डीएनए हिंदी: Madhya Pradesh News- मुगल बादशाहों ने भले ही सैकड़ों साल तक भारत पर हुकूमत की हो, लेकिन उन्हें दहलाने वाले राजा भी इतिहास में कई हुए हैं. ऐसे राजाओं की फेहरिस्त में छत्रपति शिवाजी से महाराणा प्रताप तक, दर्जनों नाम शामिल हैं, लेकिन एक नाम इस लिस्ट में सबसे खास है. यह नाम किसी राजा का नहीं बल्कि एक रानी का है, जिसका नाम सुनकर ही इतिहास में महान बताए गए मुगल बादशाह अकबर की सेना 450 साल पहले खौफ खा जाती थी. यह थीं मध्य प्रदेश के गोंडवाना इलाके की रानी दुर्गावती, जिन्हें 16वीं सदी के सबसे वीर भारतीय शासकों में से एक माना जाता है और अकबर को चुनौती देने वालों में महाराणा प्रताप के समकक्ष रखा जाता है. आज यानी शनिवार 1 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मध्य प्रदेश दौरे पर रानी दुर्गावती की वीरता और बलिदान का सम्मान करने जा रहे हैं. इससे पहले आइए हम आपको बताते हैं इस महान रानी के बारे में सबकुछ.
तलवार से करती थीं आदमखोर शेर का शिकार
रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजपूत परिवार में 24 जून, 1524 को हुआ था. वे तत्कालीन कलिंजर के चंदेल राजा कीर्ति सिंह की बेटी थी. यह स्थान आजकल उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में आता है. दुर्गा अष्टमी को जन्म लेने के कारण दुर्गावती कहलाईं और उनके व्यक्तित्व में भी वैसा ही तेज था. रानी दुर्गावती बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरंदाजी की शौकीन थीं. इसके अलावा उन्हें शेर के शिकार का भी शौक था. हालांकि वे सिर्फ उस शेर को मारती थी, जो इंसानी बस्तियों में घुसकर उत्पात मचाता था. कहा जाता है कि वे इतनी बहादुर थीं कि शेर को तलवार से मार गिराती थीं.
पति के निधन पर संभाला शासन
दुर्गावती की शादी गोंडवाना राजा दलपत शाह से हुई थी, जो गोंड इलाके के गढ़मंडला के राजा थे, जिसकी राजधानी जबलपुर थी. विवाह के महज 7 साल बाद दलपतशाह का निधन होने पर दुर्गावती ने शासन की बागडोर खुद संभाली. उस समय उनका बेटा नारायण महज 5 साल का था. शासन संभालने के बाद रानी की ख्याति प्रजापालक शासक के तौर पर रही. हालांकि मुगलों के साथ दुश्मनी ने उनका शासन महज 16 साल ही चलने दिया.
अकबर रखना चाहता था सोने के पिंजरे में
रानी दुर्गावती से मात खाकर मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने बदला लेने के लिए उनके खिलाफ मुगल बादशाह अकबर को भड़काया. ख्वाजा ने रानी दुर्गावती को अपार सुंदरी बताकर अकबर के सामने तारीफ की. इस पर अकबर की तरफ से रानी दुर्गावती के पास सोने का पिंजरा भेजा गया, जिसके साथ संदेश भेजा गया कि रानियों को महल के अंदर ही सीमित रहना चाहिए. बताते हैं कि इसका दुर्गावती ने करारा जवाब दिया. इस पर अकबर ने आसिफ खां को गोंडवाना पर हमले के लिए भेज दिया.
रानी की बहादुरी के सामने बिखरी मुगल सेना
रानी दुर्गावती ने घोड़े पर अपने बेटे नारायण को साथ लेकर मुगल सेना पर हमला किया. इस हमले में रानी की सेना के पराक्रम को देखकर मुगल सेना भाग खड़ी हुई. आसिफ खां घबरा गया और सुलह का प्रस्ताव भेजा. रानी के प्रस्ताव ठुकराने पर अकबर ने इसे अपमान माना और दोबारा हमले का आदेश दिया. इस बार और ज्यादा बड़ी फौज भेजी गई. इस बार भी आसिफ खां को रानी के हाथों मुंह की खानी पड़ी. मुगल सेना में रानी दुर्गावती के नाम का खौफ फैल गया.
बेटे की वीरगति से टूटी थीं रानी
मुगलों के तीसरे हमले में रानी दुर्गावती का बेटा नारायण वीरगति को प्राप्त हो गया. इससे रानी टूट गईं और उन्होंने मुगलों के साथ आरपार की लड़ाई का ऐलान कर दिया. इसके बाद 24 जून, 1564 को अपने जन्म दिन के दिन रानी दुर्गावती ने महज 300 सैनिकों के साथ मुगल सेना पर गोरिल्ला अटैक कर दिया. इस हमले में मुगल सेना बिखर गईं. सैकड़ों मुगल सैनिक मारे गए, लेकिन रानी की आंख में तीर लगने से पासा पलट गया. रानी गंभीर रूप से घायल होकर मुगल सेना से घिर गईं. इस पर उन्होंने गिरफ्तार होने के बजाय अपनी ही कटार छाती में घोंपकर बलिदान दे दिया.
अकबर ने भी की थी रानी की तारीफ
रानी दुर्गावती की तारीफ अकबर की जीवनी अकबरनामा में भी की गई है. अकबरनामा में भी रानी दुर्गावती को बेहद साहसी और तीर-बंदूक चलाने की माहिर बताया गया है. साथ ही उन्हें कुशल प्रशासक बताया गया है. आज भी जबलपुर की पासमंडला रोड पर बनीं रानी दुर्गावती की समाधि पर लोग उन्हें याद करने आते हैं.
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Rani Durgawati कौन थीं, जिनके नाम से छूट जाता था मुगल बादशाह अकबर की सेना का पसीना