डीएनए हिंदी: शिवसेना (Shiv Sena) के बागी विधायकों (Rebel MLAs) को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतरिम राहत दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने एक असामान्य न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Inntervention) किया जो संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष की शक्तियों पर सवाल उठाता है.
दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष की शक्तियों को पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने ने ही बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महाराष्ट्र में यथास्थिति बरकरार रखी जाए. डिप्टी स्पीकर 5 दिन के भीतर अपना जवाब पेश करें. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट को लेकर कोई भी अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार कर दिया.
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महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार के गठन को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कब होगा इस पर कोई जानकारी सामने नहीं आई है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने मंगलवार देर रात राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की.
क्या कहता है अंतरिम आदेश?
अंतरिम आदेश में बागी विधायकों को 11 जुलाई तक के लिए अयोग्यता नोटिस पर जवाब देने के लिए और समय दिया गया है. विधायकों से हलफनामा मांगा गया है. अगर स्पीकर बागी विधायकों को अयोग्य ठहराते हैं तो उन्होंने स्पीकर से काउंटर एफिडेविट भी पेश करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लटका दिया है. सदन में विश्वासमत के दौरान इसका असर देखने को मिल सकता है. डिप्टी स्पीकर को हटाने का मुद्दा बेहद जटिल है.
दसवीं अनुसूची क्या कहती है?
1985 में तैयार की गई दसवीं अनुसूची दलबदल विरोधी कानून के बारे में बात करती है. यह सूची सदन के अध्यक्ष को पार्टी से 'बगावत' करने वाले विधायकों को अयोग्य घोषित करने की शक्ति देता है. 1992 के एक ऐतिहासिक मामले 'किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू में, सुप्रीम कोर्ट ने अध्यक्ष में निहित शक्ति को बरकरार रखा था और कहा था कि अध्यक्ष का अंतिम आदेश न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा.
अदालतों ने अब तक इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से परहेज किया है. संवैधानिक संकट की स्थिति में साल 2016 में हुए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर की शक्तियों को कुछ सीमित कर दिया था.
क्या है नबाम रेबिया रूलिंग?
नबाम रेबिया केस राज्यपाल की शक्तियों और सीमाओं से संबंधित था. इसी केस में एंटी डिफेक्शन लॉ यानी दलबदल का जिक्र सामने आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक स्पीकर के लिए अयोग्यता कार्यवाही के पर आगे बढ़ना संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है अगर उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लंबित है.
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दसवीं अनुसूची के तहत अगर एक से ज्यादा अयोग्यता याचिकाओं पर अध्यक्ष फैसला सुनाता है जबकि अध्यक्ष के निष्कासन का प्रस्ताव खुद लंबित है तब ऐसा करना अनुचित होगा. अध्यक्ष को वास्तव में सही तरीके से विधायकों का बहुमत मिला होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य विधानमंडल के सदस्य अगर स्पीकर पर भरोसा जताते हैं तो ऐसा करने में कोई जटिलता सामने नहीं आती है.
स्पीकर को कैसे हटाया जा सकता है?
संविधान के अनुच्छेद 179 के तहत, 'विधानसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित विधानसभा के एक प्रस्ताव द्वारा एक अध्यक्ष को हटाया जा सकता है. यह प्रक्रिया कम से कम 14 दिनों के नोटिस के साथ शुरू होती है.
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2016 के नबाम रेबिया के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 179 की व्याख्या की है. विधानसभा अध्यक्ष को हटाने का नोटिस जारी होने की तिथि के बाद से विधानसभा की संरचना को बदला नहीं जा सकता है. इसलिए विधानसभा अध्यक्ष दसवीं अनुसूची के तहत सदन की संरचना को बदलने के लिए कोई निर्णय नहीं ले सकता जब तक उसे हटाने पर कोई विधि सम्मत फैसला नहीं हो जाता है.
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बागी विधायकों के खिलाफ क्या होती हैं स्पीकर की शक्तियां?