डीएनए हिंदी: राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए और विपक्ष दोनों ही अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं. इन सबके बीच विपक्षी खेमे के साथ-साथ एनडीए को भी क्रॉस वोटिंग का डर सता रहा है. राष्ट्रपति चुनाव से पहले हुए राज्यसभा चुनावों में भी क्रॉस वोटिंग का जिक्र बार-बार आया था. क्रॉस वोटिंग का जिक्र अक्सर ही होता है लेकिन बहुत से लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है. क्या होती है क्रॉस वोटिंग और इससे निपटने के लिए पार्टियां क्या कदम उठाती हैं, ऐसे सभी पहलू समझें यहां.
What Is Cross Voting
सबसे पहला सवाल आता है कि क्रॉस वोटिंग क्या होती है? आपको बता दें कि जब कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी के बजाय विपक्षी उम्मीदवार को मत देता है तो उसे क्रॉस वोटिंग कहते हैं.
राज्यसभा चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव में कई बार ऐसा हो चुका है. हाल ही में राज्यसभा चुनाव में कुलदीप विश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें सभी पदों से बर्खास्त कर दिया था.
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अवैध मतदान से कैसे अलग है क्रॉस वोटिंग
अवैध मतदान और क्रॉस वोटिंग में फर्क है. अवैध मतदान तब होता है जबकि आपने गलत तरीके से मतदान किया हो और इस वजह से मत की गिनती नहीं होती है. राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए होता है. ऐसे में हो सकता है कि किसी सदस्य ने क्रॉस वोटिंग न की हो लेकिन मत अवैध हो सकता है क्योंकि मतदान के तरीके को ठीक से फॉलो नहीं किया गया हो.
क्रॉस वोटिंग में मत की गिनती होती है लेकिन मतदान करने वाला प्रतिनिधि अपनी पार्टी या गुट के उम्मीदवार की जगह विपक्षी खेमे को मत देता है. इस लिहाज से क्रॉस वोटिंग को अवैध मतदान नहीं कहा जा सकता है. आसान भाषा में इसे ऐसे कह सकते हैं कि बीजेपी का कोई सांसद राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जगह पर यशवंत सिन्हा को मत दे तो यह क्रॉस वोटिंग होगी.
क्रॉस वोटिंग न हो इसके लिए पार्टियां क्या करती हैं
क्रॉस वोटिंग को रोकने के लिए पार्टी की ओर से व्हिप जारी किया जाता है. व्हिप जारी करने का अर्थ होता है कि अगर आदेश के खिलाफ कोई सदस्य जाता है तो उसकी पार्टी से सदस्यता खत्म कर दी जाएगी. हालांकि, क्रॉस वोटिंग इसके बाद भी नहीं रुकी है. इसकी वजह है कि पार्टी से निकालने या निलंबित करने के बाद भी विधायक, सासंद की सदस्यता नहीं जाती है और वह अपने पद पर बने रहते हैं.
क्रॉस वोटिंग को लेकर अक्सर ही आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं. पार्टियां एक-दूसरे पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का दावा करती रहती हैं. इस समय भी क्रॉस वोटिंग रोकने के लिए सभी पार्टियां एक्शन मोड में काम कर रही हैं.
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क्रॉस वोटिंग का पता इस तरह लगाती हैं पार्टियां
क्रॉस वोटिंग का पता पार्टियों को चल जाता है क्योंकि राज्यसभा चुनावों और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी का एक प्रतिनिधि मौजूद रहता है और वह निगरानी कर सकता है कि उनके दल के प्रतिनिधि किसको वोट दे रहे हैं. इसके विरोध में कुलदीप नैयर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. नैयर की दलील थी कि उच्च सदन के सदस्यों का चुनाव गुप्त मतदान के जरिए होना चाहिए. हालांकि, उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी.
क्रॉस वोटिंग करने वालों पर होती है कार्रवाई?
आम तौर पर क्रॉस वोटिंग करने वालों पर पार्टियां सख्त एक्शन लेती हैं. उन्हें पार्टी से निकालने या निलंबित करने, प्रमुख पदों से हटाने की कार्रवाई की जाती है. इसके बावजूद भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता बनी रहती है और यही वजह है कि क्रॉस वोटिंग को रोका नहीं जा सका है.
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क्या होती है क्रॉस वोटिंग जिसकी राष्ट्रपति चुनाव में हो रही है चर्चा, जानें इसके बारे में सब कुछ