डीएनए हिन्दी : NEFA या North-East Frontier Agency अंग्रेज़ों के शासनकाल के वक़्त किया हुआ एक राजनैतिक विभाजन था जो लगभग 1972 ई. तक बरक़रार रहा. उस साल इसका कुछ हिस्सा अरुणाचल प्रदेश के अंतर्गत केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित हो गया तो कुछ असम में आ गया.
भारत और चीन के बीच का विवाद
चीन और भारत के बीच लगभग 3500 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा है. दोनों देशों के बीच के इस विभाजन को मैकमोहन लाइन कहा जाता है. चीन इस मैकमोहन लाइन को मानने से इंकार करता है. वह इसे दक्षिणी तिब्बत का नाम देता है. 1959 में तिब्बत विद्रोह के बाद से चीन ने NEFA के अरुणाचल प्रदेश वाले इलाके पर अधिकार जमाने की कोशिश की है. यही वजह है कि भारत और चीन के बीच लगातार सीमाओं पर विवाद बना रहा है. अरुणाचल प्रदेश के इस हिस्से के अतिरिक्त लद्दाख के अक्साई चीन वाले हिस्से पर भी भारत और चीन के बीच विवाद है. 1950 के आख़िरी दशक में चीन ने लगभग 31000 स्क्वायर किलोमीटर पर तिब्बत के बहाने क़ब्ज़ा कर लिया था. बाद के दिनों में चीन ने उस पर अपनी एक नेशनल हाई वे भी तैयार कर ली है. यह नेशनल हाई वे चीन के शिनजियांग से जुड़ती है.
क्या कहता है दुनिया का मानचित्र
दुनिया के मानचित्र के अनुसार 1935 के बाद से अरुणाचल प्रदेश स्थायी रूप से भारतीय भूभाग का हिस्सा है. दरअसल अगर अरुणाचल प्रदेश के धार्मिक भौगोलिक इतिहास को खंगाला जाए तो यह बौद्ध धर्म के प्रश्रय स्थलों में से एक है. अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाक़े के बौद्ध मंदिर को प्रमुख बौद्ध तीर्थ में से एक है.
आधुनिक अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के बीच में कोई स्थायी रेखा खिंची हुई नहीं थी. यह प्रदेश ना मुग़लों द्वारा जीता गया था ना ही अंग्रेज़ों के द्वारा. 1914 में ब्रिटिश सरकार ने तिब्बत और भारत के बीच के हिस्सों को बांटा जिसे तत्कालीन आज़ाद तिब्बत ने भी मान लिया. तवांग और उसके आस-पास के इलाक़े इसमें शामिल थे. बाद में जब चीन ने तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लिया, तवांग को भारत से अलग करने की कोशिश में लगा रहा. इसकी एक प्रमुख वजह तवांग बौद्ध मंदिर का तिब्बती बौद्धों के लिए प्रमुख तीर्थस्थल होना भी है.
चूंकि दुनिया की नज़र में अरुणाचल (Arunachal Pradesh) अधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा है. इस इलाक़े में 1962 में भारत से जीतकर भी चीन पीछे हट गया था. इस वक़्त तवांग भारत के पूर्ण अधिकार में है.
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