Uttar Pradesh By Election Result 2024: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव (Uttar Pradesh Vidhan Sabha Upchunav 2024) का परिणाम सामने आ गया है. लोकसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद इसे पार्टी के लिए साख का सवाल माना जा रहा था. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सामने भी यह चुनौती थी कि वे लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में मिली जोरदार जीत कोई तुक्का नहीं होने की बात साबित करें. ऐसे में दोनों ही पक्षों ने चुनाव प्रचार के दौरान पूरा दमखम झोंक रखा था. भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपचुनावों को अपने लिए जीवन-मरण का प्रश्न बना रखा था, लेकिन सबकी निगाहें इस बात पर थी कि अखिलेश यादव लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी अपना PDA (पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक) Formula का जादू चला पाएंगे या नहीं? अब रिजल्ट सामने आने के बाद इस फाइट में योगी आदित्यनाथ भारी दिखाई दिए हैं. यूपी की 9 सीटों में से 7 पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने जीत हासिल की है, जबकि सपा के खाते में दो सीट ही आई हैं. ऐसे में ये सवाल उठने लगे हैं कि वे कौन से फैक्टर रहे हैं, जिनके चलते अखिलेश के PDA का रंग इन चुनावों में फीका पड़ गया है. सबसे ज्यादा चर्चा उन दलों की हो रही है, जो अपने लिए जीत तो हासिल नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने सपा के वोट काटकर भाजपा की B-टीम की भूमिका निभा दी है.
आइए 5 पॉइंट्स में भाजपा की जीत और सपा की हार को समझने की कोशिश करते हैं-
1- भाजपा-सपा की फाइट में बी-टीम बन गए दूसरे दल
उपचुनावों में असली फाइट भाजपा और सपा के बीच मानी जा रही थी, लेकिन इसमें दूसरे कई दल भी हिस्सेदारी कर रहे थे. लगातार असफलताओं से हताश पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पहली बार BSP को उपचुनाव की पिच पर उतारने की घोषणा की थी. वहीं हैदराबाद के बाहर AIMIM का दायरा बढ़ाने की जुगत भिड़ा रहे असदुद्दीन ओवैसी ने भी इन उपचुनावों में उम्मीदवार उतार रखे थे. दलित मतदाताओं का नया मसीहा बनने की कोशिश कर रहे नगीना के सांसद चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) भी चुनावी होड़ में उतरी हुई थी. एकतरफ भाजपा ने जहां अपने मतदाताओं को 'बंटोगे तो कटोगे' का संदेश देकर अखिलेश यादव के PDA की धार को कम किया. वहीं बाकी दलों की मौजूदगी ने उस वोट बैंक में ही सेंध लगाई, जो अखिलेश यादव के फॉर्मूले का बेस था. इस तरह अनजाने में बसपा, AIMIM और अन्य दल सपा के खिलाफ BJP की बी-टीम बन गए, जिससे भाजपा को जीत मिल गई.
2- मीरापुर सीट से समझिए कैसे बी-टीम ने फेल किया PDA
अखिलेश यादव के PDA को कैसे भाजपा की बी-टीम बने दूसरे दलों ने झटका दिया, इसे मीरापुर सीट के उदाहरण से समझा जा सकता है. यह सीट भाजपा ने अपने सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल को दी थी. RLD ने यहां महिला प्रत्यासी मिथिलेश पाल को उतारा था, जिनके समर्थन में भाजपा नेता रात-दिन जुटे हुए थे. जवाब में सपा ने भी महिला प्रत्याशी सुम्बुल राणा को टिकट दिया था. मीरापुर सीट पर मुस्लिम और दलित वोटर्स की बड़ी संख्या हैं. साथ ही पिछड़े वर्ग की भी खासी संख्या में वोट हैं. ऐसे में यह सीट अखिलेश यादव के PDA फॉर्मूला के लिए आदर्श मानी जा रही थी, लेकिन इस फैक्टर को बसपा, AIMIM और आजाद समाज पार्टी की तरफ से चुने गए कैंडिडेट्स ने झटका दे दिया. मिथिलेश पाल ने यहां सुम्बुल राणा को 30796 वोट के अंतर से हराया है. बसपा प्रत्याशी शाहनजर को 3248 वोट मिले, जबकि AIMIM प्रत्याशी मोहम्मद अरशद ने 18869 वोट जुटाए. इसी तरह आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी जाहिद हसन 22661 वोट लेने में सफल रहे. इन तीनों को कुल करीब 45 हजार वोट मिले, जिसमें बड़ी हिस्सेदारी मुस्लिम और दलित वोटर्स की रही. यदि ये तीनों दल अपना उम्मीदवार नहीं उतारते तो ये वोट सपा के खाते में जाते और उसकी उम्मीदवार को जीत मिल सकती थी.
3- भाजपा का योगी को 'फ्री हैंड' देना भी आया काम
लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा की अंदरूनी जांच में सबसे बड़ा कारण कैंडिडेट्स चयन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सलाह की अनदेखी करने को माना गया था. इसके चलते विधानसभा उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ को ही पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई थी. योगी आदित्यनाथ ने एक-एक कैंडिडेट का चयन जीत-हार के फैक्टर पर तौलकर किया. इसका अंदाजा कटेहरी सीट पर बसपा के पूर्व दिग्गज धर्मराज निषाद को टिकट देने से लगाया जा सकता है. धर्मराज इस सीट से तीन बार विधायक रह चुके थे और बसपा सरकार में मंत्री भी रहे थे. इस सीट पर निषाद और कुर्मी वोट बराबर संख्या में हैं. ऐसे में योगी आदित्यनाथ ने धर्मराज निषाद को उतारकर निषाद समुदाय के वोट सुरक्षित किए और यहां के प्रभारी ऐसे मंत्री बनाए, जो कुर्मी वोटबैंक में सेंध लगा सकें. नतीजा ये रहा कि निषाद ने ये सीट करीब 34 हजार वोट से जीती है, जबकि उनके सामने सपा ने पिछले दो बार यहां से विधायक बने लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को उतारा था. लालजी वर्मा उसी अंबेडकरनगर जिले के इस समय सांसद हैं, जिसमें यह सीट आती है यानी उनका यहां खासा प्रभाव है. फिर भी योगी आदित्यनाथ की सटीक रणनीति से भाजपा यह सीट जीतने में सफल रही है.
4- भाजपा ने एक-एक सीट पर 3-3 मंत्रियों को दी जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद अपनी सरकार के मंत्रियों के पेंच बहुत अच्छी तरह कसे थे. उन सभी मंत्रियों को चेतावनी दे दी गई थी, जिनकी विधानसभा सीट पर भी पार्टी हार गई थी. विधानसभा उपचुनाव की घोषणा होते ही योगी ने हर सीट पर 3-3 मंत्रियों की तैनात करते हुए जीत-हार के लिए उन्हें जवाबदेह बना दिया था. इसके चलते इन सीटों पर मंत्री रात-दिन सक्रिय रहे. नतीजा ये रहा कि संगठन भी पूरी तरह मजबूती से जुटा रहा और कार्यकर्ता बूथ पर वोटर को लाने के लिए एक्टिव रहे. इसे भी जीत का बड़ा कारण माना जा रहा है.
5- 'बंटोगे तो कटोगे' ने भी तोड़ दिया अखिलेश का समीकरण
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी उपचुनाव में उसी फॉर्मूले पर भरोसा किया, जो वे हरियाणा विधानसभा चुनाव में आजमा चुके थे. योगी ने पहले दिन से 'बंटोगे तो कटोगे' के नारे से बेहद आक्रामक तरीके से हिंदू समुदाय को एकजुट करने की कवायद शुरू की. इस नारे के जरिये मुस्लिम वोटर्स के खिलाफ हिंदू वोटर्स को एकजुट रहने का संदेश दिया गया. यह संदेश था कि यदि धर्म के बजाय जातियों में बंटे तो मुस्लिम हावी हो जाएंगे. इस नैरेटिव की बदौलत योगी आदित्यनाथ हिंदू वोटर्स को एकजुट रखने में सफल रहे, जिससे सपा का उन्हें सवर्ष, पिछड़े और दलित में बांटकर भाजपा से दूर करने की कोशिश फेल हो गई.
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कैसे फेल हुआ अखिलेश का PDA, क्या माया-ओवैसी साबित हुए BJP की बी-टीम? पढ़ें 5 पॉइंट्स