डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने कमर कस ली है. मध्यप्रदेश के जबलपुर पहुंची कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है. इसके साथ प्रियंका ने इशारों-इशारों में ही बता दिया कि कांग्रेस की ओर से सीएम पद के उम्मीदवार मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ही होंगे. लेकिन ये बात लगता है पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को कुछ रास नहीं आ रही है. ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या दिग्विजय सिंह पार्टी के लिए कमलनाथ के साथ मिलकर चुनाव में हिस्सा लेंगे या फिर उनके भी बागी सुर देखने को मिलेंगे.

विधानसभा चुनाव 2018 की बात करें तो दिग्विजय सिंह चुनाव ने दो महीने पहले ही पार्टी के लिए प्रचार करना बंद कर दिया था. उन्होंने यहां तक कहा था कि उनके वोट से कांग्रेस को वोटों की कीमत चुकानी पड़ेगी. दिग्विजय सिंह के इस बयान के बाद सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि देश की सबसे पुरानी पार्टी ने चुनाव से पहले ही हथियार डाल दिए है. हालाकिं इस सब के बाद भी कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बना ली थी. 

 कमलनाथ ने कहा- एमपी में 2018 पहले नहीं जानता था कोई 

कमलनाथ एमपी के सीएम जरूर बने थे, लेकिन राज्य में उनकी लोकप्रियता दिग्विजय सिंह और पूर्व कांग्रेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले आज भी कमजोर नजर आती है. खुद कमलनाथ ने हाल में ही हुए अपने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि मध्य प्रदेश में ज्यादातर लोग उन्हें 1 मई, 2018 से पहले नहीं जानते थे. जब वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए. उसके बाद ही लोग उन्हें पहचान पाए. इसके साथ उन्होंने कहा कि लेकिन अब स्थिति बदल गई है.

'कमलनाथ को जनता नहीं पहचानती' इस बात का बीजेपी ने खूब फायदा उठाया है. बीजेपी की ओर से कटाक्ष करते हुए लगातार कहा गया है कि राज्य में कमलनाथ को पहले कोई इसलिए नहीं जानता था क्योंकि उन्होंने उनके लिए कुछ नहीं किया था.

देखा जाए तो कमलनाथ 2018 से पहले मध्य प्रदेश में लगभग चार दशक बिता चुके हैं. वह लोकसभा सीट छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद रह चुके हैं. इसके बाद जाकर कांग्रेस पार्टी ने 2018 के चुनाव में जीत मिलने पर मुख्यमंत्री पद दिया था. हालांकि कमलनाथ सिर्फ 15 महीनों तक के लिए ही सत्ता चला सके थे.  

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कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के गांधी परिवार से है बढ़िया संबंध 

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ही एक उम्र के हैं, दोनों ही अपनी स्पष्ट बयानों को लेकर जाने जाते हैं. यह दोनों ही राज्य के अन्य नेताओं पर भारी पड़ते हैं. साथ ही साथ गांधी परिवार के साथ दोनों नेताओं के मधुर रिश्ते हैं. 

यूपी के लाल हैं कमलनाथ 

18 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ की स्कूली पढ़ाई मशहूर दून स्कूल से हुई. दून स्कूल में उनकी दोस्ती संजय गांधी से हुई. अगर कमलनाथ की राजनीतिक सफर की बात करें तो 1980 में वह पहली बार सांसद चुने गए थे. वहीं, अब वह एमपी विधानसभा के सदस्य हैं. उन्हें अपने पद पर बने रहने के लिए 2019 में विधानसभा उपचुनाव लड़ना पड़ा, क्योंकि जब वे मुख्यमंत्री बने तब वे विधायक नहीं थे. छिंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ हुआ था.

कमलनाथ का रिश्ता गांधी परिवार से जोड़कर देखा जाए तो वह इस परिवार के हमेशा ही करीबी रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की पूर्व पीएम रहीं इंदिरा गांधी उन्हें अपना तीसरा बेटा मानती थीं. एक बार इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से लड़ रहे कमलनाथ के लिए चुनाव प्रचार करने आई थीं. इंदिरा ने तब चुनावी रैली में लोगों से कहा था कि कमलनाथ मेरे लिए तीसरे बेटे जैसे हैं. कृपया उन्हें वोट दीजिए.

दिग्विजय सिंह ने ऐसे शुरु किया था अपना राजनैतिक सफर 

बात की जाए दिग्विजय सिंह की तो उनका जन्म 28 फरवरी 1947 को राघोगढ़ में सामंती परिवार में हुआ था. सबसे पहले वह राघोगढ़ में नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष बने और फिर 1970 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली. 1977 में दिग्विजय सिंह ने पहली बार विधानसभा चुनाव में लड़ा और जीत भी गए. गुना जिले में राघोगढ़ से विधायक चुने गए. वह 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार बनाए गए थे. इस चुनाव में वह अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से हार गए थे. 

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हिन्दू धर्म को लेकर हैं दोनों के अलग मत 

अगर हिन्दू धर्म को लेकर दोनों नेताओं के बयान देखें तो काफी असमानता है. जहां कमलनाथ अपने को हनुमान भक्त बताते हैं तो वहीं दिग्विजय सिंह नियमित रूप से पंढरपुर और तिरुपति मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं. लेकिन वह आरएसएस और बीजेपी के द्वारा चलाए जा रहे 'हिंदुत्व' के प्रखर विरोधी भी हैं. दिग्विजय सिंह द्व्रारा हिंदुत्व को लेकर दिए गए बयानों ने कई बार कांग्रेस को मुश्किल में भी डाला है. उन्होंने भगवा आतंकवाद, पुलवामा हमले और बाटला हाउस मुठभेड़ पर टिप्पणी की थी, बाद में कांग्रेस को उनके इस बयान से किनारा करना पड़ा था. वहीं, कमलनाथ सार्वजनिक रूप से अपने आप को हिन्दू धर्म का पालन करने वाला दिखाते हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह दोनों नेता विधानसभा चुनाव में साथ आएंगे या नहीं. कांग्रेस आलाकमान अपने इन दो नेताओं को किस तरह एक साथ रख पाएगी, ये देखना भी दिलचस्प रहेगा. 

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Digvijay Singh and Kamal Nath together will not be seen in 2023 Madhya Pradesh assembly elections
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कांग्रेस के 'दो हाथ' दिग्विजय और कमलनाथ, क्या MP चुनाव में नहीं खड़े दिखेंगे साथ
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कांग्रेस के 'दो हाथ' दिग्विजय और कमलनाथ, क्या मध्यप्रदेश चुनाव में नहीं खड़े दिखेंगे साथ?