डीएनए हिंदी: जम्मू और कश्मीर एक बार फिर दहशतर्दों के साये में जाता नजर आ रहा है. आतंकी चुन-चुनकर कश्मीरी पंडियों और हिंदू परिवारों को निशाना बना रहे हैं. एक के बाद एक कई हत्याएं साबित कर ही हैं कि घाटी हिंदुओं के लिए न कल सुरक्षित थी, न आज सुरक्षित है. वजह लागातार हो रही टारगेटेड किलिंग है. 43 वर्षीय पूर्ण कृष्ण भट्ट की हत्या यही साबित कर रही है कि घाटी में हिंदू सुरक्षित नहीं हैं.
पूरन कृष्ण भट्ट पर दक्षिण कश्मीर जिले के चौधरी गुंड इलाके में उनके आवास के नजदीक ही आतंकियों ने गोली मार दी. उन्हें जख्मी हालत में शोपियां अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया लेकिन उससे पहले ही वह दम तोड़ चुके थे. पूर्ण को तब निशाना बनाया गया जब वह चौधरी गुंड शोपियां में बाग की तरफ जा रहे थे. उनकी हत्या के बाद एक बार फिर कश्मीरी पंडित विरोध प्रदर्शनों पर उतर आए हैं.
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हर बार सर्च ऑपरेशन लेकिन नतीजा क्या?
DIG सुजीत कुमार का दावा है कि हत्या की जिम्मेदारी कश्मीर फ्रीडम फाइटर (KFF) ने ली है. यह एक आतंकी संगठन का छद्म नाम है. पूर्ण कृष्ण भट्ट के परिवार में बेटा-बेटी और पत्नी हैं. पुलिस का कहना है कि आतंकियों की तलाश के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है. अगर प्रक्रिया की बात करें तो यह हमेशा होता है लेकिन इसका नतीजा कुछ नहीं निकलता. आतंकी कुछ दिनों बाद फिर ऐसी ही खतरनाक वारदात को अंजाम देते हैं.
कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा देने में फेल हो रही है सरकार
बीते कुछ दिनों में कुल 7 से ज्यादा कश्मीरी पंडित मारे जा चुके हैं. हर मौत सरकार पर कश्मीरी पंडितों का अविश्वास और गहरा देती है. जिन कश्मीरी पंडितो ने पलायन के बाद दोबारा घाटी लौटने का फैसला किया, उनके लिए यह बेहद खतरनाक है. सरकार ने उन्हें पुनर्वास स्कीम के तहत नौकरी दी, घर दिया लेकिन सुरक्षा देने में फेल रही. यही वजह है कि हर कश्मीरी पंडित की मौत के बाद घाटी में दर्जनों विरोध प्रदर्शन होते हैं लेकिन नतीजा जस का तस रहता है.
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विरोध प्रदर्शन के बाद भी नहीं सुनी जा रही हिंदुओं की पुकार
कश्मीर में बीते 5 महीनों से ही कश्मीरी पंडित विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. जब रेवेन्यू क्लर्क राहुल भट्ट की हत्या हुई थी, तब से ही कश्मीरी पंडितों में केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन को लेकर आक्रोश बढ़ा है. राहुल भट्ट की हत्या बड़गाम में 12 मई को हुई थी. 31 मई को संबा जिले में रजनी बाला नाम की एक युवा टीचर की स्कूल के बाहर हत्या हो गई थी. ये हत्याएं लोगों में आक्रोश बढ़ा रही हैं.
सहम गए हैं कश्मीरी हिंदू, ये है केंद्र से शिकायत
लगातार हत्याओं से आम कश्मीरी हिंदू डरे हुए हैं. कश्मीरी पंडितों का कहना है कि उनका सबसे बुरा सपना एक बार फिर सच हो रहा है. अगर उन्होंने घाटी नहीं छोड़ी तो जान से हाथ धो बैठेंगे. हत्याएं रोकने में सुरक्षाबलों और पुलिस की नाकामी यही सवाल खड़े कर रही है. कश्मीरी पंडितों की हत्या के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोग कह रहे हैं कि यह सरकार हमारी उन याचिकाओं को नजर अंदाज कर रही है जिनमें हमने ट्रांसफर की गुहार लगाई है.
पुलिस से कहां हो रही है चूक?
जब कश्मीरी अलगाववादी आतंकियों की निर्मम हत्याओं से डरकर 1990 में 10,000 कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ी थी, तब पुर्ण कृष्ण भट्ट उन लोगों में शुमार थे जो घाटी में रुक गए थे. वह उन 455 कश्मीरी पंडितों में से एक थे जो शोपियां में रह रहे थे. डीआईजी सुजीत कुमार का दावा है कि इस जगह पर पुलिस ने पर्याप्त सुरक्षा की व्यवस्था की है.
Kashmir Killings का चुन-चुनकर बदला ले रहे सुरक्षाबल, दो और आतंकियों को किया ढेर
पुलिस ने कहा है कि इस इलाके में पुलिस के जवान तैनात थे. हमारे सुरक्षाकर्मी लगे हुए हैं. हम चूक कहां हुई यह जानने की कोशिश में जुटे हैं. जब वह स्कूटर लेकर बाहर गए थे तभी घर लौटते वक्त उनकी हत्या हुई है.
हत्याओं का जवाब में जिम्मेदारों के पास केवल 'निंदा'
अगस्त में आतंकियों ने सुनील कुमार नाथ की हत्या कर दी थी. उनके छोटे भाई इस हमले में गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे. कश्मीर में कश्मीर पंडितों की हत्याएं अंतहीन रास्ते की ओर चल पड़ी हैं. उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. लेफ्टिनेंट गर्वनर मनोज सिन्हा से लेकर बीजेपी के महासचिव अशोक कौल तक इन हमलों की निंदा कर रहे हैं. सुरक्षा एजेंसियां भी निंदा कर रही हैं लेकिन कश्मीर में टारगेटेड किलिंग का दौर थम नहीं रहा है.
क्यों नहीं थम रही हैं कश्मीर पंडितों की हत्याएं?
घाटी को अशांत करने के लिए पाकिस्तान पुरजोर कोशिश कर रहा है. आए दिन पाकिस्तानी आतंकी मॉड्यूल पकड़े जा रहे हैं. कुछ आतंकियों को पाकिस्तान में बैठे आका ऑपरेट कर रहे हैं. खुफिया एजेंसियों को लगातार ऐसे इनपुट्स मिल रहे हैं, जिनमें आगाह किया जा रहा है कि सीमा पार से हथियार और गोला-बारूद आ रहे हैं. अगर ये सिलसिला न रुका तो आने वाले दिनों में ग्रेनड अटैक और हत्याएं रुकने वाली नहीं हैं.
क्या कश्मीरी पंडितों को नहीं है जीने का हक?
कश्मीर में पिछले साल अक्टूबर से टारगेटेड किलिंग की एक सिरीज देखी जा रही है. पीड़ितों में से कई प्रवासी श्रमिक या कश्मीरी पंडित हैं. पिछले साल अक्टूबर में, पांच दिनों में सात नागरिक मारे गए थे जिनमें एक कश्मीरी पंडित, एक सिख और दो प्रवासी हिंदू शामिल थे.
लगातार हो रही हत्याओं से घाटी में अल्पसंख्यक हिंदू आबादी डर के साये में हैं. कश्मीरी पंडित विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उनके मन में बस एक सवाल है कि क्या सिर्फ उन्हें आतंकियों के हवाले छोड़ने के लिए घाटी में फिर से बसाया जा रहा है. क्या उनकी नियति में मौत ही लिखी गई है. क्या उन्हें अपनी जिंदगी जीने का हक नहीं है.
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घाटी में फिर शुरू टारगेटेड किलिंग का दौर, निशाने पर हिंदू आबादी, कहां से मिल रहा आतंकियों को हथियार?