डीएनए हिंदी: Andhra Pradesh Waqf board Controversy- अहमदिया मुस्लिम समुदाय एक बार फिर चर्चा में है. आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक बार फिर अहमदिया समुदाय को 'काफिर' और 'गैर मुस्लिम' घोषित कर दिया है, जिसका केंद्र सरकार ने विरोध किया है. केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने इसे लेकर आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र भी लिख दिया है, जिसमें उनके राज्य के वक्फ बोर्ड की नफरत भरी मुहिम का प्रभाव पूरे देश में पढ़ने का डर जताते हुए कार्रवाई को कहा है. केंद्र के विरोध जताने पर जमीयत उलमा-ए-हिंद (jamiat ulema e hind) वक्फ बोर्ड के समर्थन में खड़ा हो गया है. बता दें कि केंद्र की भाजपा सरकार जहां अहमदिया समुदाय को मुस्लिम संप्रदाय का ही एक हिस्सा मानती है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अहमदिया मुस्लिमों की बदतर हालत को लेकर पाकिस्तान पर निशाना साधते रहते हैं. ऐसे में देश में ही अहमदिया मुस्लिमों की स्थिति पर विवाद से यह सवाल फिर तेज हो गया है कि अहमदिया समुदाय इस्लाम का हिस्सा हैं या नहीं?
पहले जान लेते हैं कौन हैं अहमदिया
अहमदिया समुदाय के लोग खुद को मुस्लिम समुदाय का ही हिस्सा मानते हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय उनकी मान्यताएं अलग होने का दावा करते हुए उन्हें गैर मुस्लिम कहता है. दरअसल अहमदिया समुदाय के लोग मिर्जा गुलाम अहमद के अनुयायी हैं, जिनकी पैदाइश पंजाब के कादियान कस्बे में हुई थी. अहमदिया समुदाय के अनुसार मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने बीसवीं सदी की शुरुआत में इस्लाम के पुनरुत्थान का एक आंदोलन चलाया था, जिससे मुस्लिम कट्टरपंथी नाराज हो गए थे. इसलिए उनके अनुयायियों के गैर मुस्लिम होने का प्रोपेगैंडा चलाया जाता है. हालांकि BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदिया समुदाय को इस्लाम धर्म का प्रवर्तक देश सऊदी अरब भी मुस्लिम नहीं मानता है. उनके हज के लिए सऊदी अरब आने पर रोक है. यदि वे चोरी-छिपे हज करने के लिए मक्का पहुंच भी जाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है. इसके बाद उन्हें सजा दी जाती है या डिपोर्ट कर दिया जाता है. पाकिस्तान में भी अहमदिया समुदाय को सरकार ने गैर मुस्लिम घोषित कर रखा है. अहमदिया समुदाय के लोग भारत और पाकिस्तान में ही पाए जाते हैं.
इस्लाम के अंदर कितने अलग-अलग समुदाय हैं
BBC हिंदी के मुताबिक, पैगंबर को मानने की अपनी-अपनी रवायतों और परंपराओं के आधार पर इस्लाम भी कई हिस्सों में बंटा हुआ है. इस्लाम में मुख्य तौर पर दो धाराओं शिया और सुन्नी हैं. दुनिया में 80 फीसदी मुस्लिम सुन्नी हैं, जबकि 20 फीसदी शिया हैं. शिया के अंदर मुस्लिम इस्ना अशअरी, इस्माइली (फातमी, बोहरा, खोजे, नुसैरी) और जैदी समुदाय हैं. सुन्नियों में हनफी (देवबंदी और बरेलवी), मालिकी, शाफई, हंबली, अहलेहदीस, सलफी और वहाबी हैं. अहमदिया भी खुद को सुन्नी मुस्लिम मानते हैं, लेकिन सुन्नी धार्मिक गुरू उन्हें अपना मानने को तैयार नहीं हैं.
क्यों अहमदिया समुदाय को मुस्लिम नहीं मानते सुन्नी धर्म गुरू
भारतीय सुन्नी मुस्लिमों के बड़े संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद के ताजा बयान से ही अहमदिया समुदाय को मुस्लिम नहीं मानने का कारण पता लग जाता है. बयान में कहा गया कि इस्लाम धर्म दो बुनियादी विश्वासों पर टिका हैः तौहीद, अल्लाह एक है और दूसरा, पैगंबर मोहम्मद, अल्लाह के अंतिम संदेश वाहक हैं. ये दोनों धारणाएं इस्लाम के पांच बुनियादी आधार स्तम्भों की अनिवार्य घटक हैं. इसके उलट मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी ने पैगंबर के आखिरी नबी (अल्लाह का दूत) होने को चुनौती दी. इस आधार पर इस्लाम से जुड़ी सभी पंथ इस बात से सहमत हैं कि अहमदिया गैर मुस्लिम हैं. जमीयत ने 1974 में हुई वर्ल्ड मुस्लिम लीग की मीटिंग का भी जिक्र किया है, जिसमें 110 देशों के मुस्लिम प्रतिनिधियों ने अहमदिया समुदाय को इस्लाम से खारिज किया था.
हालांकि अहमदिया समुदाय इसे अपने खिलाफ झूठा प्रोपेगैंडा बताता है. उसका कहना है कि ये आरोप गलत हैं कि अहमदी पैगंबर को नहीं मानते और उनका कलमा अलग है. ये मनगढ़ंत और झूठी बातें हैं.
भारत में हैं करीब 1 लाख अहमदिया मुस्लिम
साल 2011 की जनगणना में अहमदिया समुदाय को भारत में इस्लाम के एक फिरके के तौर पर ही गिना गया था. उस समय भारत में इनकी संख्या तकरीबन 1 लाख आंकी गई थी. इनमें से ज्यादातर पंजाब के कादियान कस्बे में ही रहते हैं, लेकिन अहमदिया मुस्लिम पंजाब के अलावा दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और बिहार में भी मौजूद हैं और यहां भी उनकी मस्जिदें व संपत्तियां हैं.
अब लीजिए मौजूदा विवाद की पूरी जानकारी
- आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित किया है. इस प्रस्ताव को वक्फ बोर्ड ने फरवरी, 2012 के फतवे के आधार पर पारित किया है. इस प्रस्ताव में वक्फ बोर्ड ने अहमदिया समुदाय को फिर से 'गैर मुस्लिम' और 'काफिर' घोषित किया है. साथ ही आंध्र सरकार से कहा है कि अहमदिया समुदाय की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति से अलग किया जा रहा है. इसके राज्य सरकार सीधे अपने प्रबंधन में ले ले.
- वक्फ बोर्ड के इस प्रस्ताव के खिलाफ अहमदिया समुदाय ने 20 जुलाई को केंद्र सरकार को पत्र लिखा है. इस पत्र में वक्फ बोर्ड के फैसले को अवैध बताते हुए हस्तक्षेप की मांग की गई है. इसके बाद केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है. इस पत्र में वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव की आलोचना की गई है. मंत्रालय ने कहा है कि वक्फ बोर्ड को किसी की धार्मिक पहचान तय करने का अधिकार नहीं है. उसका काम केवल वक्फ की संपत्ति का प्रबंधन व सुरक्षा करना है. मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को बोर्ड के प्रस्ताव की समीक्षा करने का निर्देश दिया है, क्योंकि अहमदिया समुदाय के खिलाफ नफरत की इस मुहिम की चिंगारी अन्य राज्यों में भी आग भड़का सकती है.
- मंत्रालय के पत्र के बाद जमीयत ने वक्फ बोर्ड का समर्थन किया है. जमीयत ने मंगलवार को एक बयान दिया है, जिसमें कहा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का अलग नजरिए पर अड़े रहना अनुचित और अतार्किक है. वक्फ एक्ट के हिसाब से बोर्ड का काम मुस्लिम हित की रक्षा करना है. ऐसे में मुस्लिम के तौर पर मान्यता नहीं पाने वाले समुदाय की संपत्ति और धार्मिक जगहों की देखरेख वक्फ बोर्ड का काम नहीं है. जमीयत ने कहा, इस्लाम से जुड़े सभी पंथ इस बात से सहमत हैं कि ये ग्रुप (अहमदिया) गैर मुस्लिम हैं.
वक्फ बोर्ड ने जिस फतवे का जिक्र किया, उसे हाई कोर्ट कर चुका खारिज
आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने साल 2012 के जिस फतवे का जिक्र करते हुए अपना प्रस्ताव पारित किया है, उसे हाई कोर्ट खारिज कर चुका है. उस फतवे में राज्य के काजियों को अहमदिया समुदाय के लोगों के निकाह नहीं पढ़वाने के लिए कहा गया था, क्योंकि वे मुस्लिम नहीं है. अहमदिया समुदाय इसके खिलाफ हाई कोर्ट चला गया था.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
कौन हैं अहमदिया मुस्लिम, जिन्हें लेकर मोदी सरकार और वक्फ के बीच छिड़ा विवाद