डीएनए हिंदी: बिहार में पकड़े गए कट्ट्ररपंथियों को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की तरफ से की जा रही जांच ने एक बार फिर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का नाम सभी की जुबान पर ला दिया है. देश में गजवा-ए-हिंद की साजिश रच रहे इन लोगों का केरल के कट्टरपंथी संगठन PFI से जुड़ाव बताया जा रहा है. NIA का दावा है कि पूरी साजिश की फंडिंग से लेकर योजना तैयार करने तक, हर जगह PFI ही अहम भूमिका निभा रहा है. 

यह पहला मौका नहीं है, जब सांप्रदायिक हिंसा या उसकी साजिश से PFI का नाम जुड़ा है. इससे पहले भी राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में उत्तर-पूर्वी दिल्ली समेत कई राज्यों में दंगे, जहांगीरपुरी दंगे, पूर्व भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा (Nupur Sharma) के विवादित बयान को लेकर कई राज्यों में हुई हिंसा समेत दर्जनों साजिशों के पीछे जांच एजेंसियों ने PFI का ही हाथ होने दावे किए हैं. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि ये महज एक सामाजिक संगठन है (जैसा कि इससे जुड़े लोग दावा करते हैं) या फिर ये एक आतंकी संगठन बन चुका है? 

Delhi Riots
उत्तर पूर्वी दिल्ली में CAA के विरोध में हुए दंगों के पीछे PFI का ही हाथ होने का आरोप है.

पहले जानिए कैसे बना था पॉपुलर फ्रंट

BBC के मुताबिक, देश में हिंदुत्व की राजनीति के उभार के बाद मुस्लिमों में संगठित होने की कवायद दिखाई दी. इस दौर में तमाम मुस्लिम संगठन वजूद में आए. दक्षिण भारत में भी केरल (Kerla) में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF), तमिलनाडु (Tamilnadu) में मनिथा निथि पसाराई (MNP) और कर्नाटक (Karnataka) में कर्नाटक फोरम फोर डिग्निटी (KFD) बने. इन तीनों संगठनों ने 22 नवंबर, 2006 को केरल के कोजिकोड (Kojhikode) में हुई संयुक्त बैठक में आपस में मिलकर एक संयुक्त संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) बनाने की घोषणा की. इसके बाद 17 फरवरी, 2007 को PFI अस्तित्व में आ गया.

साल 2009 में गोवा (GOA) का सिटीजन फोरम, राजस्थान (Rajasthan) की कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशन सोसायटी, आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) की एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस, पश्चिम बंगाल (West Bengal) की नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति और मणिपुर (Manipur) के एक संगठन समेत कुल 5 संगठन भी PFI का हिस्सा बन गए. 

23 राज्यों में फैला संगठन, 4 लाख हैं मेंबर

PFI नेतृत्व अपने संगठन का फैलाव अब 23 राज्यों में और अपने कैडर में 4 लाख मेंबर होने का दावा करता है. इस दावे की पुष्टि NIA ने भी गृह मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में की है.

PFI बताता है अपना ये मिशन

PFI की तरफ से घोषित मिशन के मुताबिक, संगठन भेदभावरहित समाज की स्थापना करना चाहता है, जिसमें सभी को आजादी, न्याय और सुरक्षा मिल सके. संगठन अपना लक्ष्य देश में अखंडता, सामुदायिक भाईचारा और सामाजिक सदभाव बनाना है. साथ ही लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता की पॉलिसी और न्याय व्यवस्था को कायम रखने की बात करती है.

PFI CADRE
PFI ने अपना संगठन पूरी तरह कैडर बेस्ड बनाया है.

पूरी तरह संगठित नेटवर्क, राजनीतिक भागीदारी भी

  • कम्युनिस्ट पार्टियों की तर्ज पर PFI भी अब कैडर बेस्ड संगठन है.
  • PFI की भी एक नेशनल कमेटी है और राज्यों में स्टेट कमेटी होती है.
  • कमेटी मेंबर्स को हर तीन साल में एक बार चुनाव के जरिए चुना जाता है.
  • कमेटी के नीचे वर्कर्स होते हैं, जो संगठन की गतिविधियों को अंजाम देते हैं. 
  • 2009 में PFI ने राजनीतिक भागीदारी की शुरुआत की थी.
  • PFI का राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया (SDPI) है.
  • इसी तरह इसका एक छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) भी है.
  • अब इसका मुख्यालय भी कोजिकोड से दिल्ली ट्रांसफर हो चुका है. 

पहली बार साल 2010 में चर्चा में आया

PFI एक कट्टरतापंथी संगठन के तौर पर पहली बार साल 2010 में चर्चा में आया, जब उसके कार्यकर्ताओं ने केरल में एक प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काट दिया. जोसेफ पर एग्जाम पेपर में पैगंबर का अपमान करने का आरोप लगाया गया था. 

Kanpur riots
कानपुर में नुपूर शर्मा के बयान के विरोध में हुए दंगों में भी PFI की फंडिंग का दावा एजेंसियां कर रही हैं.

आतंकी घोषित हो चुके बैन संगठन SIMI से जुड़ाव के आरोप

PFI पर कई बार आतंकी संगठनों से जुड़ाव के भी आरोप लग चुके हैं. खासतौर पर आतंकी घोषित हो चुके स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (SIMI) और PFI के बीच बेहद करीबी संबंधित होने के आरोप जांच एजेंसियों ने लगाए हैं. साल 2001 में प्रतिबंधित किए जा चुके SIMI पर ही इंडियन मुजाहिदीन (Indian Mujhaidin) संगठन खड़ा करने का आरोप लगा था, जिसने देश में कई जगह बम ब्लास्ट की घटनाएं की हैं.

SIMI के सक्रिय सदस्य रहे कई लोग अब PFI के संगठन में दिखाई देते हैं. इनमें PFI की स्थापना करने वाले तीन संगठनों में से एक NDF के संस्थापक प्रोफेसर कोया भी हैं. हालांकि प्रोफेसर कोया ने BBC से बातचीत में दावा किया है कि उनके और SIMI के संबंध 1981 में ही खत्म हो गए थे. 

जांच एजेंसियों का दावा- PFI का टारगेट 2047 तक इस्लामिक भारत की स्थापना

जांच एजेंसियों का दावा है कि PFI भले ही दिखावे के लिए कोई भी उद्देश्य बताता हो, लेकिन उसका असल मकसद भारत में इस्लामी शासन स्थापित करना है. NIA ने हाल ही में पटना के फुलवारी शरीफ में पकड़े गए आतंकियों के पास से बरामद दस्तावेजों के आधार पर इस दावे की पुष्टि की है. इन दस्तावेजों में 2047 तक इस्लामिक भारत की स्थापना का फॉर्मूला दिया गया है. दस्तावेजों के पेज नंबर 3 पर 10% फॉर्मूला है, जिसमें PFI ने कथित तौर पर कुल मुस्लिम आबादी के महज 10% के अपने साथ जुड़ने पर इस्लामी शासन की स्थापना होने का विश्वास जताया है.

Delhi Riots New
दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुए दंगों में PFI का ही नाम आया था.

हालिया सालों में PFI का नाम इन बड़ी घटनाओं से जुड़ा

  • 2018 में केरल के एर्नाकुलम में CFI मेंबर्स ने स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के नेता अभिमन्यु की हत्या की.
  • 2019 में CAA के मुद्दे पर दिल्ली के शाहीन बाग समेत पूरे देश में हुए मूवमेंट के पीछे बताया गया PFI का हाथ.
  • दिसंबर, 2019 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली, मेरठ, कानपुर समेत कई शहरों में हुए CAA विरोधी दंगों में PFI पर फंडिंग का आरोप.
  • मार्च 2020 में पीएफआई दिल्ली के प्रमुख परवेज अहमद और सचिव मोहम्मद इलियास को दिल्ली दंगों में फंडिंग के लिए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था. 
  • 2022 में कर्नाटक के उडुपी में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब विवाद को बढ़ावा देने के आरोप भी CFI पर ही लगे हैं. 
  • 2022 में पटना में पकड़े गए चार कट्ट्ररपंथियों को स्थानीय पुलिस और NIA ने PFI से ही जुड़े होने का दावा किया है. 
  • 2022 में ही कानपुर समेत देश के कई शहरों में नुपूर शर्मा की टिप्पणी के बाद भड़के दंगों में भी PFI का हाथ होने का दावा है.
  • 2022 में ही दिल्ली के जहांगीरपुरी समेत देश के कई शहरों में हिंसा के पीछे भी एजेंसियों ने PFI की साजिश बताई है.
  • 2022 में ही दक्षिणी कर्नाटक में भाजपा युवा मोर्चा के नेता प्रवीण नेट्टार की हत्या के पीछे भी PFI कार्यकर्ता बताए गए हैं.

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दिल्ली दंगों से नुपूर शर्मा को लेकर हिंसा तक, हर जगह PFI, क्या आतंकी है ये संगठन
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Today's Agenda: दिल्ली दंगों से नुपूर शर्मा के कमेंट पर हिंसा तक, हर जगह PFI, क्यों लग रहा संगठन पर आतंक का ठप्पा?