पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों का किसान एक बार फिर दिल्ली का घेराव करने के लिए सड़कों पर उतर गया है. दिल्ली चलो के तहत हजारों की संख्या में किसान राजधानी की ओर बढ़ रहे हैं. हालांकि पुलिस उन्हें पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर रोकने की कोशिश कर रही है. लेकिन अन्नदाता पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. अब सवाल ये है कि किसान बार-बार आंदोलन क्यों कर रहे हैं? क्या उनकी मांगें हैं और इस बार कौन इसका नेतृत्व कर रहा है?
इस बार किसान अपने साथ ट्रैक्टर-टॉली में राशन का पूरा सामान साथ लेकर आ रहे हैं. उनका प्लान लंबे समय तक दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर धरना देने का है. 2020-21 के दौरान किसान लंबे प्लान के साथ आंदोलन करने नहीं आए थे. लेकिन जब सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो वह लंबा चल गया था. हालांकि, इस बार पिछले कुछ किसान संगठन इस आंदोलन को समर्थन नहीं कर रहे हैं.
पहले और अब के आंदोलन में क्या अंतर?
पिछली बार किसानों की 32 यूनियन संयुक्त किसान मोर्चा यानी SKM ने आंदोलन शुरू किया था. लेकिन अब टूटकर एसकेएम (पंजाब), एसकेएम (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (KMM) बन चुका है. इसके अलावा एसकेएम में शामिल रहीं 22 यूनियन ने भी अलग संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) बना लिया है. इसका गठन आंदोलन खत्म होने के बाद 25 दिसंबर 2021 को हुआ था. SSM का उद्दशेय पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ना था.
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— DNA Hindi (@DnaHindi) February 13, 2024
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इस बार उस संयुक्त संगठन का एक गुट विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है
इस बार 250 से ज्यादा किसान यूनियन केएमएम के बैनर के तले आंदोलन करने सड़कों पर उतरे हैं. केएमएम का नेतृत्व सरवन सिंह पंधेर कर रहे हैं. इसमें एसकेएम (गैर राजनीतिक) के 150 यूनियन भी शामिल हैं. जिसने 2020-21 में कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन की अगुवाई की थी. इस बार किसानों की मांगे भी ज्यादा हैं. पिछले बार तीन कृषि कानूनों को लेकर अन्नदाता सड़कों पर बैठे थे.
इस बार क्या हैं किसानों की मांगें?
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर गारंटी कानून बनाया जाए.
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें मानी जाएं.
- किसानों और खेत में काम करने वाले मजदूरों का कर्ज माफ हो.
- 60 साल से ज्यादा उम्र के किसानों को 10 हजार रुपये महीने की पेंशन दी जाए.
- अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड के पीड़ितों को न्याय मिले.
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 एक बार फिर से लागू किया जाए.
- दिल्ली में विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के लिए मुआवजा और उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए.
- भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) से बाहर निकाला जाए. सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाई जाए.
- संविधान की 5वीं अनुसूची को लागू किया जाए जिससे आदिवासियों की जमीन का संरक्षण हो सके.
- मनरेगा के तहत प्रति वर्ष 100 के बजाय 200 दिनों का रोजगार दिया जाए. 700 रुपये की दैनिक मजदूरी और योजना को खेती से जोड़ा जाना चाहिए.
- बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए.
- नकली बीज, कीटनाशक और खाद बनाने वाली कंपनियों को लेकर कड़े कानून बनाए जाएं.
- मिर्च और हल्दी जैसे मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन हो.
किसान मजदूर समिति के महासचिव सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि सरकार एक समिति बनाना चाहती है, लेकिन हम अपनी मांगों के संबंध में एक नई समिति नहीं चाहते, किसी भी समिति का मतलब होगा मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना. उन्होंने दावा किया कि हरियाणा, यूपी समेत अन्य राज्यों के किसानों से उन्हें अपार समर्थन मिल रहा है.
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