लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) के परिणाम आ चुके हैं. किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ है. गठबंधन की बात करें तो एनडीए (NDA) के पास बहुमत के नंबर मौजूद हैं. एनडीए को कुल 292 सीटों पर जीत हासिल हुई है, वहीं, इंडिया ब्लॉक को कुल 235 सीटों पर बढ़त हासिल हुई है. लोकसभा में बहुमत के लिए 273 सीटों की जरूरत होती है. अब तक के सियासी घटनाक्रम से अब ये साफ हो चुका है कि केंद्र में एनडीए की ही सरकार बनने जा रही है. पीएम नरेंद्र मोदी 9 जून को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. इंडिया ब्लॉक (India bloc) की भूमिका भी विपक्ष के लिए तय हो चुकी है. विपक्षी पार्टियों की बात करें तो कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है. पार्टी के पास 99 लोकसभा की सीटें हैं. सर्वदलीय आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी को सर्वाधिक 240 सीटें मिली हैं. ये तो तय हो चुका है कि लोकसभा में विपक्ष का नेता (Leader of Opposition) कांग्रेस से ही होगा. अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि वो नेता कौन होगा? राहुल गांधी होंगे या कोई और?
क्या राहुल बनेंगे विपक्ष के नेता?
इस चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के राजनीतिक करियर को मानों जीवनदान दे दिया. आम चुनावों में विपक्षी इंडिया ब्लॉक या गठबंधन ने एक्जिट पोल के पूर्वानुमानों को पूरी तरह से झुठला दिया. हालांकि कांग्रेस की अगुआई वाले धड़ा बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को तीसरी बार सत्ता में लौटने से नहीं रोक सका. लेकिन उसके पास अपनी शानदार वापसी के लिए जश्न मनाने का मौका था. यह जीत कांग्रेस के लिए अधिक सुखद रही, जिसने 543 लोकसभा सीटों में से 99 सीटें जीतीं. 2014 के बाद से यह उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन है. राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर चुने जाते हैं, तो ये उनकी एक बड़ी सियासी जीत होगी. इससे उनकी छवि को फायदा पहुंचेगा. एक बेहद ही मजबूत नेता के तौर पर वो उभर कर सामने आ सकते हैं. कांग्रेस के पास भी इस पद के लिए उनसे बेहतर नेता फिलहाल उपलब्ध नहीं है. चुनाव परिणाम के बाद बने मोमेंटम का वो अपने पक्ष में पूरा इस्तेमाल करना चाहेंगे. इससे कांग्रेस और संपूर्ण इंडिया ब्लॉक को फायदा होगा.
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अहम घटनाक्रम जिससे राहुल और कांग्रेस की साख हुई मजबूत
राहुल गांधी की तरफ से भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा जैसे आयोजनों का संचालन करना. 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र की राजनीति पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार के चुनाव में काफी अलग थी, पिछली बार यहां पर बीजेपी और शिवसेना ने साथ में मिलकर चुनाव लड़ा था. जबकि इस बार मामला बिल्कुल अलग था. पिछली बार वहां पर विपक्ष से कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन में थी. कर्नाटक में पिछली बार बीजेपी को भारी जीत हासिल हुई थी, लेकिन इस बार मामला बदला हुआ नजर आया, पिछले साल के अंत में हुए राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत हासिल हुई थी. यहां इंडिया गठबंधन पहले से ज्यादा सीटें जीती हैं. केरल और तमिलनाडु में बीजेपी की गैर-मौजूदगी इंडिया गठबंधन के लिए एक बड़ी ताकत है. इसका भी फायदा कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक को हुआ है. कुछ ऐसी पार्टियां जो इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं थी, लेकिन उनका प्रदर्शन भी शानदार रहा है. जैसे टीएमसी, वाम दल इत्यादि. यूपी और बिहार में इंडिया गठबंधन लगातार ओबीसी, दलित और मुस्लिमों को साधने में लगी हुई थी. जातिगत जनगणना इसका एक बड़ा उदाहरण है. अगर ये दांव भी एक हद तक सही रही है. कांग्रेस, सपा, आप और सीपीएम का एक साथ आना एक बड़ी बात थी, इससे बीजेपी जैसे ताकतवर कैडर वाली पार्टी के सामने स्थिति मजबूत हुई.
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