डीएनए हिंदी: पश्चिम बंगाल में एक जगह है सिंगूर. यही जगह कई घटनाओं की साक्षी बनी है. अब इसी के विवाद में ममता बनर्जी की सरकार पर भारी भरकम जुर्माना लग गया है. ये पैसे कार बनाने वाली मशहूर कंपनी टाटा को दिए जाने हैं. अब ममता सरकार टाटा मोटर्स को 766 करोड़ रुपये देगी. हालांकि, इस जगह की अहमियत सिर्फ इतनी ही नहीं है. सिंगूर के लिए साल 2006 में हुआ आंदोलन ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सत्ता पर स्थापित करने में भी काफी अहम रहा है. फिर उसी टाटा नैनो कार का प्लांट गुजरात गया और उसने नरेंद्र मोदी के बारे में लोगों को यह भरोसा दिलाया कि वह विकास को अहमियत देते हैं.

पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने सिंगूर में टाटा मोटर्स की नैनो कार बनाने के लिए प्लांट बनाने के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी. इसके लिए फैक्ट्री बनाई जानी थी और जमीन का अधिग्रहण होना था. ममता बनर्जी राजनीतिक जमीन तलाश रही थीं और लेफ्ट की मुखर विरोधी थीं. उनकी अगुवाई में सिंगूर का आंदोलन मुखर हुआ.

आंदोलन इतना मजबूत हुआ कि टाटा को सिंगूर से वापस लौटना पड़ा. बाद में जब ममता बनर्जी सरकार में आईं तो उन्होंने 13 हजार किसानों की लगभग 1000 एकड़ जमीन लौटाने का फैसला किया. इतनी जमीन का अधिग्रहण टाटा के प्लांट के लिए किया जा चुका था.

ममता बनर्जी 2006

आखिर में टाटा मोटर्स ने सिंगूर में प्रोजेक्ट शुरू न करने का फैसला किया. उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने टाटा मोटर्स को गुजरात आने का प्रस्ताव दिया और टाटा नैनो का यह प्लांट गुजरात के साणंद में लगाया गया.

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कब क्या-क्या हुआ?
साल 2011 में टाटा मोटर्स ने ममता बनर्जी की सरकार के उस कानून को चुनौती दी जिसके जरिए अधिग्रहण की जा चुकी जमीन छीनी गई थी. साल 2012 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने सिंगूर अधिनियम को असंवैधानिक बताया और कंपनी के अधिकार बहाल कर दिए गए. हालांकि, टाटा मोटर्स को जमीन का कब्जा नहीं मिल पाया.

ममता बनर्जी की सरकार अगस्त 2012 में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. चार साल सुप्रीम कोर्ट में केस चला और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलटते हुए भूमि अधिग्रहण को अवैध बताया और कहा कि जो जमीन ली गई थी वह उसके मालिकों यानी किसानों को लौटा दी जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद टाटा मोटर्स ने लीज कॉन्ट्रैक्ट का हवाला देते हुए क्षतिपूर्ति की मांग की.

अब 7 साल बाद टाटा मोटर्स को इस मामले में जीत मिली है और तीन सदस्यीय ट्राइब्यूनल ने कहा है कि ममता बनर्जी सरकार टाटा मोटर्स को ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये का हर्जाना दे.

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ममता बनर्जी ने की थी सिंगूर आंदोलन की अगुवाई
2006 में सिंगूर आंदोलन ने ही ममता बनर्जी को राज्य व्यापी पहचान दी. इसी के बलबूते न सिर्फ वह पश्चिम बंगाल की सत्ता पर भी काबिज हुई बल्कि लेफ्ट को राज्य से गायब ही कर दिया. 2011 में मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार भी बंगाल की सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही हैं. इतना ही नहीं उनकी पार्टी ने तीसरी बार भी बंपर बहुमत लेकर सरकार बनाई है. वहीं, दशकों तक पश्चिम बंगाल की सत्ता पर राज करने वाली लेफ्ट अब राज्य में अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी हुई है.

ममता बनर्जी 2011

क्यों खास है सिंगूर?
सिंगूर पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में पड़ता है. कोलकाता से 45 किलोमीटर दूर मौजूद यह जगह टाटा के प्लांट की वजह से चर्चा में आई थी. यहां के छह मौजा- गोपालनगर, बेराबेरी, बाजेमेलिका, खासेरबेरी, सिंगेरबेरी और जयमल्लाबेरी की जमीनों को टाटा के प्लांट के लिए लिया गया था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यह क्षेत्र काफी उपजाऊ है और यहां धान और आलू के साथ-साथ जूट और अन्य सब्जियों की खेती भी काफी अच्छी होती थी.

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टीएमसी कहती है कि सिंगूर के प्लांट में लगभग 6 हजार परिवारों की जमीन जानी थी. इसमें ज्यादातर लोग छोटे किसान और मजदूर थे. जमीन न होने की स्थिति में वे बेघर, बेरोजगार और बेसहारा हो जाते. यही वजह थी कि ममता बनर्जी की अगुवाई ने लोगों ने 24 जुलाई 2006 को दुर्गापुर एक्सप्रेसवे को ब्लॉक कर दिया था. सैकड़ों गांवों के लोगों ने सरकारी अधिकारियों को अपने गांव में भी घुसने से रोक दिया. ममता बनर्जी जमीन पर उतरीं तो कांग्रेस पार्टी ने भी उनका समर्थन किया.

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सिंगूर आंदोलन की कहानी जिसने ममता बनर्जी को बना दिया 'दीदी'
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