डीएनए हिंदी: केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System) को लेकर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि न्यायिक प्रक्रिया की इस व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है. कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. राजस्थान के उदयपुर में यूनियन ऑफ इंडिया वेस्ट जोन एडवोकेट की कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कोई सिस्टम अगर ठीक से नहीं चल रहा है, तो उसमें क्या बदलाव होना चाहिए, इसकी चिंता करना हम सभी का कर्तव्य है.
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, 'कॉलेजियम प्रणाली के बारे में सोचने की जरूरत है जिससे हाई ज्यूडिशियल सिस्टम में होने वाली नियुक्तियों में तेजी लाई जा सके. मौजूदा व्यवस्था परेशानी पैदा कर रही है. इसे क्या और कैसे करना है, इसके बारे में आगे चर्चा की जाएगी.'
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कॉलेजियम प्रणाली पर फिर शुरू नई बहस
किरेन रिजिजू के बयान के बाद एक बार फिर देश में कॉलेजियम प्रणाली पर नई बहस शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर चली आ रही लंबी बहस एक बार फिर से छिड़ गई है. केंद्र सरकार ने एक ऐसा कानून लाने की कोशिश की थी जिसके जरिए जजों की नियुक्ति में केंद्र की भूमिका भी हो.
सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. साल 2019 में, कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने तथाकथित 'सेकेंड जजेज केस' में अपने 1993 के फैसले की समीक्षा के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया था. कॉलेजियम सिस्टम की स्थापना में इस कानून की एक अहम भूमिका भी थी.
जजों की नियुक्ति कैसे होती है, कॉलेजियम प्रणाली कैसे बनी और इसकी आलोचना क्यों की गई है? आइए समझते हैं.
जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली क्या है?
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर इसी प्रक्रिया के तहत होता है. कॉलेजियम प्रणाली संविधान या संसद की ओर से लाई गई किसी विशेष कानून में वर्णित नहीं है. यह सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की वजह से ही अस्तित्व में है. यह पूरी तरह से ज्यूडिशियल प्रेसिडेंट की वजह से लागू है.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम एक पांच सदस्यों की बॉडी है, जिसका नेतृत्व भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश (CJI) करते हैं और उस समय शीर्ष अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं. एक हाई कोर्ट के कॉलेजियम का नेतृत्व वर्तमान चीफ जस्टिस और उस अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम जस्टिस करते हैं. कॉलेजियम की संरचना बदलती रहती है. कोई भी व्यक्ति तभी तक कॉलेजियम का मेंबर रह सकता है जब तक कि वह अपने पद से रिटायर नहीं हो जाता है.
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हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति केवल कॉलेजियम प्रणाली के जरिए होती है. सरकार की भूमिका तब होती है जब कॉलेजियम द्वारा नाम तय किए जाते हैं. हाई कोर्ट के कॉलेजियम की ओर से नियुक्ति के लिए अनुशंसित नाम चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बाद ही सरकार तक पहुंचते हैं.
अगर किसी वकील को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर प्रमोट किया जाता है तोइस पूरी प्रक्रिया में सरकार की भूमिका इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) द्वारा जांच कराने तक सीमित है. सरकार आपत्तियां भी उठा सकती है और कॉलेजियम की पसंद के बारे में स्पष्टीकरण मांग सकती है. अगर कॉलेजियम उन्हीं नामों को दोहराता है तो सरकार संविधान पीठ के फैसलों के तहत उन्हें जजों के रूप में नियुक्त करने के लिए बाध्य है.
कभी-कभी सरकार नियुक्तियों में देरी करती है, खासकर उन मामलों में जहां सरकार को कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए अनुशंसित एक या एक से अधिक न्यायाधीशों से नाराज माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कभी-कभी इस तरह की देरी पर नाराजगी भी जाहिर की है.
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति पर क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति से संबंधित है. नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं. यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के साथ परामर्श करने के बाद की जाती है. संविधान इन नियुक्तियों के लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है.
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को संविधान के अनुच्छेद 124 के खंड 2 के तहत नियुक्त किया जाता है.राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों के परामर्श से चीफ जस्टिस की नियुक्ति करता है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ अनिवार्य परामर्श के बाद की जाती है.
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अनुच्छेद 217 के मुताबिक, 'उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश, राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाएगी. मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किया जाता है.'
कैसे अस्तित्व में आया कॉलेजियम सिस्टम?
कॉलेजियम प्रणाली जजों की नियुक्ति से संबंधित कुछ मामलों की सुनवाई के बाद आया है. इन मामलों को'जज केसेज' के तौर पर जाना जाता है. कॉलेजियम संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों की व्याख्या के जरिए अस्तित्व में आया है.
कॉलेजियम प्रणाली की क्यों होती है आलोचना?
आलोचकों का कहना है कि कॉलेजियम सिस्टम पारदर्शी नहीं है. इसमें कोई आधिकारिक तंत्र या सचिवालय शामिल नहीं है. माना जाता है कि इसकी पूरी प्रक्रिया में एक क्लोज्ड डोर में होती है जिसके बारे में किसी को भनक नहीं लगती है. इसमें पात्रता और चयन प्रक्रिया के संबंध में कोई निर्धारित मानदंड नहीं है.
कॉलेजियम कैसे और कब नियुक्ति की प्रक्रिया तय करता है, कैसे अपने फैसले लेता है, इस बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है. कॉलेजियम कार्यवाही कब तक पूरी हो जाएगी इसके लिए भी कोई निर्धारित तारीख नहीं होती है. वकील भी आमतौर पर इस बात को लेकर अंधेरे में रहते हैं कि क्या उनके नाम पर जज के रूप में एलिवेट होने के लिए विचार किया गया है. यही वजह है कि सरकार नियुक्ति प्रक्रिया में दखल चाहती है, जिसे सुप्रीम कोर्ट खारिज करता रहा है.
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कॉलेजियम सिस्टम: कैसे होती है सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति, क्या है विवाद की वजह?