बीफ को लेकर एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में लंच में 'बीफ बिरयानी' परोसे जाने का नोटिस जारी किया गया. जिसमें लिखा था कि यूनिवर्सिटी की सुलेमान हॉल में चिकन बिरयानी की जगह बीफ बिरयानी परोसी जाएगी. यह नोटिस सोशल मीडिया पर वायरल होते ही हंगामा शुरू हो गया. हालांकि, विश्वविद्यालय ने सफाई दी कि टाइपिंग मिस्टेक की वजह से ऐसा हुआ है.

AMU प्रशासन ने स्पष्ट किया कि नोटिस खाने के मेन्यू के बारे में था. जिसमें चिकन बिरयानी की जगह गलती से बीफ बिरयानी लिख दिया गया. यूनिवर्सिटी में बीफ का कोई आइटम नहीं बनाया जाता है. मेन्यू के नोटिस में भी त्रुटि थी. नोटिस में किसी के आधिकारिक हस्ताक्षर नहीं थे. जिससे इसकी प्रामाणिकता पर भी संदेह पैदा होता है. उन्होंने कहा कि महौल खराब करने के लिए किसी की हरकत भी हो सकती है. नोटिस को वापस ले लिया गया है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब बीफ को लेकर अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में विवाद हुआ हो. इससे पहले 2016 में भी बीफ मीट परोसने का मामला सामने आया था. उस दौरान यूनिवर्सिटी की तरफ से कहा गया था कि बीफ नहीं, बल्कि बफ मीट परोसने की बात कही गई. लेकिन लोगों ने इसे गोमांस समझकर हंगामा शुरू कर दिया. क्योंकि अधिकांश लोगों को नहीं पता कि बीफ और बफ मीट में क्या अंतर होता है? 

बीफ और बफ में अंतर
दरअसल, बीफ मीट का मतलब गाय, बछड़ा, बैल और भैंस का मांस होता है. जबकि भैंस, पड्डा और भैंसा के मांस को बफ कहते हैं.  भैंस को इंग्लिश में बफेलो कहा जाता है. इसलिए शॉर्ट में इसके मांस को बफ मीट कहते हैं. रेड मीट भी कहा जाता है. वहीं, गोमांस की कैटेगरी की बात करें तो इसमें गाय और बछड़े के मांस को कहा जाता है. देश के आधे से ज्यादा राज्यों में गोमांस पर पाबंदी हैं. 

बीफ एक्सपोर्ट करने वाला दुनिया का चौथा देश
भारत में बीफ मीट खाने पर भले ही पांबदी हो, लेकिन एक्सपोर्ट करने के मामले में वह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है. 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत से 3,480 मिलियन डॉलर का गोमांस हर साल निर्यात किया जाता है. 2025 में यह आंकड़ा और बढ़ा है. मांस एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी होने की वजह से देश में गायों की संख्या में भी कमी आई है. 2012 पशुओं की गणना के अनुसार, साल 2012 में गोवंश की संख्या घटकर 37.28 प्रतिशत रह गई, जबकि 1951 में सबसे अधिक 53.04 फीसदी थी.

भारत में लगभग 3600 से 4000 के बीच बूचड़खाने हैं. जिन्हें नगरपालिकाओं द्वारा चलाया जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इनमें 42 बूचड़खाने  'आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन' के हैं. इसके अलावा अजय सूद की अल नूर एक्सपोर्ट, अतुल सभरवाल की अल कबीर एक्सपोर्ट, महेश जगदाले एंड कंपनी बीफ एक्सपोर्ट के हैं. जिस उत्तर प्रदेश में गौहत्या को लेकर सबसे ज्यादा विवाद होता है, वहां 317 बूचड़खाने पंजीकृत हैं.

भारत में गोमांस खाने पर प्रतिबंध पांचवीं सदी से शुरू हुआ था. उस दौर में छोटे-छोटे राज्य बनने लगे और भूमि पर खेती करने के लिए जावनरों का महत्व बढ़ने लगा. खासकर गाय को महत्व. धर्म शास्त्रों में जिक्र होने लगा है कि गाय को मारना नहीं चाहिए. धीरे-धीरे गोहत्या एक विचारधारा बन गई. ब्राह्मणों की विचारधारा. ब्राह्मणों के धर्मशास्त्र में लिखे जाने लगा कि जो गोमांस खाएगा वह दलित होगा. मतलब अछूत.

19वीं शताब्दी आते-आते यह एक अभियान में बदल गया और स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसके लिए कैंपने चलाया. कहा जाने लगा कि जो बीफ यानी गाय खाएगा वह मुसलमान है. गोहत्या पर कानून बनाने की मांग उठने लगी. भारत में अलग-अलग राज्यों में गोहत्या रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं. हरियाणा में गोहत्या को लेकर सबसे सख्त कानून है. यहां 10 साल तक की सजा और 1 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है. वहीं इस तरह की सख्त सजा असम, उत्तराखंड, यूपी, राजस्थान, बिहार, झारखंड, ओडिशा और गोवा समेत अन्य राज्यों में भी है.

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बीफ और बफ में क्या है अंतर, भारत में गोहत्या पर कब से बना सजा का प्रावधान?
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