डीएनए हिंदी: शरदचंद्र गोविंदराव पवार यानी शरद पवार (Sharad Pawar) ने मंगलवार को घोषणा की कि वो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं. उनके इस ऐलान के बाद सियासी गलियारों में हलचल पैदा हो गई. एनसीपी कार्रकर्ताओं से लेकर अन्य दलों के नेताओं भी हैरान हैं कि शरद पवार ने अचानक यह फैसला लिया क्यों? शरद पवार देश की राजनीति और महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं. जमीनी स्तर से लेकर केंद्रीय राजनीतिक और कार्रकर्ताओं पर उनकी मजबूत पकड़ रही है. यही वजह है कि NCP कार्रकर्ता पवार को अपना फैसला वापस लेने लिए मना रहे हैं.
शरद पवार ने 10 जून, 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया था. तब से ही वह पार्टी की कमान संभाले हुए हैं. शरद पवार के इस्तीफे के बाद पार्टी में बहुत कुछ डगमगा सकता है. हालांकि वह राजनीति के बड़े खिलाड़ी रहे हैं. पांच दशकों के राजनीतिक करियर में उन्हें पता है कि कहां और कब रुकना है. अगर उन्होंने लोकसभा चुनाव से ऐन पहले इतना बड़ा फैसला लिया है तो इसके पीछे कोई बड़ी वजह जरूर होगी. यही उनकी खासियत और उनके ताकतवर होने का राज भी है.
27 साल की उम्र में पहली बार बने विधायक
पुणे से कॉमर्स में ग्रेजुएशन करने वाले बाद से शरद पवार राजनीति में सक्रिय हो गए थे. उन्होंने 1956 में महाराष्ट्र के प्रवरनगर में गोवा की स्वतंत्रता के लिए विरोध मार्च का आह्वान किया था. दो साल बाद 1958 में पवार यूथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. युवा कांग्रेस में शामिल होने के चार साल बाद 1962 में उन्हें पुणे जिला युवा कांग्रेस के अध्यक्ष चुना गया. इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की. पवार ने 27 साल की उम्र में 1968 में महाराष्ट्र की बारामती सीट से कांग्रेस की टिकट पर पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की. 1990 तक इस सीट पर उन्होंने लगातार जीत दर्ज की थी.
38 की उम्र में बने सीएम
विधायक बनने के 10 साल बाद 1978 शरद पवार ने जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई और सबसे कम उम्र के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी के बाद प्रगतिशील लोकतांत्रिक फ्रंट (PDF) सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया गया. 1983 में शरद पवार कांग्रेस (आई) के अध्यक्ष चुने. 1984 में वे बारामती संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए.
1991 में नरसिम्महा राव के नेतृत्व वाली सरकार में पवार रक्षा मंत्री बनाए गए. लेकिन केंद्र से हटाकर उन्हें मार्च 1993 चौथी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनाया गया. क्योंकि बॉम्बे दंगों के राजनीतिक नतीजों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाइक अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. पवार 1995 के विधानसभा चुनवा तक सीएम पद पर बने रहे. इसके बाद उन्होंने 1998-1999 में कांग्रेस के विपक्ष के नेता के रूप में बागडोर संभाली.
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शरद पवार की छवि सियासी समीकरण बैठाने और नए लोगों को सियासी पिच पर लॉन्च कराने के लिए जाने जाते हैं. यही वजह की विपक्ष उनका कद काफी अहम माना जाता है. 2019 के राज्य चुनावों के बाद और पूरे राजनीतिक संकट के बाद, एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना की गठबंधन कराकर महाराष्ट्र में सरकार बनवाने का श्रेय शरद पवार को दिया जाता है.
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