध के साथ ही माता-पिता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. यह जरूरी है कि माता-पिता बच्चों को यह समझाएं कि सोशल मीडिया के बिना भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है और उन्हें सुरक्षित विकल्प उपलब्ध कराएं. बच्चों के समय का सदुपयोग कैसे करें, यह सिखाना भी माता-पिता की जिम्मेदारी है ताकि बच्चों का मानसिक विकास सही दिशा में हो सके.

'यह सवाल बहुत स्वाभाविक है कि क्या यह कदम हमारे देश में भी उठाया जाना चाहिए. भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से बढ़ा है और यहां भी बच्चों को साइबर बुलिंग, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, और समय की बर्बादी का सामना करना पड़ रहा है. यदि हम इस दिशा में ध्यान दें और बच्चों को सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों की ओर प्रेरित करें, तो हो सकता है कि हम एक बेहतर और संतुलित पीढ़ी का निर्माण कर पाएं.'

-डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक, बंसल अस्पताल, भोपाल

डॉ. सत्यकांत के मुताबिक, 'ऑस्ट्रेलिया का यह निर्णय बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, समय प्रबंधन और उनके भविष्य के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है. सोशल मीडिया के प्रति हमारी बढ़ती निर्भरता पर थोड़ा नियंत्रण रखना शायद हमारे समाज के लिए भी फायदेमंद साबित हो. बच्चों के लिए यह एक मौका है कि वे असली दुनिया से जुड़ें, सीखें, और जीवन के वास्तविक अनुभवों को महसूस करें. बच्चों को स्वस्थ और सकारात्मक माहौल देना ही उनकी सच्ची परवरिश का हिस्सा है.' 


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आपको बता दें एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में लोग औसतन 1 घंटा 51 मिनट और भारत में औसतन प्रतिदिन 194 मिनट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिताते हैं. भारत में पिछले साल दिल्ली स्थित NGO द एस्या सेंटर और आईआईएम अहमदाबाद की तरफ से जारी 'नए युग का डिजिटल मीडिया उपभोग: सोशल मीडिया, ओटीटी सामग्री ऑनलाइन गेमिंग का सर्वेक्षण' रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में औसतन 46 मिनट लोग ऑनलाइन गेम पर बिताते हैं.' कई बार ऐसी खबरें भी आई हैं जिन्होंने ये दिखाया है कि सोशल मीडिया की जद में आकर बच्चों ने अपना और दूसरों का कितना नुकसान किया है. अगर बच्चों को सोशल मीडिया के अति इस्तेमाल से समय पर नहीं रोका गया तो भारत में स्थिति को संभालना और मुश्किल होगा. 

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this country children below 16 years of age will not be able to use social media get rid of addiction
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अब इस देश में 16 साल से कम उम्र के बच्चे इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे सोशल मीडिया
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अब इस देश में 16 साल से कम उम्र के बच्चे इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे सोशल मीडिया, इस लत को छुड़ाने के अचूक उपाय
 

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